- तुलसी पीठाधीश्वर बोले हिंदू मंदिरों के मामलों में सरकार को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए
जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी ने हाल ही में हिंदू मंदिरों के सरकारी अधिग्रहण को लेकर एक बड़ा बयान दिया, जिसमें उन्होंने धार्मिक समानता की मांग की। उनका कहना है कि यदि चर्च और मस्जिदें स्वतंत्र रूप से संचालित होती हैं और उन पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होता है, तो हिंदू मंदिरों के मामलों में भी सरकार को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
बयान का मुख्य उद्देश्य-
जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी के इस बयान का उद्देश्य हिंदू मंदिरों के प्रति सरकार द्वारा अपनाए गए रवैये पर सवाल उठाना है। उन्होंने यह प्रश्न उठाया है कि जब दूसरे धर्मों के पूजा स्थलों को स्वायत्तता प्राप्त है, तो हिंदू मंदिरों को उस स्वायत्तता से क्यों वंचित रखा जा रहा है। उनका मानना है कि मंदिरों की संपत्ति और दान का उपयोग केवल धार्मिक उद्देश्यों के लिए होना चाहिए, न कि सरकारी नियंत्रण में।
धार्मिक समानता की मांग-
जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी ने कहा कि सभी धर्मों को समान रूप से देखना चाहिए। उनका तर्क है कि जिस तरह चर्च और मस्जिदों के प्रबंधन में सरकार का हस्तक्षेप नहीं होता, ठीक उसी तरह हिंदू मंदिरों को भी अपनी धार्मिक गतिविधियाँ स्वतंत्र रूप से संचालित करने का अधिकार होना चाहिए।
मंदिरों की संपत्ति और दान का उपयोग-
उन्होंने बताया कि हिंदू मंदिरों के पास जो संपत्ति और दान आता है, उसे मंदिरों के रखरखाव, धार्मिक कार्यों, और हिंदू समाज के कल्याण के लिए उपयोग किया जाना चाहिए। उन्होंने सरकार द्वारा मंदिरों के अधिग्रहण के माध्यम से इन फंड्स का उपयोग करने पर आपत्ति जताई, और कहा कि इसे पारदर्शी तरीके से मंदिर ट्रस्टों या धार्मिक संगठनों द्वारा प्रबंधित किया जाना चाहिए।
सरकारी अधिग्रहण पर आपत्ति-
रामभद्राचार्य जी ने कहा कि कई राज्यों में हिंदू मंदिरों को सरकार द्वारा अधिग्रहित किया गया है, जिससे हिंदू समुदाय के धार्मिक अधिकारों का हनन होता है। उन्होंने मांग की कि सरकार को हिंदू मंदिरों से अपने नियंत्रण को समाप्त करना चाहिए और इन मंदिरों का संचालन उनकी धार्मिक परंपराओं और आस्थाओं के अनुसार होना चाहिए।
हिंदू संगठनों में समर्थन-
जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी के इस बयान को कई हिंदू संगठनों से समर्थन मिल रहा है। उनका मानना है कि मंदिरों की संपत्ति और उनके प्रबंधन पर सरकार का नियंत्रण समाप्त होना चाहिए ताकि धर्म और आस्था के मामले में सभी को समानता मिले।
यह मुद्दा कई राज्यों में लंबे समय से विवाद का कारण रहा है, और अब इसे धार्मिक स्वतंत्रता और धार्मिक स्थल स्वायत्तता के दृष्टिकोण से देखने की जरूरत महसूस की जा रही है। जगद्गुरु रामभद्राचार्य का यह बयान इसी दिशा में हिंदू समुदाय के लिए एक मजबूत आवाज के रूप में देखा जा रहा है।