भारत की संस्कृति में धर्म और सेवा एक दूसरे के पर्याय हैं। धर्म ही हमारे जीवन का प्राण तत्व है। यही कारण है कि भारत के जन-जन में धर्म तत्व किसी न किसी रूप में स्पंदित होता है। यही हम भारतियों का स्वभाव है। भारत के इसी स्वभाव से अनुप्राणित होकर एक शिक्षिका अपने साथियों के साथ मिलकर अनेक अभावग्रस्त बालक-बालिकाओं के जीवन में शिक्षा रूपी ज्ञान के प्रकाश को फैलाने का संकल्प लिया। सीतापुर के उच्च प्राथमिक विद्यालय बीहट बीरम की शिक्षिका निर्मला भार्गव को पढ़ाने के दौरान निर्बल परिवारों के बच्चों की पीड़ा का अहसास हुआ।
उन्होंने देखा कि कई मेधावी बच्चे सिर्फ आर्थिक कारणों से जूनियर हाईस्कूल के बाद नहीं पढ़ पाते थे। छात्राओं के साथ यह समस्या ज्यादा थी। उन्होंने अपने स्तर से वर्ष 2015 में इस दिशा में शुरुआत की। उन्होंने बीहट बीरम के परिषदीय विद्यालय से कक्षा आठ उत्तीर्ण सुरभि, चंदा, अखिलेश और राजेश को आर्थिक मदद के साथ किताबें भी उपलब्ध कराईं। इसी तरह वह आगे भी छात्र-छात्राओं की मदद करती रहीं। इसकी चर्चा सहेलियों से की तो वे भी जुड़ने लगीं। सबसे पहले लखनऊ के सरोजनी नगर की शिक्षिका अमृता जुड़ीं।
धीरे-धीरे और भी सखियां जुड़ती गईं। अब मधु, गरिमा, सीता, नंदनी समेत 50 महिलाएं उनकी मुहिम में शामिल हैं। इस दल ने बैंक में खाता खोलकर उड़ान नाम से विशेष कोष बनाया। जिसके माध्यम से योग्य निर्धन बालक-बालिकाओं को छात्रवृत्ति प्रदान कि जाती है। निर्मला बताती हैं कि छात्रवृत्ति की पात्रता के लिए कड़े मानक बनाए गए हैं। इसमें विद्यालय के प्रधानाचार्य की संस्तुति के साथ ही छात्र या छात्रा का दो वर्ष तक लगातार अपनी कक्षा में टापर होना आवश्यक है। इसके अलावा तीन सदस्यीय सखियों की टीम संबंधित छात्र-छात्रा के गांव जाकर उनके परिवार की माली हालत का भी पता लगाती है।
इसके बाद छात्रवृत्ति के लिए उसका चयन किया जाता है। इस विशेष कोष के संचालन की बागडोर स्वयं निर्मला संभालती हैं। निगरानी के लिए तीन सदस्यीय समिति भी बना रखी है, जिसमें सेवानिवृत्त शिक्षिका सुशीला, शिक्षिका ममता और लखनऊ की संगीता शामिल हैं। निर्मला बताती हैं कि वर्तमान में 40 बच्चों को पढाई के लिए प्रतिमाह दो हजार रुपये की छात्रवृत्ति दी जा रही है। इसके लिए करीब ढाई लाख रुपये कोष में हैं।
इस अभियान का हिस्सा बनीं नंदनी बताती हैं कि हम सामान्य परिवार से हैं। अपनी दैनिक खर्च से ही इसके लिए धन निकालती हैं। निर्मला भार्गव के अनुसार सेवा कार्य हेतु धन उपलब्ध कराने कि कोई बाध्यता नहीं है जिससे जो संभव होता है वह उतना करता है। इस कोष के दो हजार रुपये मासिक छात्रवृत्ति से मछरेहटा के सूरजपुर के संतोष इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई कर रहे हैं। मछरेहटा के ही गांव अकिल्लपुर की सुरभि दिल्ली में टेक्सटाइल डिजाइन का कोर्स कर रही हैं। किन्हौटी के सर्वेश पालीटेक्निक का कोर्स कर रहे हैं। सामाजिक सहयोग से इस प्रकार का यह कदम प्रशंसा योग्य है जो न केवल निर्धन मेधावी बच्चों के लिए आशा कि एक किरण बना है बल्कि इसने भारत की सेवा परम्परा का एक उत्कृष्ट उदाहरण भी प्रस्तुत किया है।



