सोनभद्र, उत्तर प्रदेश
मिशनरी नेटवर्क की एक और षड्यंत्र का खुलासा - 580 वनवासियों की वापसी बनी सनातन की ललकार
580 वनवासी - जो कभी मजबूरी में अपने मूल धर्म से विमुख हुए थे आज गर्व से अग्नि के समक्ष सनातन की शपथ ले रहे हैं। यह मात्र घर वापसी नहीं थी, यह आत्मबोध था । कभी जो आँगन तुलसीविहीन हो गया था, जहाँ माँ के हाथों से पूजा की थाली छिनकर मिशनरी बाइबल आ गई थी, अब वहाँ पुनः शंखनाद हो रहा है। हर वो दीप जिसे ‘सेवा’ के नाम पर बुझा दिया गया था अब धर्म की लौ और श्रद्धा की आस्था से प्रज्वलित हो चुका है। मिशनरियों ने लालच का जाल बिछाया निःशुल्क शिक्षा, सस्ती दवा और झूठे सपनों का भ्रमजाल। उन्होंने कहा कि सनातन कुछ नहीं देता, उसका कोई मोल नहीं, उसके उपवास, व्रत, मंत्र, देवी-देवता सब ‘मिथक’ हैं और गरीबी से जूझते इन वनवासियों ने वह झूठ खरीद लिया — अपनी पहचान गिरवी रखकर। परंतु अब यह भ्रम टूट चुका है। अब इन 580 चेहरों पर ग्लानि नहीं, गर्व है। अब उनके मन में संकोच नहीं, स्वाभिमान है। वे लौटे हैं उस धर्म में, जिसने उन्हें प्रकृति से जोड़ा, परंपरा से जोड़ा, पूर्वजों से जोड़ा। वे लौटे हैं उस संस्कृति में, जिसने ‘धर्म’ को जीवन का सार माना और यही है सनातन जिसे मिटाने का हर षड्यंत्र अंततः परास्त होता है। पीलीभीत की तरह सोनभद्र में भी एक बार फिर ये बात साबित हो गयी है ....
यह सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं था, यह सनातन की आत्मा का पुनर्जागरण था। हर अग्निकुंड के सामने खड़ा व्यक्ति इस बात का प्रतीक था कि जब तक सनातन जीवित है, कोई भी विदेशी षड्यंत्र इसकी जड़ों को काट नहीं सकता। यह वह भारत है जहाँ सेवा के नाम पर छल नहीं चलता। जहाँ धर्म भूख से नहीं, आत्मा से तय होता है। और जहाँ एक बार जो सनातनी हुआ, वह सदा सनातनी ही रहता है। आज सोनभद्र गवाह बना उस घड़ी का, जब 580 लोगों ने न मात्र सनातन धर्म में घर वापसी की अपितु इतिहास रचा।