मेरठ (उत्तर प्रदेश) – जब भी गाँवों की चर्चा होती है, तो अक्सर हमारे मन में पिछड़ेपन और अव्यवस्था की छवि उभरती है। लेकिन मेरठ से लगभग 40 किलोमीटर दूर स्थित सिकंदरपुर नामक गाँव इस धारणा को पूरी तरह बदल देता है। यह गाँव अब केवल खेती-बाड़ी का स्थान नहीं, बल्कि स्वच्छता, आत्मनिर्भरता और सामूहिक प्रयास का उदाहरण बन चुका है।
यहाँ हर घर के सामने एक छोटा-सा बगीचा देखने को मिलता है। कोई टमाटर उगा रहा है, तो कोई पालक, कोई नींबू तो कोई लौकी। यहाँ के लोग रसोई से निकले पानी को फेंकते नहीं, बल्कि पौधों को सींचने में उसका उपयोग करते हैं। सफाई के लिए बड़ी मशीनें नहीं हैं, पर लोगों की समझदारी और आपसी सहयोग ने पूरे गाँव को साफ और सुंदर बना दिया है।
राज्य सरकार ने गाँववासियों की इस पहल की प्रशंसा की और उन्हें बीस लाख रुपये की प्रोत्साहन राशि प्रदान की, जिससे गाँव में और भी सुधार किए जा सकें।
अब यहां झोंपड़ी जैसे रेस्टोरेंट बन रहे हैं जहां पर्यटक आकर गांव के स्वाद को चखने के साथ ही गाँव के तौर-तरीके को भी समझ सकें।
और सबसे अच्छी बात ये है कि इन रेस्टोरेंट के संचालन की बागडोर सौंपी गई उन्हें जो आज घरों के साथ-साथ बाहर भी उतने ही जिम्मेदरियों के साथ काम करती हैं । जी हाँ, सही सोचा आपने रेस्टोरेंट को संभालने का दायित्व महिलाओं को दिया गया है ताकि वे आय में वृद्धि करने के साथ ही आत्मनिर्भर बने।
सिकंदरपुर कोई पर्यटन स्थल नहीं बना, ये एक उदाहरण बना है कि अगर गांव वाले ठान लें, तो अधिक खर्च किये बिना भी परिवर्तन लाया जा सकता है। यह कोई कहानी नहीं है यह वास्तविकता है और अगर आप देखना चाहते हैं कि असली विकास क्या होता है तो सिकंदरपुर अवश्य जाएँ।