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बच्चों में संस्कार जागरण

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बच्चों में संस्कार जागरण 

संस्कार, हां यही शब्द सही है। हम अगर इसे धर्म कहते हैं तो उससे जोड़ देते हैं तब यह आजकल की युवा पीढ़ी को ज्यादा समझ नहीं आता। हमें अपने धर्म से जुड़ी बातों को, हमारे संस्कारों को एक सही तरीके से, तार्किक रूप से बच्चों के सामने रखना चाहिए। संस्कार तो हम वैसे भी शुरू से नैतिक शिक्षा के रूप में सिखाते ही हैं। 

मैंने अधिकतर महिलाओं को कहते सुना है, महिलायें इसलिए कह रही हूं क्योंकि शायद माँ ही अपने बच्चों को संस्कार सिखाती है। उन्हें ही यह उत्तरदायित्व दिया गया है। मैंने माताओं को अक्सर कहते सुना है कि हमारे बच्चे पूजा नहीं करते, शाम को दीपक नहीं जलाते, मंत्र उच्चारण नहीं करते। आजकल का युवा यह सब नहीं करना चाहता क्योंकि वो आलोचनात्मक व विवेकपूर्ण सोच रखता है। अगर हम यह सब उन्हें विज्ञान से जोड़कर समझायें तो ही कारगर होगा। 

हमारे सबसे प्राचीन ग्रन्थ वेद हमें प्रकृति के रख-रखाव की प्रेरणा देते हैं। वेद हमें बताते हैं कि सूरज, पृथ्वी, जल, वायु सब कितने महत्वपूर्ण हैं, सौर ऊर्जा के कितने लाभ हैं। यह बातें बच्चा विद्यालय में भी पढ़ता है कि कैसे सौर ऊर्जा पेड़ों को भोजन बनाने में मदद करती है। अगर हम यह सब उन्हें बचपन से ऐसे ही समझाएं तो निश्चय ही वह प्रकृति के इन स्रोतों के महत्व को समझेंगे और उनका रख-रखाव करेंगे, सूर्य के तेज को समझेंगे और शायद उसकी आराधना और जल अर्पण भी करने लगें। 

हिन्दू संस्कृति में कितने मंत्र हैं। क्या हमने कभी इनका सही उच्चारण अपने बच्चों को सिखाया है? वेद मंत्र को सही उच्चारण के साथ ही पढ़ना होता है। क्या हमने बच्चों को यह बताया है कि ऐसे उच्चारण से एक ध्वनि उत्पन्न होती है जिससे हमारी इन्द्रियां और नसें शांत हो जाती हैं? जैसे शिव पंचाक्षर मंत्र का अर्थ है पांच अक्षर का मंत्र - ऊँ, न, मः, शि, वा, य - का ऐसे ही उच्चारण करना होता है।

योग जो सदियों से हिन्दू धर्म में प्रचलित है, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक रामबाण उपाय है। हमें बच्चों को यह योग विज्ञान अवश्य सिखाना चाहिए। बच्चों को अगर हम योग का सही तरीका और इसके लाभ सिखाएं तो हमें किसी मनोवैज्ञानिक या कॉउंसलर की आवश्यकता नहीं होगी।

उन्हें डराकर नहीं कि ऐसा नहीं करोगे तो ऐसा हो जायेगा बल्कि उन्हें समीक्षा और विश्लेषण द्वारा समझाकर, उसका महत्व बताकर और उसे वैज्ञानिक पक्ष से जोड़कर बताएंगे तो बच्चे समझेंगे भी और अपनायेंगे भी। इस  लेख के माध्यम से हिन्दू धर्म के संस्कारों को अपने बच्चों में जागृत करने के विषय को लेकर अपना पक्ष रखने का प्रयास किया है। आशा करती हूँ, माताओं बहनों को जागरूक करने में सहायक होगा ताकि वे पढ़ें, सीखें और अपने बच्चों में संस्कारों को सम्प्रेषित कर पाएं।


लेखिका महर्षि दयानंद विद्यापीठ पब्लिक स्कूल गोविंदपुरम, गाजियाबाद में प्राचार्या है।