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केन्द्र सरकार पूरे देश में भूमि अधिग्रहण कानून में एकरूपता लाए – भारतीय किसान संघ

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भारतीय किसान संघ ने देश भर में विकास के नाम पर सरकारों द्वारा किये जा रहे कृषि भूमि के अधिग्रहण से प्रभावित हो रहे गांव व किसान के हितों की चिंता न किये जाने पर चिंता व्यक्त की है। भूमि अधिग्रहण कानून की विसंगतियों पर चिंतन व चर्चा के लिये राजस्थान के उदयपुर स्थित डेयरी एवं खाद्य प्रोद्योगिकी महाविद्यालय में रविवार को किसान संघ का थिंक टैंक कहे जाने वाले भारतीय एग्रो इकानामिक रिसर्च सेंटर के बैनर तले दो दिवसीय अखिल भारतीय विद्वत संगोष्ठी आयोजित की गई। बीएईआरसी के अखिल भारतीय अध्यक्ष प्रमोद चौधरी ने बताया कि संगोष्ठी में अंग्रेजी शासन काल के भूमि अधिग्रहण कानून की विसंगतियों और किसान हितों की अनदेखी पर विस्तृत चर्चा की और केंद्र सरकार को 15 सूत्रीय सुझावों का मांग पत्र भेजा। संगोष्ठी में प्रमुख रूप से भारतीय एग्रो इकोनॉमिक रिसर्च सेंटर के पदाधिकारियों के अलावा भारतीय किसान संघ, वनवासी कल्याण आश्रम, अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद संगठनों के अखिल भारतीय स्तर के पदाधिकारियों सहित बारह राज्यों के किसान प्रतिनिधि शामिल हुए।

भारतीय एग्रो इकानामिक रिसर्च सेंटर में कहा गया कि 1894 के अंग्रेजी कानून की व्यवस्था वर्षों तक जारी रही और 2013 में नया कानून लागू होने के बाद भी राज्य सरकारों के मनमाफिक संशोधनों ने कमजोर बना दिया। रिसर्च सेंटर के भूमि अधिग्रहण पर देशव्यापी सर्वे में कुछ बिन्दु सामने आए हैं –

-सरकारों द्वारा भूमि का वास्तविक कब्जा लेने के बाद भी किसानों को मुआवजा नहीं मिला या नगण्य मिला, वह भी समय पर नहीं मिला।

-विस्थापितों को रोजगार, पुनर्वास तथा आवास की व्यवस्था केवल कागजों तक सीमित रही।

-अधिग्रहण के बाद बची हुई भूमि नई परिस्थिति के कारण पानी में डूबने से या इसी प्रकार अन्य कारणों से भूमि कृषि योग्य नहीं रही। लेकिन उसका मुआवजा लेने का प्रावधान नहीं है।

-‘लैण्ड पुलिंग’ एक्ट जैसे कानून बनाकर छद्म आकर्षण द्वारा भोले भाले किसानों को कागजी आश्वासनों के आधार पर छलपूर्वक स्वीकृति लेने का छल हुआ। जिसमें अधिकारियों को आतंक फैलाने की छूट थी। इस अत्याचार को रोकने का कोई प्रयास या प्रावधान नहीं है। नियम को मानने की कोई बाध्यता नहीं है, किसी अंकुश की व्यवस्था भी नहीं है।

-उपचार के लिये केवल न्यायपालिका है क्योंकि न्यायपालिका ने नियमों की अवहेलना करने पर कई निर्णय किसान हित में पारित किये, लेकिन किसान के पास न्यायिक लड़ाई लड़ने का न तो समय है, न पैसा। अतः किसान इसे अपनी नियति मानकर हताश हो जाता है। पूरे देश में लगभग यही स्थिति है।

-योजनाएं समय पर पूरी न होने से किसान आर्थिक एवं मानसिक रूप से टूट कर हताश हो जाते हैं। इस पर कोई विचार नहीं किया गया।

-उदयपुर डिक्लेरेशन में केंद्र सरकार को भेजे गए सुझाव

-कानून या संशोधन करने में ग्राम सभा में 80 प्रतिशत निवासियों की सहमति अनिवार्य ली जाए। जो न्यायिक या स्वतंत्र अधिकारी की उपस्थिति में हो ताकि दबाव से कार्य न हो, जिसका डिजीटल रिकॉर्ड हो।

-मुआवजा वास्तविक बाजार मूल्य या रजिस्ट्री मूल्य जो अधिक हो, उससे 4 गुना हो। तथा प्रति 3 वर्ष में उसका पुनर्मूल्यांकन हो।

