जयपुर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. मनमोहन वैद्य ने कहा कि भारत समाज आधारित राष्ट्र है. हमारे राष्ट्र की संकल्पना का आधार आध्यात्मिक है. कोरोना जैसी महामारी के समय समाज द्वारा संक्रमण का खतरा होने के बावजूद एक दूसरे का सहयोग करना, इसका ताजा उदाहरण है. उन्होंने रविन्द्र नाथ ठाकुर के स्वदेशी समाज का उदाहरण देते हुए कहा कि हमारे यहां परम्परागत रूप से न्याय व्यवस्था, विदेश, सुरक्षा जैसे विभाग राजा के पास होते थे. जबकि चिकित्सा, शिक्षा, कॉमर्स, ट्रेड, इंडस्ट्री, मंदिर, मेला, संगीत, नाटक, कला आदि समाज की व्यवस्था थी. इसके लिए धन राजकोष से नहीं, बल्कि समाज देता था.
सह सरकार्यवाह जयपुर में चल रहे जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के दूसरे दिन अपनी पुस्तक ‘वी एंड द वर्ल्ड अराउंड’ पर चर्चा कर रहे थे. उन्होंने कहा कि इंडिया शब्द अंग्रेजों ने भारत आने के बाद दिया था. जबकि भारत प्राचीनकाल से है. भारत कहने से प्राचीनता का बोध होता है. भारत को भारत कहना अधिक उचित है. वसुधैव कटुंबकम का विचार भारत का है. हमारे यहां से भी लोग दुनिया में व्यापार करने गए, लेकिन उन्होंने वहां के लोगों को अरब और यूरोप की तरह कंवर्ट नहीं किया.
हिन्दू शब्द की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि लोकमान्य तिलक के हिन्दू शब्द के अर्थ को सावरकर ने अधिक विस्तारित व्याख्या दी. सावरकर की हिन्दू संकल्पना को द्वितीय सरसंघचालक माधवराव गोलवलकर जी (श्रीगुरु जी) ने युगानूकल परिभाषित करते हुए कहा था कि जिनके समान पूर्वज हों, एक संस्कृति एवं भारत को माता मानते हों, वह सभी हिन्दू हैं.
उन्होंने इंडोनेशिया का उदाहरण देते हुए कहा कि, एक मुस्लिम देश होते हुए भी वहां ‘रामलीला’ का आयोजन किया जाता है. इंडोनेशिया का मुस्लिम उपासना पद्धति बदलने के बावजूद भगवान राम को मानते हैं. उन्होंने कहा कि संघ की शाखा में मुस्लिम- ईसाई भी आते हैं और दायित्व लेकर काम करते हैं. भारत में जन्म लेने वाले सब हिन्दू है, लेकिन व्यक्तिगत, पारिवारिक, व्यवसायिक व सामाजिक व्यवहार एवं आचरण से हिन्दूपन प्रकट होना चाहिए. जाति व्यवस्था की बात करते हुए कहा कि जातिगत ऊंच-नीच और भेदभाव गलत है.