उत्तराखंड।
-राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने मुख्य सचिव को लिखा था पत्र
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने उत्तराखंड में मदरसा बोर्ड को भंग करने की सिफारिश की है। यह निर्णय आयोग द्वारा की गई निरीक्षणों के आधार पर लिया गया है, जिसमें मदरसों में शिक्षा की गुणवत्ता और प्रशासन में खामियों का उल्लेख किया गया है।
गीता खन्ना, बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष - उत्तराखंड
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:
1. शैक्षणिक मानक: NCPCR की रिपोर्ट में बताया गया है कि मदरसों द्वारा दी जाने वाली शिक्षा एनसीईआरटी और एससीईआरटी के पाठ्यक्रमों के मानकों के अनुरूप नहीं है। इससे मदरसों के छात्रों का स्तर आरटीई (शिक्षा का अधिकार) अधिनियम के तहत आने वाले छात्रों से पीछे रह जाता है।
2. अवैध मदरसे: रिपोर्ट में यह भी पाया गया है कि राज्य में अवैध मदरसों की संख्या बढ़ रही है। आयोग ने बताया कि 400 से अधिक ऐसे मदरसे हैं जो बिना मान्यता के संचालित हो रहे हैं।
3. सरकारी फंडिंग: आयोग ने सरकार से आग्रह किया है कि मदरसों को दी जाने वाली सरकारी फंडिंग को रोक दिया जाए। यह सुझाव इसलिए दिया गया है क्योंकि मदरसों में बच्चों के शैक्षिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है, जिससे सामाजिक असमानता बढ़ती है।
4. जन जागरूकता: NCPCR ने इस बात पर भी जोर दिया है कि मदरसों में अध्ययन कर रहे बच्चों को उचित शिक्षा दी जाए, विशेषकर हिंदू बच्चों के संदर्भ में। रिपोर्ट में बताया गया है कि मदरसों में कुछ गैर-मुस्लिम बच्चे भी पढ़ रहे हैं, लेकिन उन्हें सही शिक्षा नहीं मिल रही है।
यह सिफारिश इस बात का संकेत है कि मदरसों की स्थिति में सुधार की आवश्यकता है। आयोग की यह कार्रवाई बच्चों के अधिकारों की रक्षा और उनकी शिक्षा के स्तर को बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।