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पहले रोजगार के लिए छोड़ा पहाड़, अब सपनों को दे रहे उड़ान

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-अल्मोड़ा के दूरस्थ गांव मुलियाधारा में पले-बढ़े हरीश बहुगुणा वर्ष 1998 में धनाभाव के कारण एलएलबी की पढ़ाई छोड़कर दिल्ली चले गए। 22 साल दिल्ली में रहते हुए निजी क्षेत्र में कार्य करते रहे। वर्ष 2020 में वह कोरोना के कारण वापस पहाड़ चले आए।

- हरीश बहुगुणा व उनकी पत्नी माया बहुगुणा बिच्छू घास व बुरांश से विभिन्न उत्पाद बना रहे हैं। वहीं 50 से अधिक बेरोजगारों का गरीबी उन्मूलन भविष्य संवार रहे हैं। बिच्छू घास व बुरांश से बने उत्पादों जैसे लड्डू, साबुन, चाय, पापड़, नमक व जूस की देश के विभिन्न राज्यों के साथ ही विदेशों में मांग है।

अल्मोड़ा। ब्लाक लमगड़ा के हरीश बहुगुणा व उनकी पत्नी माया बहुगुणा बिच्छू घास व बुरांश से विभिन्न उत्पाद बना रहे हैं। वहीं 50 से अधिक बेरोजगारों का गरीबी उन्मूलन भविष्य संवार रहे हैं। बिच्छू घास व बुरांश से बने उत्पादों जैसे लड्डू, साबुन, चाय, पापड़, नमक व जूस की देश के विभिन्न राज्यों के साथ ही विदेशों में मांग है। खास बात यह कि इन उत्पादों में से अधिकांश उत्पाद केमिकल रहित हैं। सरकारी मदद से बहुगुणा दंपती स्वयं और आसपास के बेरोजगारों को स्वरोजगार की दिशा में जोड़ रहे हैं। गणतंत्र दिवस पर केंद्र सरकार की ओर से इस दंपती को दिल्ली आमंत्रित किया गया है।

अल्मोड़ा के दूरस्थ गांव मुलियाधारा में पले-बढ़े हरीश बहुगुणा वर्ष 1998 में धनाभाव के कारण एलएलबी की पढ़ाई छोड़कर दिल्ली चले गए। 22 साल दिल्ली में रहते हुए निजी क्षेत्र में कार्य करते रहे। वर्ष 2020 में वह कोरोना के कारण वापस पहाड़ चले आए। यहीं से उन्होंने पहाड़ में बिखरी हुई उपेक्षित प्राकृतिक वनस्पति को नया रूप देने का कार्य शुरू किया। हरीश बहुगुणा व पत्नी माया बहुगुणा ने मिलकर झाड़पात में जान डालनी शुरू कर दी और

बहुगुणा दंपती की ओर से प्राकृतिक वनस्पतियों से तैयार उत्पादों की मांग इंग्लैंड व यूएसए से भी आती है। यह उत्पाद ग्राहकों को आनलाइन भेजे जाते हैं। वहीं पर्वतीय उत्पादों की मांग दिल्ली, गुजरात, राजस्थान व उत्तर प्रदेश से भी रहती है। अनेक उत्पाद जैसे बिच्छू घास के लड्डू, पापड़, माल्टा खुबानी की कैंडी आंवला उत्पाद विविध साबुन उबटन ड्राई शैंपू आदि बना डाले। वर्तमान में इनका बैनर प्रकृति माई स्वयं सहायता समूह संस्थान क्षेत्र की पहचान बनता जा रहा है। इस

माया बहुगुणा कहती है कि केंद्र सरकार की ओर से चलाए जा रहे महिला सशक्तीकरण अभियान से काफी सहायता मिली। वहीं राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की ओर से भी कार्य में उन्हें राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन का सहयोग मिला। देश में लगने वाली प्रदर्शनियों में यह दंपती हर बार कुछ अलग ले जाकर पहाड़ का प्रतिनिधित्व करता है। कल्याणी इंटरप्राइजेज व प्रकृति माई स्वयं सहायता

बहुगुणा दंपती जागेश्वर, चितई, कसार देवी मंदिर दर्शन को जाने वाले भक्तों को एक दिवसीय निश्शुल्क भोजन और आवास की व्यवस्था करते हैं। साथ ही अदिति आयुर्वेद बिहार के सहयोग से हर महीने की अंतिम तिथि को अपने गांव के मंदिर में आयुर्वेदिक दवाओं का वितरण भी कर रहे हैं। प्रकृति माई संस्थान व्यवसाय के साथ ही पलायन रोकने का एक सामाजिक आंदोलन भी है। उनका कहना है कि यदि कोई व्यक्ति स्वरोजगार स्थापित करने के लिए कार्य सीखने का इच्छुक हो तो उसके लिए भी संस्थान में निशुल्क व्यवस्था है। सहायता की जाती है। हरीश बहुगुणा कहते हैं कि कल्याणी इंटरप्राइजेज व महिलाओं के स्वयं सहायता समूह प्रकृति माई संस्थान की ओर से विभिन्न उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं। समूह संस्थान में 56 लोगों को रोजगार भी मिला है। रिवर्स पलायन और स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए इस दंपती को अयोध्या में शाश्वत हिंदू संगठन की ओर से वर्ष 2024 का श्री अरविंदो पुरस्कार भी प्राप्त हुआ है।