• अनुवाद करें: |
मुख्य समाचार

12वीं के छात्रों का कमाल – नोएडा में लुप्त होते तालाबों को दे रहे हैं जीवन

  • Share:

  • facebook
  • twitter
  • whatsapp

12वीं के छात्रों का कमालनोएडा में लुप्त होते तालाबों को दे रहे हैं जीवन  


नोएडा, उत्तर प्रदेश : भारत की संस्कृति पर्यावरण और प्रकृति के प्रति अनेक परम्पराओं को समेटे हुए है। आज भी गाँवों में तालाबों और उनके किनारे स्थित मंदिरों का ग्रामीण जीवन में बड़ा ही महत्त्व है। तालाब को एक पवित्र स्थान माना गया है। दुर्भाग्य से यूरोपीय विकास की अंधी दौड़ में हम अपनी जड़ों से दूर हुए जिसका प्रभाव हमारे जन-जीवन पर भी दिखाई पड़ता है।

भारत की संस्कृति में तालाबों का बड़ा महत्त्व रहा है किन्तु आधुनिक विकास में हम जल संरक्षण के परम्परागत स्रोतों के रूप में तालाबों को खोते जा रहे हैं। लेकिन खुशी की एक बात यह भी है कि हमारी युवा पीढ़ी अपनी विरासतों और अपनी परम्पराओं को सहेजना सीख रही है। इसका एक उदाहरण है नोएडा के सेक्टर 130 के दिल्ली पब्लिक स्कूल के छात्र देव करण और उनके साथियों की टोली।


17 वर्षीय देव करण ने स्वयं एक ऐसा यंत्र बनाया है जिसकी सहायता से अपना अस्तित्व खोते जा रहे तालाब के पानी का विश्लेषण किया जा सकता है और उसके आधार पर उस तालाब के संरक्षण की दिशा में काम किया जा सकता है। देव करण ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के यंग एक्टिविस्ट्स समिट में ग्लोबल अवार्ड जीतकर देश को गौरवान्वित किया है। दो साल पहले स्कूल ट्रिप पर देव ने कचरे से भरा, बदबूदार, नाममात्र का पानी वाला एक मरता हुआ तालाब देखा। उनका हृदय व्यथित हो गया और मन में एक संकल्प ने जन्म लिया और शुरू हुआ देव का मिशन 'पोंडोर'


देव और उनकी दोस्तों ने उत्तर प्रदेश के दर्जनों विलुप्त हो चुके तालाबों को फिर से जीवंत कर दिया है। यह टीम देव के द्वारा बनाई आइओटी डिवाइस से पानी में क्लोरीन, डिसाल्व आक्सीजन, बीओडी, खारापन सब कुछ सेकेंड में चेक कर लेती है, ब्लूटूथ से फोन कनेक्ट कर डाटा एप पर आता है और उससे तालाब की स्थिति का आकलन करने में उन्हें कुछ ही समय लगता है। उन्होंने गांवों में 'तालाब एंबेस्डर' बनाए। बच्चे जो पहले तालाब के पास से नाक बंद करके निकल जाते थे, आज खुद कचरा निकालते हैं, डाटा लेते हैं और तालाबों को जीवंत कर गर्व महसूस करते हैं।


सूखे के दौरान परम्परा से हमारा देश में तालाब पीने के पानी के लिए इस्तेमाल होते रहे हैं, वे बाढ़ रोकने में मदद करते हैं, ग्राउंडवाटर को पोषण देते हैं, बायोडायवर्सिटी को सहयोग करते हैं और कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन में मदद करते हैं। वे दिखने में छोटे क्लाइमेट वारियर्स हैं।


फिर भी, वे तेजी से गायब हो रहे हैं। सीएसआर फंड के बावजूद तालाबों की सफाई में लगातार मेंटेनेंस की कमी से वे खत्म हो रहे हैं। देव ने बताया कि दादरी क्षेत्र के बंबावड़ गांव में बिस्लेरी कंपनी के द्वारा प्रदत्त सीएसआर फंड से उन्होंने अपने साथियों और समाज के साथ मिलकर स्थानीय तालाब को जीवंत किया।

ग्रामीण अब इस तालाब के पानी का उपयोग सिंचाई और अन्य कार्यों में कर रहे हैं। देव जैसे युवा ही भारत का भविष्य हैं जो केवल पर्यावरण योद्धा के रूप में अपना कर्तव्य निभा रहे हैं बल्कि देश की विरासत को सहेजकर युवा पीढ़ी को प्रेरित भी कर रहे हैं।