नागपुर, 12 सितम्बर।
ब्रह्माकुमारीज़ नागपुर के विश्व शांति सरोवर का सातवां वर्धापन दिवस नागपुर में मनाया गया। कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। सरसंघचालक जी ने कहा कि ब्रह्माकुमारीज़ मनुष्य के कल्याण का काम है। अपने पूरे राष्ट्र के हित का काम है और संपूर्ण दुनिया को सुख-शांतियुक्त सुंदर बनाने वाला काम है। यह एक पंथ पर तीन-तीन काज हैं। ब्रह्माकुमारीज़ शील और चरित्र जगाते हैं और चरित्र जगाने का आधार है – शरीर-मन-बुद्धि के परे जाकर अपने अंदर की यात्रा करना। संघ भी कहता है कि बनना है तो अंदर से बनो। चरित्र के अंदर शील होता है। बाहर का बोलना, चलना, फिरना ठीक करना है तो अंदर की प्रवृत्ति ठीक होनी चाहिए। उसके लिए गहराई में अंदर उतरकर वहां से हम सब ठीक करते हैं। सबका तरीका अपना-अपना है, लेकिन मूल में एक ही है – अंदर को जगाओ। एक ही उद्देश्य को लेकर परस्पर कार्य करने वालों को परस्पर पूरक होना आवश्यक है। हम आपस में परस्पर सहयोगी होकर चलें, परस्पर बाधक न बनें। जैसे ब्रह्माकुमारीज़ सेवाओं के विस्तार के लिए किसी से कोई खर्चा नहीं मांगते हैं, वैसे ही संघ भी कार्य करता है। संघ को सभी स्वयंसेवक मिलकर चलाते हैं। आज दुनिया की आवश्यकता है कि भारतवासी फिर से दुनिया को सिखाएं। सब अपने हैं। सभी एक परमात्मा की संतान हैं। सारी सृष्टि उसकी बनाई हुई है।
हमारे मन में अपनापन है, तो सुरक्षा का प्रश्न ही नहीं, कोई भी अपना बैरी नहीं है। दुनिया में लोगों को डर लगता है कि यह बड़ा होगा तो हमारा क्या होगा। भारत बड़ा होगा तो हमारा स्थान कहां होगा। इसलिए टैरिफ लागू करो। हमने तो कुछ किया नहीं। यह क्यों है, सात समंदर पार आप लोग हैं, कोई संबंध तो आता नहीं, लेकिन डर लगता है। यह बातें मैं और मेरा के चक्कर में होती हैं। जब यह समझ में आता है कि मैं और मेरा मतलब, हम और हमारा है तो सारी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। विश्व को आज सॉल्युशन चाहिए। उन्होंने अपनी अधूरी दृष्टि से हल निकालने का प्रयास किया लेकिन नहीं मिला, क्योंकि मिलना संभव नहीं है।
मोहन भागवत जी ने कहा कि अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम…. क्योंकि हमें यह कनेक्शन पता है। यह भाव हमारे अंदर है, लेकिन हमारी कृति से भी दिखना चाहिए। भारत पहले से भरपूर है, जरूरत है तो भारतवासियों को भरपूर होने की। इसलिए भारतवासियों को इस तरह का ज्ञान देने वाले समय-समय पर आते हैं।
उन्होंने कहा कि कई तरह की कार्यपद्धति को लेकर काम करने वाले प्रवाह आज भारत में विद्यमान हैं। उसमें एक बहुत बड़ा प्रयास ब्रह्माकुमारीज़ का है। ब्रह्माकुमारीज़ में भैया-बहनों का रिश्ता है तो सारी समस्याएं यहीं खत्म हो जाती हैं। भारत में हाथठेला चलाने वाला भी पेड़ की छांव में आराम से सोता है और अन्य देशों में करोड़ों कमाने वाले भी नींद की गोलियां लेकर सो नहीं पाते हैं। हमारे पास अपनापन है, इसलिए हमारे पास संतोषधन है।
कार्यक्रम में शांतिवन मुख्यालय से पहुंचे अतिरिक्त महासचिव डॉ. बीके मृत्युंजय भाई ने कहा कि आज पूरे विश्व को शांति, प्रेम, सद्भावना, एकता की आवश्यकता है। संयुक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी संतोष दीदी ने कहा कि भारत वह महान भूमि है, जिसने दुनिया को जो विचार दिया है, वह कोई और नहीं दे सकता है। भारत स्वर्ग था, भारत में ही रामराज्य था और हम साथ मिलकर भारत को फिर से रामराज्य बनाएंगे। और भारत सदा विश्वगुरु बनकर सारी दुनिया में चमकेगा। वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका बीके ऊषा दीदी ने राजयोग का अभ्यास कराया। अतिरिक्त महासचिव डॉ. बीके मृत्युंजय भाई, वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका राजयोगिनी ऊषा दीदी और शांतिवन आवास-निवास के प्रभारी बीके देव भाई ने सरसंघचालक जी का स्वागत किया।