-भूमि का कब्जा लेने के पूर्व आर. एंड आर योजना पूर्ण रूप से लागू हो। जिसके पालन हेतु जिलेवार ‘‘पुनर्वास बोर्ड’’ स्थापित हो, जिससे वैकल्पिक भूमि, आवास, प्रशिक्षण एवं रोजगार सुनिश्चित हो सके।

-जहाँ जनजातीय आदि लोगों का विस्थापन अति आवश्यक हो, तब उन सभी ग्रामवासियों को एक ही जगह नए सम्पूर्ण ग्राम के रूप में पुनर्वास के द्वारा स्थापित किया जाए, ताकि उनकी संस्कृति, समाज, सामाजिक परिवेश आदि का बचाव हो सके।

-जब तक अत्यंत आवश्यक सार्वजनिक उद्देश्य न हो, बहुफसली सिंचिंत भूमि के अधिग्रहण पर रोक लगे।

-वन क्षेत्र में उपलब्ध ऊसर भूमि का सर्वे कर उसका तथा अन्य बंजर भूमि का पहले उपयोग किया जाए।

-गांवों को विस्थापन की स्थिति में वहां के निवासी अपनी आजीविका ही खो देते हैं, जिससे उन्हें मजबूरन मजदूरी करनी पड़ती है, अतः उन्हें अन्य प्रशिक्षण देकर रोजगार की गारंटी हो।

-किसान को मुआवजे की एकमुश्त राशि मिलने से उसको नियोजन करने में कठिनाई होती है तथा राशि खर्च हो जाती है। अतः इसके विकल्प के रूप में भूमि का कब्जा लेने के पूर्व किसान के आर्थिक व्यवस्थापन के लिए अधिग्रहित भूमि का प्रति एकड़ वार्षिक किराया, वहां की प्रचलित दर से तय कर किसानों को प्रतिवर्ष देय हो। (जैसे आन्ध्रप्रदेश में प्रति एकड़ प्रतिवर्ष 40 हजार रूपये देय है) तथा जब भी किसान भूमि का एकमुश्त मुआवजा लेना चाहे, तब वहां के तत्कालीन बाजार भाव से किसान को 4 गुना राशि दी जाए।

-परियोजना में किसानों को शेयर होल्डर बनाकर हिस्सेदारी दी जाए।

-लैंड पुलिंग कानून पूरी तरह से समाप्त किया जाए, सार्वजनिक उद्देश्य से अधिग्रहित भूमि का बिल्डर, कंपनी, आदि को पुनर्विक्रय या स्थानांतरण पूर्ण प्रतिबंधित हो।

-अधिग्रहित भूमि का 5 वर्षों में उपयोग नहीं किया जाता है तो उक्त भूमि उसी किसान को वापिस हो, जिसमें लिया गया मुआवजा वापिस देय नहीं होगा।

-भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया डिजिटल तथा पारदर्शी हो तथा पब्लिक डोमेन में हो तथा ‘मोबाइल शिकायत एप’ विकसित हो।

-सरकार बोली लगाकर नीलामी के तौर पर किसानों के साथ भूमि खरीदने का सौदा तुरंत भुगतान के साथ भी कर सकती है, लेकिन भूमि का मूल्य तत्कालीन बाजार भाव के 4 गुना से कम न हो।

-विभिन्न राज्यों द्वारा किये गए संशोधनों के कारण मुख्य प्रावधान ही समाप्त हो गए हैं। अतः केन्द्र सरकार राज्य सरकारों की सहमति से तथा आवश्यकता हो तो संविधान संशोधन द्वारा पूरे देश में कानून में एकरूपता लाई जाए।

-भूमि अधिग्रहण करते समय किसानों को भुलावे में रखकर, नियमों का दुरुपयोग कर कार्य करने पर संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों के विरुद्ध न्यूनतम समय सीमा (एक वर्ष) में कठोर दंडात्मक कार्यवाही करने का कानूनी प्रावधान एक्ट में हो।

बैठक में भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय संगठन मंत्री दिनेश कुलकर्णी, भारतीय एग्रो इकॉनोमिक रिसर्च सेंटर के अध्यक्ष प्रमोद चौधरी, महामंत्री मकरंद करकरे, अधिवक्ता परिषद के अध्यक्ष श्रीनिवास मूर्ति, दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष एडवोकेट संजय पोद्यार, महाराष्ट्र के असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल अजय तलहर, प्रताप सिंह धाकड़ कुलगरू महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय सहित 12 प्रदेशों के किसान प्रतिनिधि उपस्थित रहे।