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फल की चिंता करने वाला साधक, साधना का आनंद खो देता है – भय्याजी जोशी

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इंदौर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य भय्याजी जोशी ने अरविंद जी जोशी की जीवन-स्मृतियों पर आधारित पुस्तक ‘संघ-साधक’ का विमोचन किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि १०० वर्षों की साधना की यात्रा में संघ ने सामान्य व्यक्तियों को साधक बनने का अवसर प्रदान किया। भय्याजी जोशी ने साधना हेतु साधक में कुछ अनिवार्य गुणों के महत्व को प्रतिपादित करते हुए कहा कि कभी-कभी साधनों से स्नेह हो जाता है, साधन के प्रति स्नेह से आपत्ति नहीं। परंतु स्मरण साध्य का अवश्य रहे। फल की चिंता करने वाला साधक, साधना का आनंद खो देता है। साधना के पथ पर निरंतर निष्काम चलने वाला साधक प्रसन्न रहता है। साधना हेतु अंत: और बाह्य शुद्धता, पूर्ण समर्पण और अपने कार्य प्रति निष्ठा आवश्यक है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने साधना के मार्ग पर सबको साथ लेकर चलना सिखाया है। हम अकेले नहीं, अपितु सबको साथ लेकर चले हैं। आगे भी सभी को साथ लेकर चलेंगे। सबको अपना बनाना है, अपने जैसा बनाने का दुराग्रह नहीं करना है।

अर्चना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘संघ साधक’ का विमोचन गणेश मंडल, इंदौर में एक गरिमामय समारोह में किया गया। यह पुस्तक माधवाश्रम न्यास गौशाला, मंडलेश्वर के संस्थापक व पूर्व अध्यक्ष स्व. अरविंद जी जोशी की जीवन-स्मृतियों पर आधारित है। पुस्तक में उनकी जीवन-स्मृतियों को अत्यंत प्रभावी शैली में प्रस्तुत किया गया है।

विमोचन समारोह में स्व. श्री अरविन्द जी जोशी के परिजनों, व उनके साथ काम करने वाले समाजसेवियों में विचार व्यक्त किये। ‘संघ साधक’ पुस्तक अर्चना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित है और यह माधव वस्तु भंडार, इंदौर पर उपलब्ध है।