- केदारनाथ धाम के कपाट 2 मई को सुबह 7 बजे खोले गए और बद्रीनाथ धाम के कपाट 4 मई को सुबह 6 बजे श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे। इन मंदिरों के द्वार खुलने के साथ ही उत्तराखंड की घाटियां भक्ति और सांस्कृतिक उत्साह से भर उठेंगी।
उत्तराखंड की पवित्र भूमि में चारधाम यात्रा 2025 का शुभारंभ इस वर्ष अत्यंत भव्यता, सुरक्षा व्यवस्था और भक्तों की भारी संख्या के साथ हुआ। 30 अप्रैल 2025 को अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के मंदिरों के द्वार विधिवत रूप से खोले गए। इसके साथ ही देश-विदेश से आए लाखों श्रद्धालु अपनी आस्था के साथ इस धार्मिक यात्रा में शामिल हुए। इस वर्ष चारधाम यात्रा के लिए रिकॉर्ड संख्या में लगभग 22 लाख श्रद्धालुओं ने पंजीकरण कराया है, जो पिछले वर्षों की तुलना में सबसे अधिक है।
कपाट खुलने की तिथियां और धार्मिक उल्लास
चारधाम यात्रा की शुरुआत हर साल की तरह इस बार भी अक्षय तृतीया के दिन से हुई। 30 अप्रैल 2025 को गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के मंदिरों के द्वार सुबह 10:30 बजे और 11:55 बजे क्रमशः खोले गए। केदारनाथ धाम के कपाट 2 मई को सुबह 7 बजे खोले गए। यह शुभ अवसर वैदिक मंत्रों के साथ मनाया गया। हजारों श्रद्धालु मंदिर परिसर में रात से ही जुटे थे, जो इस पावन क्षण के साक्षी बनने के लिए उत्सुक थे। मंदिर के द्वार खुलते ही पूरे क्षेत्र में “हर-हर गंगा” और “जय मां यमुना” के जयकारे गूंज उठे। बद्रीनाथ धाम के कपाट 4 मई को सुबह 6 बजे श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे।
श्रद्धालुओं की भारी भीड़ और उत्साह
चारधाम यात्रा के लिए इस वर्ष पंजीकरण अनिवार्य किया गया है ताकि भीड़ को नियंत्रित किया जा सके और सभी भक्तों की सुरक्षा सुनिश्चित हो। 30 अप्रैल तक लगभग 22 लाख श्रद्धालुओं ने पंजीकरण कराया है। इनमें से यमुनोत्री के लिए 3.38 लाख, गंगोत्री के लिए 3.68 लाख, केदारनाथ के लिए 7.09 लाख और बद्रीनाथ के लिए 6.25 लाख से अधिक श्रद्धालु शामिल हैं। यात्रा के पहले दिन गंगोत्री में 3110 और यमुनोत्री में 1412 श्रद्धालु मंदिर दर्शन के लिए पहुंचे। पहले 24 घंटों के भीतर ही दोनों धामों में कुल 17,000 से अधिक भक्तों ने दर्शन किए, जिससे आस्था और श्रद्धा का अद्भुत संगम देखने को मिला।
बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के अनुसार, इस वर्ष कुल श्रद्धालुओं की संख्या 60 लाख तक पहुंचने की संभावना है, जो पिछले वर्षों की तुलना में सबसे अधिक होगी। पिछले वर्ष 48 लाख श्रद्धालुओं ने यात्रा की थी, लेकिन इस बार मौसम और प्रशासनिक तैयारियों के कारण संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
भव्यता, परंपरा और सांस्कृतिक उत्सव
चारधाम यात्रा का शुभारंभ पारंपरिक कलश यात्रा, डोलियों की शोभा यात्रा, वैदिक मंत्रोच्चार और स्थानीय लोकगीतों के साथ हुआ। गंगोत्री और यमुनोत्री धाम में मंदिरों के द्वार खुलने से पहले मां गंगा और मां यमुना की डोलियों को पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ मंदिर परिसर तक लाया गया। मंदिरों को फूलों, रंग-बिरंगी झालरों और रोशनी से सजाया गया था। द्वार खुलते ही पुजारियों ने विशेष पूजा-अर्चना की और भक्तों ने मंदिर में प्रवेश कर प्रथम दर्शन का सौभाग्य प्राप्त किया।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी दोनों धामों में पूजा-अर्चना कर प्रदेशवासियों और देशवासियों की सुख-समृद्धि की कामना की। प्रशासन और मंदिर समितियों ने पूरी व्यवस्था को सुचारू और सुरक्षित बनाए रखने के लिए दिन-रात मेहनत की है।
सुरक्षा और व्यवस्थाएं
