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आज अयोध्या में श्रीरामलला के साथ भारत का स्व लौट कर आया है- सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी

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आज का आंनद शब्दों में वर्णनातीत है. उसके वर्णन करने का प्रयास पहले के वक्तव्यों में अच्छा हो गया है. ये भी बता दिया गया है और हम जानते भी हैं कि आज अयोध्या में रामलला के साथ भारत का ‘स्व’ लौटकर आया है. संपूर्ण विश्व को त्रासदी से राहत देने वाला एक नया भारत खड़ा होकर रहेगा, इसका प्रतीक आज का कार्यक्रम बन गया है. ऐसे समय में आपके उत्साह और आनंद का वर्णन कोई नहीं कर सकता. हम यहां पर अनुभव कर रहे हैं, और पूरे देश में यही वातावरण है. छोटे-छोटे मंदिरों के सामने दूरदर्शन पर इस कार्यक्रम को देखने-सुनने वाले हमारे समाज के करोड़ों बंधु, जो वहां पहुंच नहीं पाए ऐसे घर-घर के हमारे नागरिक-सज्जन, माता-भगिनी सब भाव-विभोर हैं. सबमें आनंद है, सबमें उत्साह है. ऐसे समय में जोश की बातों में थोड़ी सी होश की बात करने का काम मुझे ही दिया जाता है.

प्रधानमंत्री जी ने तप कियाअब हम भी करें

आज हमने सुना कि प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव में पधारने से पूर्व प्रधानमंत्री जी ने कठोर व्रत रखा. जितना कठोर व्रत रखने को कहा था, उससे कई गुणा अधिक कठोर व्रताचरण उन्होंने किया. मेरा उनसे पुराना परिचय है. मैं जानता हूं वो तपस्वी हैं ही. परंतु वो अकेले तप कर रहे हैं तो हम क्या करेंगे? अयोध्या में रामलला आए. अयोध्या से बाहर वे क्यों गए थे? अयोध्या में कलह हुआ था! अयोध्या उस पुरी का नाम है, जिसमें कोई द्वंद्व नहीं, जिसमें कोई कलह नहीं, जिसमें कोई दुविधा नहीं. परंतु वो हुआ और राम 14 वर्ष के लिए वनवास में गए. वो सब ठीक होने के बाद दुनिया के कलह को मिटाकर वे वापस अयोध्या आए. आज रामलला फिर से पांच सौ साल के बाद वापस आए हैं. जिनके त्याग, तपस्या, प्रयासों से आज हम ये स्वर्ण दिवस देख रहे हैं, उनका स्मरण प्राण प्रतिष्ठा के संकल्प में हम लोगों ने किया. उनकी तपस्या को, उनके त्याग को, उनके परिश्रम को शत बार, सहस्त्र बार, कोटि बार नमन है. आज के दिन इस युग में रामलला के यहां फिर वापस आने का इतिहास जो-जो श्रवण करेगा वो राष्ट्र के लिए कर्म प्रवण होगा और उसके राष्ट्र का सब दुख दैन्य हरण होगा. ऐसा इस इतिहास का सामर्थ्य है. परंतु उसमें हमारे लिए कर्तव्य का आदेश भी है. प्रधानमंत्री जी ने तप किया, अब हमको भी तप करना है.

प्रामाणिक आचरण से आएगा रामराज्य

रामराज्य आने वाला है. वो कैसा था –

दैहिक दैविक भौतिक तापा. राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥

सब नर करहिं परस्पर प्रीती. चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥

सब निर्दंभ धर्मरत पुनी. नर अरु नारि चतुर सब गुनी॥

सब गुनग्य पंडित सब ग्यानी. सब कृतग्य नहिं कपट सयानी॥

यह रामराज्य के सामान्य नागरिकों का वर्णन है. हम भी इस गौरवमय भारतवर्ष की संतानें हैं. कोटि-कोटि कंठ उसका जयगान करने वाले हमारे हैं. हमको इस प्रकार के व्यवहार को रखने का तप आचरण करना पड़ेगा. हमको भी सारे कलह को विदाई देनी पड़ेगी. छोटे-छोटे परस्पर मत रहते हैं, छोटे-छोटे विवाद रहते हैं, उनको लेकर लड़ाई करने की आदत छोड़ देनी पड़ेगी. रामराज्य में आखिर सामान्य नागरिक कैसे थे—निर्दंभ, प्रामाणिकता से आचरण करने वाले, केवल बातें करने वाले नहीं, बातें करके उसका अहंकार पालने वाले नहीं थे, काम करते थे, आचरण करते थे. उनमें अहंकार नहीं था. वो ऐसे थे और धर्मरत थे यानी क्या थे? इस पर कठिन भाषा में प्रवचन बहुत लंबा हो सकता है.

