जल ही जीवन: जल संरक्षण की अनिवार्यता
‘बिन पानी सब सून’- संत रहीम का यह दोहा आज के दौर में और भी प्रासंगिक हो गया है। जल ही जीवन है, परंतु हम इसे बचाने के प्रति कितने जागरूक हैं? धरती पर उपलब्ध मीठे पानी का प्रतिशत बहुत कम है, फिर भी हम इसे व्यर्थ गंवा रहे हैं। आज स्थिति यह है कि पानी की कीमत बढ़ती जा रही है और हमें इसे खरीदना पड़ रहा है। एयरपोर्ट या अन्य स्थानों पर पानी की बोतल की कीमत तकरीबन 150 रुपये तक होती है, जबकि कुछ लोग इसे व्यर्थ में बहाते हैं। यह विरोधाभास बताता है कि जल संरक्षण कितना आवश्यक है।
पानी की कीमत: क्या हमने इसे समझा? आज पानी केवल एक प्राकृतिक संसाधन नहीं रहा, बल्कि यह एक महंगी वस्तु बन चुका है। शहरों में पानी के टैंकर खरीदने पड़ते हैं, बोतलबंद पानी अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग कीमत में मिलता है। यदि जल संरक्षण नहीं किया गया तो आने वाले समय में इसकी कीमत सोने-चांदी से भी अधिक हो सकती है। सोचिए, जो पानी हमें प्रकृति ने निःशुल्क दिया था, उसे बचाने में हम क्यों चूक रहे हैं?
जल का दुरुपयोग और समुद्र का बढ़ता जलस्तर: हमें लगता है कि बर्बाद किया गया अधिकतर पानी नालों से निकलकर नदी और समुद्र में चला जाता है, लेकिन यह समस्या को और बढ़ाता है। समुद्र में अत्यधिक जलभराव से जलस्तर बढ़ रहा है, जिससे कई तटीय इलाकों के डूबने का खतरा मंडरा रहा है। साथ ही, समुद्र में अधिक मीठा पानी मिलने से हाइपोक्सिक जोन (ऑक्सीजन की कमी वाले क्षेत्र) बनने लगते हैं, जिससे जलीय जीवों का जीवन संकट में आ जाता है।
कृषि में जल संरक्षण की तकनीकें: जल का सबसे अधिक उपयोग करने कृषि क्षेत्र में होता है। यदि हम जल-संरक्षण तकनीकों का उपयोग करें, तो पानी की काफी बचत हो सकती है। आधुनिक ड्रिप सिंचाई प्रणाली (क्तपच प्ततपहंजपवद) ऐसी ही एक तकनीक है, जिसमें पौधों की जड़ों तक बूंद-बूंद पानी पहुंचता है, जिससे जल की बर्बादी कम होती है और फसल की उत्पादकता बढ़ती है। इसी प्रकार, स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली भी खेतों में जल संरक्षण के लिए कारगर है।
जल संरक्षण के अनुकरणीय प्रयास: भारत में ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां लोगों ने जल संरक्षण को अपनी जीवनशैली का हिस्सा बना लिया है-
अन्ना हजारे का गाँव रालेगण सिद्धिः महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले का यह गाँव पहले सूखा प्रभावित था, लेकिन प्रसिद्ध जनसेवक अन्ना हजारे जी ने यहां जल संरक्षण का अद्भुत कार्य किया। वर्षा जल संचयन, छोटे बांधों का निर्माण और जल पुनर्भरण तकनीकों का उपयोग कर गाँव को पानी की कमी से उबारा गया। आज रालेगण सिद्धि जल-संरक्षण का एक आदर्श उदाहरण बन चुका है।
राजस्थान की टांका पद्धति: राजस्थान जैसे शुष्क क्षेत्रों में जल संग्रहण की प्राचीन विधि टांका पद्धति आज भी प्रासंगिक है। इसमें घरों के आंगन से बहकर आने वाला पानी एक बड़े भूमिगत टैंक (टांका) में इकट्ठा किया जाता है, जिससे पूरे साल पीने योग्य पानी उपलब्ध रहता है।
गुजरात का पारंपरिक जल संरक्षण: गुजरात में जल संग्रहण के लिए चेक डैम और स्टेग्नेंट वाटर टैंक जैसी विधियां अपनाई जाती हैं। विशेष रूप से कच्छ क्षेत्र में बारिश के पानी को बड़े टैंकों में संचित कर उपयोग किया जाता है। इससे न केवल जल की उपलब्धता बनी रहती है, बल्कि भूजल स्तर भी संतुलित रहता है।
हमारी उत्तरदायित्व: जल संरक्षण को बनाएं आदतः हमें जल संरक्षण केवल सरकारी प्रयासों तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि इसे अपनी आदत बनाना होगा। कुछ छोटे-छोटे कदम उठाकर हम जल संरक्षण में अपना योगदान दे सकते हैं-
♦ ब्रश करते समय नल खुला न छोड़ें।
♦ बर्तन और कपड़े धोते समय पानी कम से कम बहाएं।
♦ वर्षा जल संचयन अपनाएं।
♦ कृषि में आधुनिक जल संरक्षण तकनीकों का उपयोग करें।
निष्कर्ष - ‘जल ही जीवन है’- यह केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक सच्चाई है। यदि हम आज जल बचाएंगे, तो कल हमें इसकी कमी नहीं होगी। जल संरक्षण केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हम सभी की नैतिक जिम्मेदारी है। हमें जल का मूल्य समझना होगा, क्योंकि यदि आज हमने पानी नहीं बचाया, तो भविष्य में इसके बिना जीवन असंभव हो जाएगा।
‘बूँद-बूँद से सागर भरता है,
बचा न सके तो जीवन तरसता है।’
आइए, हम सभी जल संरक्षण का संकल्प लें और अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए पानी की सुरक्षा सुनिश्चित करें।
लेखिका महर्षि दयानंद विद्यापीठ पब्लिक स्कूल गोविंदपुरम, गाजियाबाद में प्राचार्या है।




