मेरठ, उत्तर प्रदेश
एक दीदी, जिसने अपनी तकलीफों को भुलाकर दूसरों की जिंदगी संवारी और जिनके प्रयासों ने 189 बेटियों को आत्मनिर्भर बना दिया। मेरठ की अंजू पांडेय को आज हर कोई दीदी कहकर बुलाता है। यह नाम उन्हें किसी किताब से नहीं, अपितु उनके कर्मों से मिला है। उम्र 60 साल, कैंसर से जूझता शरीर, लेकिन हौसलों में कोई कमी नहीं। उनकी सोच और सेवा ने स्लम बस्तियों के सैकड़ों बच्चों की किस्मत बदल दी है। साल 2005 की एक घटना ने अंजू की जिंदगी बदल दी। एक गरीब पिता अपने बच्चों की फीस न भर पाने की वजह से रो रहा था। अंजू ने उसी दिन ठान लिया कि अब उनका जीवन दूसरों की मदद के लिए समर्पित होगा।
अगले दिन से ही उन्होंने उन बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाना शुरू किया। अपने दोस्तों के साथ मिलकर उन्होंने बेटियां फाउंडेशन की शुरुआत की। उद्देश्य था, स्लम एरिया के बच्चों को पढ़ाई और हुनर से जोड़ना। शुरुआत में 65 बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलाया, अब तक सैकड़ों बच्चे उनके प्रयासों से पढ़-लिखकर आत्मनिर्भर हो चुके हैं। उन्होंने 115 बेटियों को ब्यूटी पार्लर, सिलाई और कंप्यूटर का प्रशिक्षण दिलाया। कई बेटियां अब अपने पैरों पर खड़ी हैं। एक बेटी इटली में फैशन डिजाइनर बनकर देश का नाम रोशन कर रही है। नशे की लत में फंसे बच्चों को छुड़वाकर स्कूल तक पहुँचाया। यहां तक कि एक जरूरतमंद लड़की को गाय दिलाकर आत्मनिर्भर बनाया। दो साल पहले कैंसर का पता चला। लेकिन अंजू कहती हैं, जब बच्चों के चेहरों पर मुस्कान देखती हूं, तो अपना दर्द भूल जाती हूं। बीमारी ने उन्हें नहीं तोड़ा, बल्कि और मजबूत बना दिया।