धर्म के चार मूल्य श्रीमद्भागवत में बताये गए हैं. वे चार मूल्य हैं सत्य, करुणा, शुचिता, तपस. उनका आज हमारे लिए युगानुकूल आचरण क्या है? सत्य कहता है कि सब घट में राम हैं. ब्रह्म सत्य है. वही सर्वत्र है. हमको ये जानकर आपस में समन्वय से चलना होगा. क्योंकि हम चलते हैं तो सबके लिए चलते हैं. सब हमारे हैं. इसलिए हम चल पाते हैं. इसलिए आपस में समन्वय रखकर व्यवहार करना धर्म के पहले पैर यानी सत्य का आचरण है. करुणा दूसरा कदम है. उसका आचरण है सेवा और परोपकार. सरकार की कई योजनाएं गरीबों को राहत दे रही हैं. सब हो रहा है. लेकिन हमारा भी कर्तव्य है. ये सब समाज बांधव हमारे अपने बंधु हैं. जहां हमको दुख दिखता है, पीड़ा दिखती है वहां हम दौड़ जाएँ, सेवा करें. दोनों हाथों से कमाएं. अपने लिए न्यूनतम आवश्यक रखकर बाकी सारा सेवा और परोपकार के माध्यम से वापस दें. ये आज करुणा का अर्थ है.

नागरिक अनुशासन का पालन करना ही देशभक्ति

शुचिता पर चलना है यानी पवित्रता होनी चाहिए. पवित्रता के लिए संयम चाहिए. अपने को रोकना है. सब अपनी इच्छाएं, अपने मत, अपनी बातें ठीक होंगी ही ऐसा नहीं. होंगी तो भी अन्यों के भी मत हैं, अन्यों की भी इच्छाएं हैं. इसलिए अपने आप को संयम में रखते हैं तो सारी पृथ्वी सब मानवों को जीवित रखेगी. गांधी जी कहते थे – Earth has enough for everyone’s need, but it cannot satisfy everyone’s greed. इसलिए लोभ नहीं करना, संयम में रहना और अनुशासन का पालन करना. अपने जीवन में अनुशासित रहना, अपने कुटुंब में अनुशासन रखना, अपने समाज में अनुशासन रखना और सामाजिक जीवन में नागरिक अनुशासन का पालन करना. भगिनी निवेदिता कहती थी कि स्वतंत्र देश में नागरिक संवेदना रखना और नागरिक अनुशासन का पालन करना ही देशभक्ति का रूप है. इससे जीवन में पवित्रता आती है. तपस का तो मूर्तिमान उदाहरण आपके सामने आज दिया गया. व्यक्तिगत तपस तो हम करेंगे, पर सामूहिक तपस भी ध्यान में रखें. सामूहिक तपस है – संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्. हम साथ चलेंगे, आपस में बोलेंगे और उसमें से सहमति का संवाद निकालेंगे. एक ही भाषा बोलेंगे. वो वाणी, मन, कर्म, वचन समन्वित होगा और मिलकर चलेंगे. अपने देश को विश्व गुरु बनाएंगे. ये तपस हम सबको करना है.

कर्त्तव्य का स्मरण करा रहे हैं रामलला

500 वर्षों तक अनेक पीढ़ियों ने लगकर, परिश्रम करके, प्राणों का बलिदान देकर, खून-पसीना बहाकर आज ये आनंद का दिन सारे राष्ट्र को उपलब्ध कराया है. उन सबके प्रति हमारे मन में कृतज्ञता है. मैं यहां बैठता हूं तो मेरे मन में विचार आता है कि मैंने क्या किया जो मुझे बिठाया? उन्होंने जो किया उसका प्रतिनिधि मुझे बनाया गया है. उस प्रतिनिधि के नाते मैं ये अवदान स्वीकार करता हूं और उन्हीं को अर्पण करता हूं. परंतु उनका ये व्रत हमको आगे लेकर जाना है. विश्व में जिस धर्म स्थापना के लिए राम का अवतार हुआ था, उस धर्म स्थापना के लिए अपने आचरण में, अपने देश में अनुकूल स्थिति उत्पन्न करना अपना कर्तव्य बनता है.

रामलला हमारे मन को आह्लादित करने, उत्साहित करने और प्रेरणा देने के लिए आए हैं. साथ ही इस कर्तव्य की याद दिलाकर उसमें कृति प्रवण करने के लिए आए हैं. उनका आदेश सिर पर लेकर हम यहां से जाएं. सब लोग तो यहां आ नहीं सके, लेकिन वो सुन रहे हैं, देख रहे हैं. अभी इसी क्षण से इस व्रत का पालन हम करेंगे तो मंदिर निर्माण पूरे होते-होते, विश्वगुरु भारत का निर्माण भी पूरा हो जाएगा. इतनी क्षमता हम सबकी है. इसका एक बार स्मरण कराते हुए मैं आप सबको धन्यवाद देता हूं.

(22 जनवरी, 2024 को अयोध्या में श्री रामलला प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर दिया गया उद्बोधन)