भक्तों की भारी भीड़ को देखते हुए राज्य सरकार और प्रशासन ने सुरक्षा के अभूतपूर्व इंतजाम किए हैं। यात्रा मार्गों पर 6,000 से अधिक पुलिसकर्मी, 17 पीएसी की कंपनियां, 10 अर्धसैनिक बलों की टुकड़ियां और 65 से अधिक संवेदनशील स्थानों पर विशेष सुरक्षा बल तैनात किए गए हैं। चिकित्सा सुविधाएं, आपातकालीन सेवाएं, धर्मशालाओं, विश्राम स्थलों, मोबाइल शौचालय और पेयजल की व्यवस्था पहले से दुरुस्त कर दी गई है।
यात्रियों की सुविधा के लिए हेल्पलाइन नंबर, कंट्रोल रूम, मेडिकल कैंप, एंबुलेंस और मौसम की पूर्व सूचना देने वाली सेवाएं उपलब्ध कराई गई हैं। यात्रा मार्गों की मरम्मत, यातायात नियंत्रण और भीड़ प्रबंधन के लिए प्रशासन ने विशेष टीमें गठित की हैं। पंजीकरण अनिवार्य होने से भीड़ पर नियंत्रण रखने और आपात स्थिति में यात्रियों की पहचान आसान हो सकेगी।
आस्था के साथ अर्थव्यवस्था को भी नई गति
चारधाम यात्रा न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था और पर्यटन उद्योग के लिए भी महत्वपूर्ण है। लाखों श्रद्धालुओं के आने से स्थानीय होटल, धर्मशाला, परिवहन, दुकानें, गाइड और अन्य सेवाओं को रोजगार मिलता है। यात्रा के दौरान स्थानीय संस्कृति, हस्तशिल्प और खानपान को भी बढ़ावा मिलता है। इस वर्ष रिकॉर्ड पंजीकरण और भीड़ से राज्य की अर्थव्यवस्था को नई गति मिलने की उम्मीद है।
मौसम और स्वास्थ्य संबंधी सावधानियां
यात्रा के दौरान मौसम की अनिश्चितता, ऊंचाई और कठिन रास्तों को देखते हुए स्वास्थ्य संबंधी दिशा-निर्देशों का पालन आवश्यक है। प्रशासन ने यात्रियों को ऊनी कपड़े, छाता, वर्षा रोधी वस्त्र, दवाइयां, टॉर्च, पहचान पत्र और पंजीकरण स्लिप साथ रखने की सलाह दी है। उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, अस्थमा आदि से पीड़ित यात्रियों को विशेष सतर्कता बरतने के निर्देश दिए गए हैं। यात्रा मार्गों पर चिकित्सा जांच और प्राथमिक उपचार की व्यवस्था की गई है।
चारधाम यात्रा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
चारधाम यात्रा सनातन धर्म में मोक्षदायिनी मानी जाती है। गंगोत्री में मां गंगा, यमुनोत्री में मां यमुना, केदारनाथ में भगवान शिव और बद्रीनाथ में भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि चारधाम की यात्रा से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह यात्रा आदि शंकराचार्य द्वारा प्रारंभ की गई थी और लगभग 1200 वर्षों पुरानी परंपरा है।
श्रद्धालुओं के अनुभव
यात्रा पर निकले श्रद्धालुओं ने बताया कि इस बार यात्रा मार्गों पर व्यवस्थाएं पहले से बेहतर हैं। चिकित्सा कैंप, पुलिस सहायता, साफ-सफाई, पेयजल और भोजन की उत्तम व्यवस्था है। कई श्रद्धालुओं ने कहा कि पंजीकरण की अनिवार्यता से भीड़ नियंत्रित हो रही है और दर्शन में सुगमता मिल रही है। देश के कोने-कोने से आए भक्तों में गजब का उत्साह है और वे इस यात्रा को जीवन का सबसे बड़ा आध्यात्मिक अनुभव मानते हैं।
आने वाले दिनों की चुनौतियां और तैयारियां
केदारनाथ के कपाट खुल गए हैं और बद्रीनाथ के कपाट खुलेंगे, भीड़ और बढ़ने की संभावना है। प्रशासन ने हेलीकॉप्टर सेवा, ट्रैकिंग मार्ग, घोड़ा-खच्चर, पालकी, डोली आदि की व्यवस्था पहले से दुरुस्त कर दी है। मौसम खराब होने या आपदा की स्थिति में यात्रियों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाने के लिए बचाव टीमें तैनात हैं। राज्य सरकार और प्रशासन लगातार निगरानी कर रहे हैं ताकि किसी भी स्थिति में श्रद्धालुओं को असुविधा न हो।
चारधाम यात्रा 2025 ने एक बार फिर उत्तराखंड को आस्था, भक्ति और पर्यटन का केंद्र बना दिया है। कपाट खुलने के साथ ही श्रद्धालुओं की ऐतिहासिक भीड़, प्रशासन की चुस्त व्यवस्था, मौसम की अनुकूलता और सांस्कृतिक भव्यता ने इस यात्रा को अद्वितीय बना दिया है। आने वाले दिनों में जैसे-जैसे यात्रा आगे बढ़ेगी, उत्तराखंड की घाटियां और मंदिर परिसर भक्तिरस से सराबोर रहेंगे। चारधाम यात्रा न केवल मोक्ष की राह है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपरा, एकता और सेवा भाव का भी प्रतीक है।