आगरा, उत्तर प्रदेश
मतान्तरण की घटनाएँ मात्र व्यक्तिगत स्वार्थ का मामला नहीं है, ये उस कट्टर मानसिकता की उपज हैं, जो समाज को भीतर से तोड़ने का षड्यंत्र रचती है। यह मानसिकता कहती है "जो हमारे जैसे नहीं हैं, उन्हें बदल दो, वरना मिटा दो।"और इसी सोच के साथ वह हिन्दू मासूमों को निशाना बनाती है। कभी प्रेमजाल में, कभी आर्थिक लालच से तो कभी भावनात्मक शोषण द्वारा।
उत्तर प्रदेश के आगरा में नाबालिग लड़की को बहलाकर, ब्लैकमेल करके जबरन मतान्तरण कराने का प्रयास इसी खतरनाक विचारधारा का उदाहरण है। दो मुस्लिम युवकों ने दो हिंदू बहनों को फँसाया, फिर उनकी मदद से एक मासूम को अपने जाल में उलझाया। यह मात्र एक अपराध नहीं, अपितु सनातन संस्कृति पर सुनियोजित हमला है। कट्टर मानसिकता की सबसे भयावह बात यह है कि यह ‘धर्म’ के नाम पर ‘धर्मविहीनता’ फैलाती है। यह सहिष्णुता, सम्मान या आध्यात्मिकता नहीं सिखाती—अपितु प्रभुत्व, विस्तार और पहचान मिटाने की भूख को पोषित करती है। यह मानसिकता समाज में विश्वास नहीं, भय बोती है। प्रेम के नाम पर छल करती है। समानता के नाम पर षड्यंत्र रचती है। और सबसे अधिक—यह उन जड़ों को काटने का काम करती है, जिनसे हमारी संस्कृति, हमारी पहचान और हमारा अस्तित्व जुड़ा है। इसलिए आज आवश्यकता है—जाग्रत समाज की, जो सतर्क हो, सजग हो और साहसी हो। सनातन धर्म की आत्मा में जो सहिष्णुता है, उसी में शक्ति है ऐसी कट्टरता का उत्तर देने की। मतान्तरण की हर कोशिश को सामाजिक चेतना, वैचारिक दृढ़ता और कानूनी प्रतिबद्धता से विफल करना ही आज का धर्म है। कट्टर मानसिकता तब हावी होती है जब सभ्य समाज मौन हो जाता है। अब मौन तोड़ने का समय है—सच्चाई, संस्कार और संकल्प के साथ।