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युवा सन्यासियों का देश सेवा में समर्पित होना रामराज्य तथा आध्यात्मिक भारत के स्वप्न को साकार करने जैसा – डॉ. मोहन भागवत जी

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पूज्य योगऋषि स्वामी रामदेव जी महाराज ने अपने 29वें सन्यास दिवस पर अष्टाध्यायी, महाभाष्य व्याकरण, वेद, वेदांग, उपनिषद में दीक्षित शताधिक विद्वान् एवं विदुषी सन्यासियों को दीक्षा दी. इनमें 60 विद्वान् ब्रह्मचारी भाई तथा 40 विदुषी बहनें शामिल हैं. साथ ही 500 नैष्टिक ब्रह्मचारियों को दीक्षा दी. इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि सबसे बड़ा त्याग नवसन्यासियों के माता-पिता का है, जिन्होंने अपने बच्चे को पाल-पोसकर देश, धर्म, संस्कृति और मानवता के लिए समर्पित कर दिया है.

उन्होंने कहा कि आज से लगभग 10 वर्ष पहले का वातावरण ऐसा नहीं था, मन में चिंता होती थी. किन्तु अब स्थितियाँ बदल चुकी हैं. यहाँ युवा सन्यासियों को देखकर सारी चिंताओं को विराम मिल गया है. एक साथ इतनी बड़ी संख्या में सन्यासियों को देश सेवा में समर्पित करना रामराज्य की स्थापना, ऋषि परम्परा तथा भावी आध्यात्मिक भारत के स्वप्न को साकार करने जैसा है.

कार्यक्रम में स्वामी रामदेव जी ने कहा कि सन्यास मर्यादा, वेद, गुरु व शास्त्र की मर्यादा में रहते हुए नव सन्यासी एक बहुत बड़े संकल्प के लिए प्रतिबद्ध हो रहे हैं. ब्रह्मचर्य से सीधे सन्यास में प्रवेश करना सबसे बड़ा वीरता का कार्य है. इन सन्यासियों के रूप में हम अपने ऋषियों के उत्तराधिकारियों को भारतीय संस्कृति तथा परम्परा के प्रचार-प्रसार हेतु समर्पित कर रहे हैं. सन्यासी होना जीवन का सबसे बड़ा गौरव है. अब से सभी 100 सन्यासी ऋषि परम्परा का निर्वहन करते हुए मातृभूमि, ईश्वरीय सत्ता, ऋषिसत्ता तथा अध्यात्मसत्ता में जीवन व्यतीत करेंगे. विगत 9 दिनों से अनवरत चल रहा तप व पुरुषार्थपूर्ण अनुष्ठान आज पूर्ण हुआ. उन्होंने कहा कि आज हमने नवसन्यासियों की नारायणी सेना तैयार की है, जो पूरे विश्व में संन्यास धर्म, सनातन धर्म व युगधर्म की ध्वजवाहक होगी.

इससे पहले वेद मंत्रों के बीच देवताओं, ऋषिगणों, सूर्य, अग्नि आदि को साक्षी मानकर सभी सन्यास दीक्षुओं का मुख्य विरजा होम तथा मुण्डन संस्कार किया गया. सन्यास दीक्षुओं द्वारा शोभा यात्रा के साथ वी-आई-पी- घाट हरिद्वार लाया गया, जहाँ स्वामी रामदेव जी महाराज व आचार्य बालकृष्ण जी महाराज ने पुष्पवर्षा कर इनका स्वागत किया. गंगा माता की स्वच्छता को ध्यान में रखते हुए सभी संन्यासियों का मुण्डन ऋषिग्राम में ही किया गया तथा सांकेतिक रूप से सभी सन्यास दीक्षुओं ने शिखासूत्र व यज्ञोपवीत पतित पावनी माँ गंगा के पावन जल में विसर्जित किया. सभी ऋषि-ऋषिकाओं ने गंगा में स्नान के पश्चात अपने श्वेत वस्त्र त्यागकर भगवा वस्त्र धारण किये. तद्पश्चात श्रद्धेय स्वामी जी एवं अन्य प्रमुख संतों द्वारा 100 सन्यास दीक्षुओं को शिर पर पुरुषसूक्त के मंत्रों से 108 बार गंगा जल से अभिषेक कर पवित्र सन्यास संकल्प दिलाया गया.

कार्यक्रम में श्रद्धेय आचार्य बालकृष्ण जी महाराज ने सन्यास धर्म की मर्यादा का उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि सन्यास संकल्प को सदा स्मरण रखते हुए सभी एषणाओं, अविवेकपूर्ण कामनाओं एवं विषय वासनाओं व भोगों से मुक्त रहकर सन्यासी होना सबसे बड़ा उत्तरदायित्व व गौरव है. एक सन्यासी के लिए गुरुनिष्ठा, कर्तव्यनिष्ठा एवं ध्येयनिष्ठा में निरन्तरता बनाए रखना ही जीवन का प्रयोजन होना चाहिए. धन्य हैं वे माता-पिता व परिवारजन जो अपनी सन्तानों को मातृभूमि के लिए समर्पित कर रहे हैं.