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फूलों से महक उठी महिलाओं की जिंदगी

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वाराणसी, उत्तर प्रदेश 

वाराणसी में मंदिरों में प्रतिदिन हजारों किलो फूल भगवान पर चढ़ाए जाते हैं। पूजा के बाद ये फूल गंगा में बहा दिए जाते हैं। लेकिन अब यही फूल महिलाओं की जिंदगी बदल रहे हैं। इन्हें नई सोच और मेहनत से रोजगार व आत्मनिर्भरता का साधन बना लिया गया है। पिंडरा ब्लॉक की करीब 200 महिलाएं आज उन फूलों से अगरबत्ती, धूपबत्ती, वर्मी कम्पोस्ट, हर्बल पाउडर और पूजा सामग्री बना रही हैं, जिन्हें कभी कचरा समझा जाता था। इस काम की प्रेरणा और सहयोग दे रही हैं कोमल सिंह, जिन्होंने महिलाओं को जोड़कर न सिर्फ प्रशिक्षण दिया बल्कि बाजार तक पहुंच भी उपलब्ध कराई। मंदिरों से प्रतिदिन 700 किलो फूल इकट्ठा किए जाते हैं। खराब और अच्छे फूलों को अलग किया जाता है। अच्छे फूल धूप में सुखाए जाते हैं और फिर पाउडर बनाया जाता है। इसी पाउडर से अगरबत्ती, धूप, हर्बल उत्पाद और वर्मी कम्पोस्ट तैयार किया जाता है। खुद सिंगल मदर कोमल सिंह जानती थीं कि महिलाओं के लिए आत्मनिर्भर बनना कितना कठिन होता है। इसलिए उन्होंने ठाना कि जो मुश्किलें उन्होंने झेली हैं, वे औरों की राह आसान बनाएंगी। आज उनकी इस पहल से 200 महिलाएं प्रतिदिन 200–300 रुपये तक कमा रही हैं और अपने परिवार को संवार रही हैं। इस काम की सबसे खास बात यह है कि इसे शुरू करने के लिए बड़ी पूंजी की जरूरत नहीं है। मंदिरों से फूल अक्सर मुफ्त या बेहद कम लागत पर मिल जाते हैं। शुरुआती स्तर पर अगरबत्ती या वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिए 10–15 हजार रुपये काफी हैं। छोटे स्तर पर बने प्रोडक्ट स्थानीय हाट, मेले और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर बेचे जा सकते हैं। यानी कोई भी आम इंसान चाहे तो कम पैसों से यह मॉडल अपनाकर गांव की महिलाओं को जोड़ सकता है और रोजगार का नया अवसर बना सकता है। कोमल सिंह अब इस काम से 1000 से भी ज्यादा महिलाओं को जोड़ने की दिशा में आगे बढ़ रही हैं। उनका मानना है कि मंदिरों के फूल सिर्फ आस्था का प्रतीक ही नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत का आधार भी बन सकते हैं। यह कहानी हर उस आम आदमी के लिए प्रेरणा है, जो कम साधनों से भी बड़ा काम करने का सपना देखता है। यह साबित करती है कि अगर सोच नई हो और हौसले मजबूत हों, तो कचरा भी खजाना बन सकता है।

कई तरह के प्रोडक्ट हो रहे तैयार.