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उल्टी मूर्तियों को ठीक करे एएसआई

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गत दिनों मार्च में दिल्ली के साकेत न्यायालय में कुतुब मीनार से जुड़े एक मामले की सुनवाई हुई। इसमें अदालत ने एक ऐसी टिप्पणी कर दी, जिससे जिहादियों के चेहरे लटक गए हैं। सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने कहा कि चूंकि कुतुब मीनार और कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद को 27 जैन मंदिरों को तोड़कर बनाया गया है इसलिए वहां हिंदुओं को पूजा का अधिकार मिलना चाहिए। इस पर न्यायालय ने कहा कि, चलो मान लिया कि कुतुब मीनार परिसर में पहले मंदिर थे और उनको तोड़कर ही कुतुब मीनार बनाया गया है, लेकिन अब आप किस आधार पर याचिका दायर कर रहे हैं कि वहां हिंदुओं को पूजा का अधिकार मिले? न्यायाधीश महोदय ने यह भी पूछा कि क्या आप वर्तमान ढांचे को नष्ट करना चाहते हैं? इस पर हरिशंकर जैन ने जवाब दिया कि हिंदू धर्म के अनुसार अगर एक बार किसी मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा कर दी जाती है तो वह सदैव मंदिर ही रहता है। भले ही मंदिर के ढांचे को ध्वस्त ही क्यों न कर दिया जाए? उन्होंने यह भी कहा कि वे यह बिल्कुल भी नहीं चाहते कि जो वर्तमान ढांचा है, उसे नष्ट कर दिया जाए, लेकिन परिसर के अंदर हिंदुओं को पूजा- पाठ का अधिकार दिया जाना चाहिए।

इस पर न्यायालय ने पूछा कि आखिर आपके पास इसका क्या आधार है कि मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा हुई थी? इसके उत्तर में हरिशंकर जैन ने कहा कि आज भी परिसर में लौह स्तंभ मौजूद है और इस पर श्लोक लिखे हुए हैं, जिनमें यह बताया गया है कि लौह स्तंभ विष्णु स्तंभ की पताका है। उन्होंने यह भी कहा कि यह काफी दुखद है कि परिसर में भगवान की मूर्तियां अपमानजनक स्थिति में लगी हुई हैं। इस पर अदालत ने कहा कि कम से कम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को मूर्तियों को ऐसी स्थिति में लाना चाहिए जिससे कि किसी की आस्था को ठेस न पहुंचे। मूर्तियों की अपमानजनक स्थिति में होने पर न्यायाधीश द्वारा चिंता जताना भी हिंदुओं की एक बड़ी सफलता है। कुतुब मीनार जैसे मामलों में अधिकांश हिंदुओं को कोई रुचि नहीं है। इसके बाद भी हरिशंकर जैन जिस जबरदस्त तरीके से इस मामले को उठा रहे हैं, उसी का परिणाम है कि साकेत न्यायालय के न्यायाधीश को उपरोक्त टिप्पणी करनी पड़ी है। अब यह देखना होगा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण कब और कैसे मूर्तियों को ठीक स्थिति में लाता है।