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मन्दिर की दानराशि एवं चल-अचल सम्पत्ति का उपयोग हिन्दू समाज के लिए ही हो- विहिप

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मेरठ, उत्तर प्रदेश

हस्तिनापुर में विहिप की केंद्रीय प्रन्यासी मंडल बैठक के संदर्भ में यह कहा गया है कि मन्दिर हिन्दू-आस्था के केन्द्र तथा पूजा हिन्दू समाज का सहज स्वभाव है। प्राचीन काल से ही मन्दिर धार्मिक जागरण एवं समाज-संचालन के प्रमुख केन्द्र रहे हैं। मन्दिरों द्वारा वेदशाला, आरोग्य शाला, संगीत शाला, गौशाला, मल्लशाला इन पंच शालाओं के साथ-साथ न्यायदान का कार्य भी सम्पादित किया जाता था। अपने देश में जब तक मन्दिर अपनी मूल भूमिका के साथ सक्रिय थे तब तक देश, समाज और परिवार संस्था भी सुरक्षित और संस्कारित थी। मुगल शासनकाल में मन्दिर नष्ट-भ्रष्ट करने का प्रयत्न लम्बे समय तक चला तब सर्व सामान्य समाज ने मन्दिर की रक्षा के लिए स्वयं का बलिदान दिया। मन्दिरों की सम्पन्नता को देखकर अंग्रेज सरकार ने कानून बनाकर मन्दिरों के धन का दुरुपयोग करने का मार्ग ही खोल दिया। अभी तक भारत में राज्य सरकारों द्वारा मन्दिरों के धन का दुरुपयोग चल रहा है। यह कदापि उचित नहीं है। हिन्दू समाज श्रद्धा और आस्था से मन्दिरों में धन अर्पित करता है सरकार द्वारा इस धन से धर्म विरोधी गतिविधियो को प्रोत्साहित किया जाता है। मन्दिरों की जमीन का भी दुरुपयोग होता है। राज्य सरकारें मस्जिद और चर्च को धर्मांतरण और राष्ट्र-विरोधी गतिविधियो को चलाने की खुली छूट देती हैं।

मन्दिर भारत की प्राचीन व्यवस्था के प्रमुख अंग थे। लाखों वर्षों तक हिन्दू समाज ने मन्दिरों का संवर्धन किया है। यहाँ के समाज को मन्दिर प्रबन्धन का दीर्घकालीन अनुभव है। अंग्रेजों ने मन्दिर के धन पर कब्जा करने के लिए कानून बनाए और दुर्भाग्य से स्वाधीनता के पश्चात् भी भारत सरकार ने मन्दिरों की गरिमा और सामाजिक हित की ओर ध्यान न देते हुए अंग्रेजों की नीति को कानून के नाम से आगे बढ़ाया। इसी कारण मन्दिरों की दुर्दशा हुई तथा वही धन का दुरूपयोग हो रहा है।

केरल के प्रसिद्ध शबरीमाला मन्दिर के द्वार पर लगा हुआ करोड़ों रुपये के सोने पर सरकार द्वारा कब्जा किया गया है। वायनाड के विष्णु मन्दिर मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, "मन्दिरों का चढ़ावा और धन भगवान की सम्पत्ति है। इसे केवल मन्दिर के हित में ही उपयोग किया जाए या सुरक्षित रखा जाए। इसे निजी या सरकारी बैंकों को डूबने से बचाने के लिए उपयोग में नहीं लाया जा सकता। मन्दिरों का धन केवल राष्ट्रीय बैंकों में ही रखा जाए, ताकि उचित ब्याज मन्दिरों को प्राप्त हो सके।"

सर्वोच्च न्यायालय ने मद्रास हाईकोर्ट के निर्णय को सुरक्षित रखा जिसमें मन्दिर के कोष से मैरिज हॉल बनाने की अनुमति देने वाले कर्नाटक राज्य सरकार के आदेश को रद्द कर दिया था। कर्नाटक में एक और मामले पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि मन्दिर बोर्ड में केवल हिन्दू होने चाहिए।

तमिलनाडु  - चेन्नई हाईकोर्ट में राज्य सरकार द्वारा यह लिखित रूप से दिया गया:

सन् 1977 से अब तक राज्य सरकार द्वारा मन्दिरों से 5 लाख किलो सोना लेकर उसे पिघलाकर बैंक में रखा गया है। जिससे राज्य सरकार को करोड़ों रुपये का ब्याज मिलता है। सरकार का कहना है की यह धन मन्दिरों के विकास कार्य में लग रहा है। जबकि एक सर्वेक्षण के अनुसार तमिलनाडु  राज्य में अभी तक 12000 मन्दिर बन्द हो गए है। 37000 मन्दिरों में चपरासी से लेकर पुजारी तक एक ही व्यक्ति नियुक्त किया है।

तमिलनाडु  का मन्दिर जमीन घोटाला: 

