जब कांग्रेस ने किया बाबासाहेब की आत्मा का हनन
दिनांक- 15 नवंबर 1948
समय- सुबह 10 बजे, दिन- सोमवार
स्थान- कॉन्टिट्यूशन क्लब, नई दिल्ली
संविधान निर्माता बाबासाहेब रामजी आंबेडकर, जवाहरलाल नेहरू, लोकनाथ मिश्रा, संविधान के मुख्य प्रारूपकार एसएन मुखर्जी समेत संविधान सभा के कई सदस्य मौजूद थे। सभा की अध्यक्षता कर रहे थे तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ. एचसी मुखर्जी। संविधान सभा के सदस्य प्रोफेसर केटी शाह उर्फ खुशाल तलकसी शाह ने बोलना शुरू किया। वह संविधान सभा में बिहार प्रांत से चुने गए थे।
खुशाल तलकसी शाह- महोदय, निवेदन है कि "अनुच्छेद 1 के खंड (1) में 'shall
be a' शब्द के बाद 'सेक्युलर, फेडरल
सोशलिस्ट' शब्द
डाले जाएं।" और संशोधित लेख
या खंड इस प्रकार पढ़ा जाएगा: "भारत
एक धर्मनिरपेक्ष, संघीय, समाजवादी राज्यों का संघ होगा।"
बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर ने खुशाल तलकसी शाह के इस निवेदन को तुरंत नकार दिया, उन्होंने इस संशोधन को लोकतन्त्र को नष्ट करने वाला बताया।
बाबासाहेब- उपाध्यक्ष महोदय, मुझे दुख है ये बताते हुए कि मैं प्रोफेसर केटी शाह का संशोधन स्वीकार नहीं कर सकता। इसके दो मुख्य कारण हैं
1- इस निर्णय से लोगों से स्वतन्त्र रूप से रहने का अधिकार छीन रहे हैं,
लोकतन्त्र को पूरी तरह से नष्ट कर रहा है।
2- ये संशोधन पूरी तरह अनावश्यक हैं क्योंकि संविधान में पहले से सभी को
बराबर अधिकार का उल्लेख है।
बाबासाहेब ने कहा- ये शब्द न मात्र भारत की मूल भावना सर्वधर्म समभाव की
भावना के विपरीत है, बल्कि समाज में विघटन पैदा करने वाले हैं।
जिस संशोधन को बाबा साहेब समेत पूरी संविधान सभा ने नकार दिया और जिन
शब्दों को खुद संविधान निर्माता ने लोकतंत्र का हत्यारा बताया। उन्हीं शब्दों को 3 जनवरी 1977 को संविधान में जोड़
दिया गया। जब ये शब्द प्रस्तावना में जोड़े गए उस समय देश में आपातकाल लागू था। विपक्ष
जेल में था। सारे मानवाधिकार सस्पेंड थे। बिना बहस के ही मनमाने तरीके से संशोधन
को पास कर संविधान की आत्मा से छेड़छाड़ की गई।
अब प्रश्न ये कि तानाशाह सरकार
द्वारा आपातकाल की आड़ में सत्ता के लोभ के लिए लोकतन्त्र को नहीं तोड़ा गया?
सेक्युलर की आड़ में देश को आंशिक मुस्लिम राष्ट्र बनाने की कोशिश नहीं की गई? आपने सोचा है कभी?
क्या किसी भी सेक्युलर अर्थात धर्मनिरपेक्ष देश में किसी मत विशेष के लिए
अलग से कानूनों का प्रावधान है?
नहीं, तो भारत में शरिया कानून, वक्फ बोर्ड, अल्पसंख्यक आयोग, तीन तलाक और
मदरसों को कानूनी मान्यता क्यों मिली है?
‘वसुधैव कुटुंबकम’ जिस देश का ध्येय वाक्य हो, वहां धर्मनिरपेक्षता शब्द अलग से जोड़ने के
पीछे मंशा क्या थी?
मुट्ठी भर वोटों की लालसा में भारत की मूल आत्मा से खिलवाड़ नहीं किया गया?
विचार अवश्य करें