उत्तराखंड की वन पंचायत : वन संरक्षण के साथ-साथ रोजगार भी
वन प्रकृति की ऐसी संपदा है जो जीवन का आधार है। वनों का संरक्षण हम सभी का सामाजिक कर्तव्य है। वन बचेंगे तो पर्यावरण भी संतुलित रहेगा और इसी से पृथ्वी का संरक्षण भी होगा। वनों से हमें बहुत सी सामग्री प्राप्त होती है जिनमें औषधियां और जड़ी -बूटियांप्रमुख हैं। आजकल आयुर्वेद का प्रचार -प्रसार बढ़ने से दुर्लभ जड़ी-बूटियों की मांग भी बढ़ी है। इसी को ध्यान में रखते हुए उत्तराखंड की वन पंचायतों में जड़ी-बूटी परियोजना को लेकर वन विभाग सक्रिय हो गया है। इसके लिए वन पंचायत रोजगार को जोड़ रही है और इसका माध्यम है जड़ी-बूटी व सगंध पादपों की खेती।
उत्तराखंड के वन विभाग ने वन पंचायतों में 628 करोड़ रुपये की लागत की जड़ी बूटी- परियोजना को धरातल पर मूर्त रूप देने को कमर कसी है। प्रथम चरण में 10 साल में 500 वन पंचायतों के 5,000 हेक्टेयर क्षेत्र में जड़ी-बूटी व सगंध पादप खेती का लक्ष्य है। साथ ही 11 हर्बल व अरोमा पार्क भी बनाए जाएंगे। परियोजना के माध्यम से एक लाख व्यक्तियों को रोजगार मिलने का अनुमान है। उत्तराखंड वन संपदा से भरपूर क्षेत्र है और अनेक दुर्लभ जड़ी-बूटियां और उपयोगी पेड़-पौधे यहाँ पाए जाते हैं।
इस योजना को उत्तराखंड पर्यटन समेत अन्य संस्थाओं के माध्यम से आगे बढ़ाया जाएगा।
1,000 मीटर ऊंचाई तक: हरड़, आंवला, अर्जुन, बेल, सहजन, सोयांक, बिजासर, सर्पगंधा, प्रस्थपारिनी बच, चित्रक, अकरका, लैमनग्रास, गिलोय, पीपपली व मालकंगनी की खेती की जा सकेगी।
1000 से 2000 मीटर ऊंचाई तक तेजपात, रीठा, बुरांस, च्यूरा, पदम, पांगर, अखरोट, तिमूर, सुराई, मैदलकड़ी, ओरमान्थस, नागकेसर, नट फ्रूटस, जंगली गुलाब, कुंजम बडी, इलायची, कपूर, कछरी,
तागर, सतुआ, जिंजर ग्रास व इंद्रायण को उगाया जायेगा।
2000 से 3000 मीटर ऊंचाई तक देवदार, बहोतिया बादाम, बुरांस, पाइन, बेरी, नट फ्रूट्स, जंगली गुलाब, केदारपत्ती, अमेश, कालाजीरा, वन तुलसी, जबू, फरण, पुष्करमूला व गंदरायण का उत्पादन होगा।
उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण में तीन लाख करोड़ की पर्यावरणीय सेवाओं में से एक लाख करोड़ की भागीदारी वन क्षेत्र की ही है। उत्तराखंड में वन पंचायतों की संख्या 11217 हैं, जो 7168 वर्ग किमी वन क्षेत्र में कार्य करेंगी। शुरुआत में इस वर्ष छह वन प्रभागो से लगी 49 वन पंचायतों के 500 हेक्टेयर क्षेत्र में पादपों का रोपण कराया जा चुका है। जैसे-जैसे सफलता मिलेगी वैसे-वैसे इस परियोजनाओं का विस्तार शेष 451 वन पंचायतों तक भी किया जायेगा। 11 अरोमा एवं हर्बल पार्क भी इस परियोजना में विकसित किये जायेंगे।
औषधियों के आसवन हेतु चयनित वन पंचायतों में आसवन संयंत्र लगाने की योजना भी है। परियोजना के तहत वन पंचायतें ही अपने अधीन वन क्षेत्रों में जड़ी-बूटियों व सगंध पादपों की खेती कराएंगी। उत्तराखंड राज्य की यह पहल न केवल हमारी वन संपदा का संरक्षण ही करेगी अपितु पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाने के साथ-साथ उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की दिशा में भी मील का पत्थर साबित होगी।



