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विशेष

डॉ. हेडगेवार जी का वह पत्र, जिसमें है संघ कार्य का मूल दर्शन

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 संघ संस्मरण

मार्च 1936 में कृष्णराव वाडेकर महाराष्ट्र के धुले जलगांव क्षेत्र में शाखा शुरू करने के उद्देश्य से वहाँ पर गए। 24 मार्च 1936 को डॉ. हेडगेवार ने उन्हें एक * लिखित स्मृति पत्र ‘संघ-स्थापना विधि’ दिया। उस प्रलेख में स्पष्ट रूप से उस व्यवहार के बारे में लिखा था, जिसकी अपेक्षा एक स्वयंसेवक से की जाती है। इसकी विशेष बातें इस प्रकार थी

“जैसे शिवाजी का प्रत्येक अधिकारी एक कुशल राजनीतिज्ञ था, ठीक उसी तरह संघ का भी प्रत्येक अधिकारी संघ द्वारा दिए गए प्रशिक्षण के हर पहलू का जानकार होना चाहिए। स्वयंसेवक सरसंघचालक से अनुमति प्राप्त कर,  अपनी स्वयं की जिम्मेदारी पर ऐसे किसी भी कार्य में भाग ले सकते हैं,  जो हिन्दुओं के कल्याण के विपरीत न हो। स्वदेशी का विकास किया जाना चाहिए,  जिसकी प्रेरणा देशभक्ति की मनोवृत्ति से हो। अपने आपको एक तरफ तो किसी आचार संहिता की कमी की चरम सीमाओं से अनभिज्ञ रखकर, दूसरी और निरर्थक रूढ़ियों से भी दूर रहकर संघ के कार्यकर्ताओं को एक स्वर्णिम साधन ढूँढना होगा,  ताकि समाज में नई जान फूँकी जा सके। संघ को ऐसे कार्यक्रमों से दूर रखना होगा,  जो अल्पकालीन उत्साह से उपजे हो या फिर अस्थिर भावनाओं के उद्गार हों। ऐसे कार्यक्रमों से जुड़ाव संघ की स्थिरता को केवल नुकसान ही पहुँचाएगा।”