-आजीविका, आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान की ओर बढ़ता कदम
-पलायन पर लगाम, खेती में नई जान, महिलाएं बन रही हैं पहाड़ की नई शक्ति
भीमताल : उत्तराखण्ड के पर्वतीय इलाकों में जहां कभी पलायन की चर्चा आम थी, अब वहीं की मिट्टी से आत्मनिर्भरता की सुगंध आने लगी है। एक समय था जब गांव खाली हो रहे थे, खेत बंजर हो रहे थे और युवाओं के पास विकल्प नहीं था। लेकिन अब, तकनीक और योजना के सही समावेश से इन गांवों की तस्वीर बदलने लगी है। मुख्यमंत्री कृषि विकास योजना के तहत फार्म मशीनरी बैंक की पहल ने महिला कृषकों की जीवन में बड़ा बदलाव ला दिया है।
भीमताल, धारी, बेतालघाट, रामगढ़ और ओखलकांडा जैसे ब्लॉकों में अब तक 38 स्वयं सहायता समूहों को फार्म मशीनरी बैंक के जरिए आधुनिक कृषि यंत्र उपलब्ध कराए जा चुके हैं। इस योजना के तहत लगभग पांच लाख रुपये के कृषि यंत्रों पर 80 प्रतिशत अनुदान दिया जा रहा है। इससे महिलाओं को केवल खेती करने में सुविधा नहीं हो रही, बल्कि वे इन यंत्रों से दूसरों की खेती कर अतिरिक्त आमदनी भी अर्जित कर रही हैं।
एक खेत नहीं, कई जीवन बदल रहे हैं ये यंत्र
पहाड़ की महिलाओं ने न केवल अपनी खेती को वैज्ञानिक तरीके से समृद्ध किया है, बल्कि आटा चक्की, पावर वीडर, ब्रश कटर, स्प्रेयर जैसे यंत्रों से गांव के अन्य कृषकों को भी सेवा प्रदान कर आय का नया मार्ग तैयार किया है। ये महिलाएं अब आलू, मटर, गोभी, अदरक, हल्दी, टमाटर, कीवी, सेब जैसे फलों और सब्जियों की उन्नत खेती कर रही हैं, जिससे उनके परिवार की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो रही है।
महिलाओं की मेहनत बन रही है मिसाल
हर स्वयं सहायता समूह में औसतन 10 महिलाएं काम कर रही हैं, यानी लगभग 380 महिलाएं सीधे इस योजना से लाभान्वित हो चुकी हैं। इनके यंत्रों से करीब 2000 ग्रामीणों को खेती में सहूलियत मिल रही है। अब महिलाएं आत्मनिर्भर बनने के साथ ही गांव की रीढ़ बनकर एक प्रेरणा स्रोत के रूप में भी उभर रहीं हैं।
कृषि विभाग की भूमिका भी सराहनीय
सहायक कृषि अधिकारी राजीव कुमार और प्रभारी मुख्य कृषि अधिकारी रितु कुकरेती के अनुसार, यह योजना सिर्फ यंत्र देने तक सीमित नहीं है। महिलाओं को प्रशिक्षण, मरम्मत की जानकारी और फसल चक्र की समझ भी दी जा रही है। इससे खेती न केवल आसान हुई है, बल्कि उत्पादकता और लाभ में भी बढ़ोत्तरी हुई है। पहाड़ की महिलाएं अब ‘मजबूरी में खेती’ नहीं कर रहीं, बल्कि ‘समृद्धि के लिए खेती’ कर रही हैं। यह बदलाव न केवल पलायन को रोक रहा है, बल्कि पर्वतीय अंचलों को आत्मनिर्भरता की राह पर अग्रसर कर रहा है। यह कहानी है उन आशाओं की, जो बीज बनकर खेतों में बोई गई और मेहनत से सिंचकर अब जीवन की फसल बन चुकी है।