• अनुवाद करें: |
मुख्य समाचार

जहाँ मिटाए गए थे मन्दिर, वहीं से फिर गूँज रहा है ‘ॐ’

  • Share:

  • facebook
  • twitter
  • whatsapp

  • मिट्टी में दबायी गयी थी आस्था: मुगलों ने जो छिपाया, अब वो उजागर हो रहा है
  • दबी धरोहर, जागता स्वाभिमान : चक्की गांव से निकली विष्णु जी की प्रतिमा और शिवलिंग 
  • छिपा नहीं रह सका सत्य: चक्की गाँव से फिर जागी सनातन विरासत

फतेहपुर, उत्तर प्रदेश :  उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के चक्की गांव की धरती ने सोमवार को इतिहास की एक ऐसी परत खोली, जिसने स्थानीय आस्था ही नहीं, भारत के सांस्कृतिक संघर्षों की स्मृति को भी जीवंत कर दिया। खेल मैदान में समतलीकरण की खुदाई के दौरान भगवान विष्णु की भव्य प्रतिमा और एक विशाल शिवलिंग मिला। तो ये स्पष्ट हो गया कि यह वही स्थल है जिसे कभी सत्ता परिवर्तन और धार्मिक उत्पीड़न के दौर में मुस्लिमों द्वारा षड़यंत्र के तहत मिटा दिया गया था। धरती के नीचे से भगवान विष्णु की प्रतिमा और शिवलिंग मिलना मात्र एक धार्मिक प्रतिमा मिलना नहीं, अपितु भारत की उस अनकही पीड़ा का प्रतीक है जिसे सदियों तक दबाने का प्रयास किया गया। मिट्टी में दबी भगवान विष्णु की भव्य मूर्ति और एक विशाल शिवलिंग ने न मात्र गांव के इतिहास को बदला, अपितु यह संकेत भी दिया कि भारत की संस्कृति मिटाई नहीं जा सकती। वो समय आने पर स्वयं मुखर हो उठती है। गांव के बुजुर्गों की मानें तो यह क्षेत्र कभी एक शक्तिशाली चक्रवर्ती राजा की राजधानी हुआ करता था। उन्होंने बताया कि उनके पूर्वजों से सुनते आए हैं कि यहां एक बड़ा किला और मंदिर था, जो मुस्लिमों द्वारा किये गए आक्रमणों में नष्ट हो गया। भूमि के नीचे से विष्णु की मूर्ति और शिवलिंग का मिलना इस जनश्रुति को बल देता है। इतिहासकार मानते हैं कि भारत के मध्यकालीन इतिहास में ऐसे कई कालखंड आए, विशेष तौर पर तुर्क और मुगल आक्रमणों के दौरान, जब मंदिरों को योजनाबद्ध ढंग से नष्ट किया गया या मतान्तरण के दबाव में बदला गया। कई मंदिरों को गिराकर उनके पत्थरों से मस्जिदें या महल बनाए गए। यह कोई सांप्रदायिक दृष्टिकोण नहीं, अपितु दर्ज ऐतिहासिक तथ्य हैं। जैसे सोमनाथ मन्दिर, काशी विश्वनाथ मन्दिर और मथुरा के केशवदेव मन्दिर के साथ हुआ।

सदियों से दबी आस्था को जगाया

चक्की में मिली मूर्ति और शिवलिंग इसी ऐतिहासिक प्रक्रिया का मूक प्रमाण लगते हैं। जब फावड़ा एक ठोस पत्थर से टकराया, तो मजदूरों को अनुमान नहीं था कि वे किसी साधारण चट्टान को नहीं, बल्कि सदियों से दबी आस्था को जगा रहे हैं। स्थानीय प्रशासन और ग्रामीणों ने मूर्ति की पूजा आरम्भ कर दी है, लेकिन ग्राम प्रधान विनोद साहू ने इसे सांस्कृतिक पुनरुद्धार की शुरुआत कहा है। उन्होंने बताया कि यहां और भी पुरातन अवशेष हो सकते हैं जो भारत की वास्तविक धार्मिक-सांस्कृतिक पहचान के साक्ष्य हैं। उपजिलाधिकारी प्रभाकर त्रिपाठी ने बताया कि पुरातत्व विभाग को सूचित किया गया है। जांच के बाद स्पष्ट होगा कि यह मूर्ति किस कालखंड की है और क्या इस स्थल पर मंदिर परिसर मौजूद था। यह खोज बताती है कि इतिहास दबाया जा सकता है, मिटाया नहीं। फतेहपुर का चक्की गांव मात्र एक उदाहरण नहीं है, ऐसे हजारों स्थल भारत वर्ष में मौजूद हैं जो पुनः अस्तित्व में आने की प्रतीक्षा में हैं।