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एकात्म समरस समाज से होगा “राष्ट्रोत्थान” – दत्तात्रेय होसबाले जी

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-सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने कहा कि “समाज को जागृत करने के कार्य में ‘विवेक’ का योगदान अतुलनीय है। यह दिव्य दीपस्तंभ अब संपूर्ण विश्व का मार्गदर्शन करेगा, ऐसा ही भारत निर्मित करने का स्वप्न साकार हो रहा है

-उन्होंने कहा कि संघ केवल संस्था नहीं है, वह एक जागृत आंदोलन है। जीवन के प्रत्येक अंग को स्पर्श करने वाला, शाश्वत मूल्यों की अनुभूति कराने वाला यह जीवनदर्शन, संघ की विचारधारा से प्रकट होता है। समरस समाज की निर्मिति ही संघ का अंतिम ध्येय है

मुंबई। निःस्वार्थ राष्ट्रभक्ति और एकात्मता की तेजस्वी यात्रा करने वाले साप्ताहिक ‘विवेक’ के ‘राष्ट्रोत्थान’ ग्रंथ का प्रकाशन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी के हाथों संपन्न हुआ।

इस अवसर पर सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने कहा कि “समाज को जागृत करने के कार्य में ‘विवेक’ का योगदान अतुलनीय है। यह दिव्य दीपस्तंभ अब संपूर्ण विश्व का मार्गदर्शन करेगा, ऐसा ही भारत निर्मित करने का स्वप्न साकार हो रहा है।” पिछले ७५ वर्षों से अखंड राष्ट्रहित और समाजचेतना जगाने वाली इस पत्रिका की सराहना की और आगामी कार्ययात्रा के लिए शुभकामनाएं प्रदान कीं।

उन्होंने कहा कि संघ केवल संस्था नहीं है, वह एक जागृत आंदोलन है। जीवन के प्रत्येक अंग को स्पर्श करने वाला, शाश्वत मूल्यों की अनुभूति कराने वाला यह जीवनदर्शन, संघ की विचारधारा से प्रकट होता है। समरस समाज की निर्मिति ही संघ का अंतिम ध्येय है, और इस दिशा में संघ निरंतर कार्य कर रहा है तथा करता रहेगा।

इस अवसर पर चैत्र शुद्ध दशमी के पावन मुहूर्त पर, ‘विवेक प्रकाशन’ की ओर से ‘राष्ट्रोत्थान’ प्रेरणादायी ग्रंथ प्रकाशित किया गया। 0७ अप्रैल २०२५, सोमवार के दिन वडाला उद्योग भवन के निको हॉल में कार्यक्रम उत्साह एवं राष्ट्रीय ऊर्जा से परिपूर्ण वातावरण में संपन्न हुआ।

समारोह में दत्तात्रेय होसबाले जी (सरकार्यवाह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ), लक्ष्मीकांत खाबिया (रत्नमोहन ग्रुप, पुणे), उमेश भुजबळ (स्कॉन इन्फ्रा) उपस्थित रहे। कार्यक्रम की प्रस्तावना रमेश पतंगे ने रखी। इस अवसर पर साप्ताहिक विवेक के डिजिटल ग्राहक पंजीकरण अभियान की शुरुआत भी की गई।


‘राष्ट्रोत्थान’ ग्रंथ की विशेषताएं स्पष्ट करते हुए संपादक रवींद्र गोळे ने कहा कि, “समाज प्रबोधन आज की आवश्यकता है। पंचपरिवर्तन का विस्मरण ही हमारे पराधीनता का कारण था, यह हमें नहीं भूलना चाहिए।” ग्रंथ में ८० वैचारिक लेख समाहित हैं और राष्ट्र की वैचारिक नींव को सुदृढ़ करने वाला यह लेखन है।