देहरादून, उत्तराखण्ड
जनसांख्यिकीय बदलाव से सुरक्षा और संस्कृति पर मंडराता संकट
सीमावर्ती क्षेत्रों में जनसंख्या असंतुलन बढ़ा, देश की सुरक्षा व लोकतंत्र के लिए बनी चुनौती
उत्तराखण्ड में पिछले कुछ सालों में तेजी से ग्राफ बदला है। ग्राफ में ये बदलाव सिर्फ जनसंख्या प्रतिशत का नहीं बल्कि अपराधिक घटनाओं में भी आया है। देवभूमि में लव जिहाद, बलात्कार, हत्याओं की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। वहीं अचानक से अवैध मदरसों की भी बाढ़ सी आ गई है।
वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश से पहाड़ी क्षेत्र वाले इलाकों को अलग कर उत्तराखण्ड बनाया गया। तब उत्तराखंड के मैदानी इलाके जैसे हरिद्वार के रुड़की, मैंगलोर और देहरादून के कुछ क्षेत्रों में ही मुस्लिम आबादी थी। 2001 में जनगणना हुई, जिसकी रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश में तब हिन्दू आबादी 85% थी। लेकिन हिन्दू आबादी के बीच अचानक मुस्लिम आबादी बढ़ती गई और बढ़ती मुस्लिम आबादी से कई बड़ी चुनौतियाँ भी । यह हम नहीं कह रहे बल्कि 2011 में हुई जनगणना के आंकड़े भी इसकी पुष्टि कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार—10 वर्ष में हिन्दू तो सिर्फ 16% बढ़े परन्तु मुस्लिम आबादी में तेजी से उछाल आया और मुस्लिम आबादी 39.99% बढ़ गई। ये आंकड़ा सिर्फ प्रजनन से बढ़ी जनसंख्या का नहीं। बल्कि घुसपैठियों की ओर भी संकेत है।
इसका सीधा सा संदेश है कि देवभूमि के ग्राफ में आया ये बदलाव सामान्य तो बिल्कुल नहीं था। देवभूमि में माहौल बिगाड़ने के लिए षड्यन्त्र के संकेत भी है। यहां बढ़ते अपराध जैसे- बूढ़े मुस्लिम ने हिन्दू मासूम से रेप किया। हिन्दू संन्यासी का भेष रखकर ठगी और इसी की आड़ में मतांतरण जैसे गिरोह चलानाऔर इन सब षड्यन्त्रों को अंजाम तक पहुँचाने के लिए अवैध मदरसों को माध्यम बनाकर विदेशी फंडिंग लेना।
यह गंभीर चेतावनी सेंटर फॉर पालिसी स्टडी के निदेशक पद्मश्री डॉ. जतिंदर कुमार बजाज ने भू दी। उन्होंने कहा - सीमावर्ती इलाकों में तेजी से हो रहे जनसांख्यिकीय बदलाव ने देश की सामरिक सुरक्षा और सांस्कृतिक पहचान के सामने गंभीर संकट खड़ा कर दिया है। बिहार, बंगाल, बांग्लादेश सीमा से सटे क्षेत्रों के साथ-साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में जनसंख्या संतुलन तेजी से बदल रहा है। यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले वर्षों में यह स्थिति राष्ट्रीय सुरक्षा, सामाजिक सौहार्द और लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए भारी संकट बन सकती है। उन्होंने कहा कि जनसंख्या संतुलन में बदलाव की प्रक्रिया कोई नई नहीं है। मुगल काल में इसकी शुरुआत हुई, ब्रिटिश शासन में यह तेज हुई और विभाजन के बाद हालात और अधिक बदल गए। उन्होंने प्रस्तुत आंकड़ों के आधार पर बताया कि भारतीय धर्मों हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध की प्रजनन दर लगातार घट रही है जबकि मुस्लिम जनसंख्या में वृद्धि का रुझान स्पष्ट दिखाई दे रहा है। यह असंतुलन सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान के लिए गंभीर खतरे का संकेत है। पलायन, पर्यावरण, जनसंख्या असंतुलन और युवाओं से जुड़े मुद्दों पर शोध जारी है। जनसंख्या असंतुलन का वैज्ञानिक अध्ययन आवश्यक है, क्योंकि यह लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। उत्तराखंड में भी जनसंख्या असंतुलन का प्रभाव बढ़ रहा है और समाज व प्रशासन को मिलकर जागरूक होकर समाधान की दिशा में काम करना होगा। इस्लाम का विस्तार पूरी दुनिया के लिए गंभीर चुनौती है। जनसंख्या असंतुलन योजनाबद्ध तरीके से फैलाया जा रहा है। उत्तराखंड में सरकार ने अब तक 7500 हेक्टेयर भूमि को अवैध मजारों से मुक्त कराए जाने का कार्य किया है। 400 से अधिक अवैध संरचनाओं को हटाकर सुरक्षा और भूमि संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। यदि समय रहते सांस्कृतिक जागरूकता, नीति निर्माण और समाज की भागीदारी सुनिश्चित नहीं की गई तो देश की आंतरिक सुरक्षा पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। जांच के बाद अवैध मदरसों पर भी ताला लगाने का काम किया जा रहा है.. सरकार की और से ढोंगियों- घुसपैठियों के खिलाफ ऑपरेशन कालेनेमी चालाया जा रहा है। उत्तराखंड की धामी सरकार ने सबसे पहले UCC यानि समान नागरिक संहिता को लागू किया। जिससे बहुविवाह पर न केवल प्रतिबंध लग गया। बल्कि प्रत्येक विवाह का पंजीकरण कराना अनिवार्य हो गया है.. इसके साथ ही प्रदेश के सभी नागरिकों के अधिकार सुरक्षित हो गए हैं।