मुरादाबाद
जब मजहब ने इन मुस्लिम महिलाओं को हिजाब और हुक्म में समेटना चाहा, तब नूर फातमा और स्वालेहीन ने बगावत की और लौटी अपने पूर्वजों के धर्म में। मुरादाबाद से आई ये खबर सिर्फ दो मुस्लिम लड़कियों की नहीं, अपितु अपनी अंतरात्मा की पुकार सुन सनातन के जयघोष की है, जब नूर फातमा और स्वालेहीन ने पर्दे, पाबंदियों और जकड़े हुए मजहबी ढांचे से बाहर निकलकर आर्य समाज मंदिर में हिन्दू युवकों से विवाह किया और खुद को नीलम और शालिनी के रूप में नया जीवन दिया। ये कोई चोरी-छिपे किया गया फैसला नहीं था, बल्कि खुलेआम वीडियो जारी कर उन्होंने पूरी दुनिया से कहा 'अब हम हिंदू हैं और इसी पहचान के साथ जियेंगे।' इस्लामिक व्यवस्था में जहाँ सोचने, बोलने, जीने तक की आजादी छिन जाती है, वहीं सनातन ने उन्हें पहली बार वो सांस दी, जिसमें आत्मसम्मान था, स्त्री की गरिमा थी और खुला आसमान था। उनकी आँखों में डर नहीं, बल्कि दृढ़ता थी, उनके शब्दों में कोई झिझक नहीं, बल्कि साफ संदेश था – 'हम जबरन नहीं आए, हम लौटे हैं — अपने घर वापसी की है , अपनी जड़ों से जुड़े हैं और अपने पूर्वजों के धर्म को स्वीकार है ।'