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जनजाति समाज के पर्व-त्यौहार व पूजा पद्धति सनातनी परंपरा से मिलते हैं

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हमारी संस्कृति अरण्य संस्कृति है

समालखा, हरियाणा (22 सितम्बर, 2024).

अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के समालखा (हरियाणा) में आयोजित कार्यकर्ता सम्मेलन के तीसरे दिन 22 सितंबर को प्रथम सत्र का शुभारंभ अरुणाचल प्रदेश की स्थानीय भाषा में प्रार्थना से हुआ. जिसका भावार्थ यही था कि सबका कल्याण हो.

प्रथम सत्र में वनवासी कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय अध्यक्ष सत्येंद्र सिंह ने कहा कि जनजाति समाज विशाल सनातनी समाज का आधार स्तंभ है. हम सभी का जड़-नाल वनों में ही गड़ा हुआ है. प्राचीन वेदों की रचना में वनवासी समाज का भी अहम योगदान रहा है. सभी जनजाति समाज के पर्व-त्यौहार एवं पूजा पद्धति सनातनी परंपरा से मिलते हैं, जिसका भाव एक ही है. अलग करने का षड्यंत्र अंग्रेजों की देन है, जिन्होंने इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पुस्तकों के माध्यम से रचा.

जनजाति समाज संग्रही प्रवृत्ति का नहीं होता, वह प्रकृति से उतना ही लेता है जितना उसे जरूरत है. ऐसे जनजाति समाज के अस्तित्व को बचाना, हम सभी का कर्तव्य बनता है. वर्तमान में समाज में जो विमर्श भ्रम फैला रहे हैं, उन भ्रामक विमर्शों से समाज को बचाने के लिए हमारे विमर्श स्थापित होने चाहिए. वर्तमान समय में हमारा विमर्श हमारी संकृति अरण्य संस्कृति है. नगरवासी-वनवासी हम सब भारतवासी, इस ध्येय वाक्य पर वनवासी कल्याण केंद्र कार्य कर रहा है.

डॉ. राजकिशोर हांसदा ने भारत में लव जिहाद और लैंड जिहाद की समस्या पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह समस्या झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र में दिन प्रतिदिन लगातार बढ़ रही है. वहां घुसपैठ कर आए बांग्लादेशी मुसलमान संथाली जनजाति लड़कियों को झांसे में लेकर विवाह करते हैं और जनसंख्या बढ़ाने के साथ जमीन भी हड़प रहे हैं. इसके खिलाफ हम सभी को महाभारत छेड़ कर अपने बहन-बेटी, जंगल-जमीन के साथ धर्म की रक्षा भी करना होगा.

नागालैंड के डॉ. थुंबई जेलियांग ने नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों में धर्मांतरण विषय पर कहा कि मतांतरित लोग वहां के स्थानीय लोगों को ही बाहरी साबित करने में लगे हुए है. वनवासी कल्याण आश्रम द्वारा संचालित विद्यालयों के साथ देश के अन्य स्थानों में स्थानीय बच्चों को पढ़ने की सुविधा से धर्मांतरित लोग विचलित हो गए हैं.

छत्तीसगढ़ प्रांत के संगठन मंत्री रामनाथ ने बस्तर के माओवाद समस्या पर कहा कि जिस जनजाति का अस्तित्व जंगल होता है, उस जंगल में माओवादियों द्वारा लैंड माइंस बिछाए पड़े हैं. जहां वे स्वतंत्र रूप से जा नहीं सकते हैं. वहां के लोगों को सरकारी सुविधाओं से भी वंचित रहना पड़ता है. कारण सबके पास आधार कार्ड नहीं है, आधार बनाने के लिए शहर जाते हैं तो मुखबिर बता कर माओवादी परेशान करते हैं. मौलिक अधिकारों का हनन होता है. सरकारी विद्यालयों और आंगनबाड़ी के पक्के मकानों को तोड़ दिया जाता है, कारण वहां सुरक्षा बल रहने आते हैं. शिक्षा से वंचित रखकर माओवादी अशिक्षा की आड़ में ग्रामवासियों को अपने पक्ष में कर लेते हैं. ऐसे जनजाति क्षेत्रों में शिक्षा स्वास्थ्य संगठन के कार्य व्यापक रूप में करने की आवश्यकता है.