नैनीताल, उत्तराखण्ड
कहते हैं कि अगर इरादे मजबूत हों तो राह खुद-ब-खुद निकल आती है। इसका जीता-जागता उदाहरण हैं नैनीताल की तरुणा, जिन्होंने फैशन डिजाइनिंग की पढ़ाई करने के बाद महानगरों की चकाचौंध छोड़ अपने पहाड़ लौटने का फैसला किया। उनका लक्ष्य था कुमाऊं की पारंपरिक ज्वेलरी को आधुनिक रूप देना और दुनिया तक पहुंचाना। कुमाऊं के पारंपरिक गहनों नथ, गलोबंद, हंसुली, चंपाकली और पोंछी की अपनी अलग पहचान रही है, लेकिन समय के साथ ये गहने युवाओं से दूर होते चले गए। उन्हें यह पुराने जमाने की निशानी लगते थे। तरुणा ने इस कमी को पहचाना और पारंपरिक डिजाइनों में मॉडर्न टच जोड़ना शुरू किया। आज उनके बनाए डिजाइन सोने, चांदी, ब्रॉस और नए मटीरियल्स से तैयार होकर न सिर्फ युवाओं अपितु विदेशों में भी पसंद किए जा रहे हैं। दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर जैसे महानगरों से लेकर ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और सिंगापुर तक, तरुणा की ज्वेलरी की मांग लगातार बढ़ रही है। कई एनआरआई अपने खास मौकों पर इन्हें गर्व से पहनते हैं। यह केवल एक बिजनेस नहीं, बल्कि संस्कृति का संरक्षण और आत्मनिर्भरता की राह भी है। तरुणा पिछले 25 सालों से ज्वेलरी डिजाइनिंग से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने कई बड़े ब्रांड्स के साथ भी काम किया, लेकिन दिल हमेशा अपने पहाड़ और संस्कृति के लिए धड़कता रहा। यही वजह रही कि उन्होंने नैनीताल लौटकर ‘म्यार’ (कुमाऊंनी भाषा में ‘मेरा’) नाम से अपना ब्रांड शुरू किया। आज उनकी डिजाइनों में पारंपरिक सौंदर्य और आधुनिकता का अनोखा संगम देखने को मिलता है। खासकर बच्चों के लिए डिजाइन की गई भौ पौछी (हाथ में पहना जाने वाला आभूषण) लोगों को बेहद पसंद आ रही है। यह कहानी सिर्फ एक महिला उद्यमी की सफलता नहीं, बल्कि उस सोच की मिसाल है कि अगर परंपरा को आधुनिकता से जोड़ा जाए, तो वह न सिर्फ हमारी पहचान को बचा सकती है, बल्कि दुनियाभर में हमारी संस्कृति का परचम भी लहरा सकती है।