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संघ यात्रा के 100 वर्ष-नए क्षितिज-व्याखानमाला

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संघ यात्रा के 100 वर्ष-नए क्षितिज-व्याखानमाला

26, 27, 28 अगस्त को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा दिल्ली के विज्ञान भवन में व्याखानमाला का आयोजन किया गया। इस आयोजन में अलग-अलग वर्ग, क्षेत्र और विषयों से संबंधित गणमान्यों को बुलाया गया और संघ क्या है इस बारे में विस्तृत जानकारी दी गई।

संघ क्या है, कौन इसे चला रहा है और इसका ध्येय क्या है?

अगर ये एक संगठन है तो इनका गुरु कौन है?

क्या ये आध्यात्मिक है? क्योंकि हिन्दुओं की बात करता है।

क्या ये सामाजिक यानि एक एनजीओ है? क्योंकि सेवाकार्यों में सबसे आगे खड़ा दिखाई देता है।

क्या ये राजनीतिक है? क्योंकि वर्तमान सरकार के विचार और नीतियां संघ विचारों से मेल खाती हैं।

क्या इसका कोई लेखा-जोखा, नीति तय है?

स्वयंसेवक होने की दक्षता क्या है?

स्वयंसेवक बनने के बाद कोई पहचानपत्र मिलता है?

ये कैसे तय होता ही फलाना व्यक्ति संघ का स्वयंसेवक है?

स्वयंसेवक बनने के बाद कोई प्रमाणपत्र मिलता है?

संघ ने अनेकबाधाओं को पार कर 100 वर्ष कैसे पूर्ण कर लिए?और अब संघ कार्य के नए क्षितिज कौन तय कर रहा है? और नए क्षितिज से तात्पर्य क्या है? संघ नए क्षितिज की बात क्यों कर रहा है?

ऐसे कई प्रश्न है तो जन सामान्य के मन में उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं। सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने पिछले तीन दिनों के पहले दो दिन इन प्रश्नों का समाधान देने का काम किया। संघ क्या है ये बताते हुए उन्होंने कहा- संघ में सबकुछ स्वयंसेवक हैं। फिर स्वयंसेवक कौन ये बताते हुए कहा- संघ की शाखा में स्वयंसेवकों का निर्माण होता है। तो सबसे महत्वपूर्ण क्या हुआ- संघ की शाखा। शाखा कौन चलाता है, स्वयंसेवक। संघ के विचारों पर काम कौन करता है, स्वयंसेवक। संघ की पहचान क्या है, स्वयंसेवक। वे स्वयंसेवक जो शाखा रूपी भट्ठी में तैयार किए जाते हैं। इन्हें कौन तैयार करता है, फिर वही उत्तर- स्वयंसेवक। कुल मिलाकर एक बात तो समझ आई कि संघ में जो कुछ है वो शाखा और स्वयंसेवक ही हैं।

अब प्रश्न- स्वयंसेवक होने की पहचान क्या है? तो सरसंघचालक ने बताया कि स्वयंसेवक का आचरण ही उसकी पहचान हैं। उन्होंने कहा आपको संघ को समझना है तो शाखा में ही जाना पड़ेगा।

फिर प्रश्न- संघ करता क्या है? इसका जवाब भी सरसंघचालक जी के व्याखानमाला में मिला कि संघ वही करता है कि जो स्वयंसेवक तय करता है।

फिर प्रश्न- संघ में स्वयंसेवकों को कोई प्रमाणपत्र मिलता है क्या या कुछ और? इसका जवाब मिला संघ में मिलता कुछ नहीं, जो है स्वयंसेवक के पास वो भी चला जाता है। हिम्मती ही संघ का काम करते हैं।

फिर प्रश्न- जब कुछ मिलता नहीं, न नाम, न प्रमाण पत्र और न कुछ और बल्कि चला ही जाता है तो फिर कौन है जो संघ के काम के लिए अपना सर्वस्व लगा देते हैं?

उत्तर- माँ भारती के सच्चे सपूत।

फिर प्रश्न- संघ की शाखा में स्वयंसेवक किन कसौटियों पर तैयार किए जाते हैं, कैसे पता चलता है कि अब ये युवा स्वयंसेवक बन गया है?

उत्तर- जिन युवाओं में स्वार्थ रहित शुद्ध सात्विक प्रेम जागृत हो जाए, जो राष्ट्र के लिए मरने-जीने के लिए तैयार हों।

अब प्रश्न- संघ की100 वर्ष की यात्रा कैसे पूर्ण हुई, और संघ नए क्षितिज की बात क्यों कर रहा है?

उत्तर- अपनत्व के सूत्र से संघ यात्रा के 100 वर्ष सफलतापूर्वक पूर्ण हुए और नए क्षितिज से तात्पर्य भारत को विश्वगुरू बनाने से है।

परन्तु संघ बखूबी समझता है कि विश्वगुरू पद की क्या गरिमा है?विश्वगुरू यानि जो पूरे विश्व का मार्गदर्शक हो। जो पूरे विश्व को विकास के राह पर एकसाथ ले चले। वैसा विश्व जहां शान्ति, अपनत्व और प्रेम का भाव बसा हो। विश्वगुरू बनने के लिए पद के अनुरूप राष्ट्र के आचरण भी होने चाहिए। इन्ही आचरण को प्रत्येक हिन्दू में लाने के लिए संघ पंचपरिवर्तन की बात कर रहा है।

नए क्षितिज में संघ समाज ही नहीं, सम्पूर्ण विश्व को एक सूत्र में पिरोने के प्रयास में जुटा है। संघ के स्वयंसेवकों का मानना है कि जब तक सभी में सद्गुण, सबके लिए समान अवसर नहीं होंगे ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की बात अधूरी है और भारत के पास ही वो धर्म है जिसमें ये भाव निहित है।