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71 दलित व्यक्तियों को मिलेगी महामंडलेश्वर की उपाधि

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महाकुंभ 2025 में 71 दलित व्यक्तियों को महामंडलेश्वर की उपाधि देने का निर्णय जूना अखाड़ा द्वारा लिया गया है। यह पहल सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए की जा रही है और इसका उद्देश्य दलित समुदाय के धार्मिक अधिकारों को मान्यता देना है। इसके अलावा, बौद्ध और ईसाई धर्म में धर्मांतरण को रोकने के लिए मंदिरों और मठों को जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। इस कदम को हिंदू धर्म में समावेशिता के रूप में देखा जा रहा है।

देश में 13 अखाड़ों को मान्यता मान्यता प्राप्त 13 अखाड़ों के संत, महंत और महामंडलेश्वर को कुंभ के दौरान मेले में सुविधा और पेशवाई में निकलने का मौका मिलता है। हालांकि, उज्जैन 2016 में हुए कुंभ मेले के दौरान किन्नर अखाड़ा भी अस्तित्व में आया। लेकिन, अखाड़ा परिषद ने उसे मान्यता देने से मना कर दिया। बाद में किन्नर अखाड़ा श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा के हिस्से के रूप में शामिल किया गया। अलग मान्यता देने को लेकर विरोध चल रहा है।

फिलहाल, तीन संप्रदायों के अखाड़े हैं, जिनमें महामंडलेश्वर का पद होता है। ये तीनों संप्रदाय अलग-अलग हैं। इनमें शैव (शिव को मानने वाले), वैष्णव संप्रदाय (विष्णु और उनके अवतारों को मानने वाले) और उदासीन संप्रदाय शामिल हैं। इसमें शैव संप्रदाय के सात अखाड़े हैं। वैष्णव और उदासीन संप्रदाय के तीन-तीन अखाड़े हैं।

इसलिए अहम है महामंडलेश्वर पद उज्जैन, प्रयागराज, नासिक, हरिद्वार में हर 12 साल में एक जगह कुंभ का आयोजन होता है। प्रयागराज और हरिद्वार में हर 6 साल में अर्धकुंभ लगता है। कुंभ और अर्धकुंभ में स्नान के दौरान इन सभी अखाड़ों को विशेष सुविधाएं मिलती हैं। स्नान के लिए विशेष प्रबंध होते हैं। इनके स्नान के बाद ही आम श्रद्धालु स्नान कर सकते हैं। कुंभ के दौरान सबसे ज्यादा साधु, अखाड़ों में प्रवेश करते हैं।

संत समाज में महामंडलेश्वर पद बड़ा ओहदा होता है। वे अपने शिष्य भी बना सकते हैं। उनका लोगों से जुड़ाव रहता है। वे जहां भी जाते हैं, उनका अलग प्रोटोकॉल होता है। कुंभ के शाही स्नान में महामंडलेश्वर रथ पर सवार होकर निकलते हैं। कुंभ मेले के दौरान VIP ट्रीटमेंट मिलता है।


जानिए, महामंडलेश्वर कौन बन सकता है? अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी महाराज बताते हैं- महामंडलेश्वर बनने के लिए किसी खास डिग्री की जरूरत नहीं होती। कोई सीनियॉरिटी नहीं चाहिए होती। यानी सबसे पहली स्टेज वाला संन्यासी भी सीधे महामंडलेश्वर बन सकता है। जरूरत है, तो सिर्फ आपके आर्थिक रूप से संपन्न, लोगों पर प्रभुत्व और धर्म में रुचि की।

वैसे, साल 2022 में अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी महाराज ने हरिद्वार में कहा था कि कई महामंडलेश्वर अनपढ़ हैं, जो अनर्गल बयान देते रहते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए महामंडलेश्वर बनने के लिए आचार्य की डिग्री अनिवार्य की जाएगी। इसके बाद इसे लागू भी किया गया।

पहले भी एससी-एसटी समाज से बनाए गए हैं महामंडलेश्वर इसके पहले जूना अखाड़ा ने 2018 में अनुसूचित जाति के कन्हैया प्रभुनंद गिरि को महामंडलेश्वर बनाया था। 2021 में हरिद्वार कुंभ में 10 एससी समाज के संतों को महामंडलेश्वर बनाया था। अप्रैल 2024 में महेंद्रानंद गिरी को जगद्गुरु और कैलाशांनद गिरी को महामंडलेश्वर की उपाधि दी। इसके अलावा गुजरात के साइंस सिटी सोला अहमदाबाद में मंगल दास, प्रेम दास, हरि प्रसाद और मोहन दास बाबू को महामंडलेश्वर की उपाधि दी गई।

अब महाकुंभ में गुजरात के 15, महाराष्ट्र के 12, छत्तीसगढ़ के 12, झारखंड के 9, मध्य प्रदेश-केरल के आठ-आठ, ओडिशा के 7 एससी-एसटी समाज के लोगों को महामंडलेश्वर की उपाधि दी जाएगी। ये महामंडलेश्वर हरिद्वार, नासिक, उज्जैन, प्रयागराज, वाराणसी, कोलकाता, अहमदाबाद, गांधीनगर समेत देश के अन्य शहरों में स्थित अखाड़े के मठ-मंदिरों का संचालन करेंगे। इनके अलावा एससी-एसटी समाज के 500 लोगों को संन्यास की दीक्षा दी जाएगी।

महामंडलेश्वर को लेकर विवाद भी रहा है 15 जुलाई, 2024 को गोपनीय जांच के बाद परिषद ने ऐसे 13 महामंडलेश्वर और संत निष्कासित कर दिए हैं। वहीं, 112 संतों को नोटिस थमाया गया है। 10 मई, 2024 को जयपुर के महामंडलेश्वर नर्मदाशंकर ने महामंडलेश्वर मंदाकिनी पर आचार्य महामंडलेश्वर बनाने का झांसा देकर 8 लाख 90 हजार रुपए लेने की FIR दर्ज कराई थी।

मंदाकिनी को महामंडलेश्वर पद से हटा दिया गया। 6 मई, 2024 निरंजनी अखाड़े के महंत सुरेश्वरानंद पुरी महाराज ने महामंडलेश्वर मंदाकिनी पुरी उर्फ ममता जोशी पर महामंडलेश्वर की उपाधि दिलवाने के बदले 7.50 लाख रुपए लेने की FIR दर्ज कराई।

साल 2017 में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने 14 बाबाओं की लिस्ट जारी कर उन्हें फर्जी करार दिया था। परिषद ने तय किया था कि किसी को संत की उपाधि देने से पहले पड़ताल की जाएगी। साल 2017 में राधे मां से महामंडलेश्वर की पदवी जूना अखाड़े ने छीन ली थी। अखाड़े राधे मां का नाम फर्जी बाबाओं की सूची में डाल दिया था।

एक साल बाद फिर उनके माफीनामे के बाद महामंडलेश्वर की पदवी लौटा भी दी थी। अगस्त 2015 में नोएडा के शराब कारोबारी रहे सचिन दत्ता को निरंजनी अखाड़े का 32वां महामंडलेश्वर बना दिया गया। नाम रखा गया सच्चिदानंद गिरि महाराज। 6 दिन बाद पद छीन लिया गया था।