तमिलनाडु  में मन्दिर के 50 हजार एकड़ जमीन का घोटाला सामने आया है। सन-1984-85 में HRCA विभाग के Record के अनुसार तमिलनाडु  में मन्दिरों की 5 लाख 25 हजार एकड़ जमीन थी। सन् 2019-20 में उसी Department का policy note कहता है कि तमिलनाडु  में मन्दिरों की 4 लाख 78 हजार एकड़ जमीन है। तो हाईकोर्ट ने उन्हें पूछा कि 20 साल में मन्दिरों की 47000 एकड़ जमीन कहाँ गई? वास्तविक बात यह है कि बची हुई 4 लाख 78000 एकड़ जमीन जो सरकार के पास है, उस पर भी अतिक्रमण है। सन 2021 में हाईकोर्ट ने यह जमीन खाली कराने का आदेश राज्य सरकार को दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने फिर हाईकोर्ट को इस मामले में ध्यान केन्द्रित करने को कहा। 16 सितम्बर 2025 को फिर इसी प्रकार का आदेश आया। इस जमीन पर 27 सरकारी अधिकारी, 49 उद्योजक, 38 प्रभावशाली व्यक्तियों का अवैध कब्जा है। ऐसा हाईकोर्ट ने कहा। अभी तक जमीन खाली नहीं हुई है।

तमिलनाडु में "कार्तीगई दीपम्" की परम्परा पर विवाद खड़ा हुआ है। हिन्दू धर्म, प्रकाश का उपासक है, इसलिए दीपावली का पर्व सर्वत्र मनाया जाता है। मदुरई के पास तिरुपरक कुन्द्रम पहाड़ी पर स्थित अरुलमिगु सुब्रमण्य स्वामी मन्दिर में छठी शताब्दी से कार्तिक मास में भगवान मुरुगन के जन्म से जुड़ा दीप प्रज्ज्वलन होता आ रहा है। यह प्राचीन परम्परा छठी शताब्दी से चली आ रही है। सत्रहवीं शताब्दी में मन्दिर के पास बनी मजार के आधार पर अब इस परम्परा का विरोध करते हुए कोर्ट का सहारा लिया गया है।

उच्च न्यायालय ने दीप जलाने की परम्परा को जारी रखने का आदेश दिया तो हिन्दू विरोधी शक्तियां उनके विरोध में महाभियोग लाने का षडयन्त्र रच रही हैं। 100 से अधिक संसद सदस्यों ने हस्ताक्षर कर के महाभियोग का प्रस्ताव लोक सभा अध्यक्ष के समक्ष रखा है। यह इस देश की न्याय व्यवस्था के विरुद्ध देशद्रोही वामपन्थियों के द्वारा की जा रही अवमानना है जो लोकतान्त्रिक भारत के संविधान और न्यायव्यवस्था के लिए बहुत बड़ा खतरा है। 

जुलाई-2024 में आन्ध्र प्रदेश में राज्य सरकार बदलते ही श्री तिरुपति बालाजी मन्दिर में पवित्र प्रसाद के लिए जिस घी का उपयोग किया गया उसमें पाम तेल, जानवरों की चरबी और मछली का तेल पाया गया।

तिरुपति मन्दिर में दान राशि देने वाले भक्तो को आशीर्वाद के रूप में सिल्क की चुनरी भेंट की जाती है। इसमें भी 54 करोड रुपये का घोटाला हुआ है। सन् 2015 से 2025 तक यह भ्रष्टाचार चलता रहा। यह सनातन धर्म की आस्था के साथ कैसा खिलवाड़ हो रहा है।

बिहार में तो 80% मन्दिरों की जमीन पर अवैध कब्जा है। राजस्थान में भी बहुत बड़े पैमाने पर मन्दिरों की जमीन अवैध रूप से बेची जा रही है। आन्ध्रप्रदेश के विशाखापट्टनम में सरकार ने मन्दिरों की 500 एकड़ जमीन बेचने के निर्देश दिए है।

जम्मू कश्मीर -

माता वैष्णों देवी श्राइन बोर्ड के द्वारा संचालित मेडिकल कॉलेज में 50 में से 46 छात्र मुस्लिम हैं। श्राइन बोर्ड में 1200 कर्मचारियों में से 417 मुस्लिम हैं। यह भी हिन्दू भक्तों के दान रूपी धन का दुरुपयोग है।

मन्दिरों में अहिन्दू एवं सनातन के प्रति आस्था शून्य प्रशासकों की नियुक्ति के कारण ही ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण प्रसंग घटित होते हैं अतः आवश्यकता है कि मन्दिर प्रबन्धन मन्दिरों के प्रति श्रद्धावान व्यक्ति एवं संस्थाओं द्वारा संचालित किया जाए।

इस प्रकार से केवल हिन्दू मन्दिरों का धन और जमीनों की लूट की जा रही है। इसलिए सम्पूर्ण देश भर के मन्दिर के लिए एक समान कानून होना आवश्यक है, मन्दिर सरकार के नियन्त्रण से मुक्त होना भी आवश्यक है।

विश्व हिन्दू परिषद के प्रन्यासी मण्डल का स्पष्ट मत है कि Hindu Money for Hindu Causes - हिन्दू मन्दिरों की दानराशि एवं चल-अचल सम्पत्ति का उपयोग केवल हिन्दू समाज के हित के लिए ही हो।