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पूरे प्रदेश में धूमधाम से मनाई गई गोपाष्टमी

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उत्तरप्रदेश।

- वीएचपी कार्यकर्ता बोले गो हत्या पर फांसी की सजा 

- सनातनियों ने लिया गोसंरक्षण का संकल्प 

गोपाष्टमी का पर्व पूरे भारत में विशेष श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया गया। इस दिन को गोमाता की पूजा का विशेष पर्व माना जाता है, जो कार्तिक शुक्ल अष्टमी के दिन मनाया जाता है। गोपाष्टमी के अवसर पर विभिन्न मंदिरों और गोशालाओं में गो-पूजा, हवन और विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन हुआ। कई जगहों पर गायों को सजाया गया, उनके सींगों पर रंग लगाया गया, और उन्हें विशेष भोज्य पदार्थ अर्पित किए गए। 

इस मौके पर गोसंरक्षण के लिए कार्यरत विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के कार्यकर्ताओं ने गोहत्या पर सख्त कानून की मांग उठाई। वीएचपी के कई नेताओं और कार्यकर्ताओं ने कहा कि देश में गोहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध और दोषियों के लिए फांसी जैसी कठोर सजा का प्रावधान होना चाहिए। वीएचपी के कार्यकर्ताओं ने गोहत्या को न केवल धार्मिक दृष्टि से अनुचित बताया, बल्कि इसे देश की सांस्कृतिक और भावनात्मक धरोहर पर आघात के रूप में देखा।

कई स्थानों पर रैली और कार्यक्रमों के माध्यम से वीएचपी कार्यकर्ताओं ने जनता को गोसंरक्षण के प्रति जागरूक किया। उन्होंने गोवंश के महत्व और उनके संरक्षण के लिए कड़े कानून की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका मानना है कि गोसंरक्षण से न केवल धार्मिक बल्कि पर्यावरणीय और आर्थिक लाभ भी हैं, क्योंकि गायें भारतीय कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। गोपाष्टमी के अवसर पर जनता में भी गोमाता के प्रति प्रेम और श्रद्धा को देखा गया, और बड़ी संख्या में लोग गोशालाओं में जाकर गायों की सेवा में योगदान देने पहुंचे।

गोपाष्टमी का पर्व हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है और इसे गोमाता की पूजा एवं उनकी महत्ता को समर्पित एक दिन के रूप में मनाया जाता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी को गोपाष्टमी मनाई जाती है। इस दिन विशेष रूप से गायों और बछड़ों की पूजा का विधान है। इस पर्व का धार्मिक, आध्यात्मिक, और सांस्कृतिक महत्व है, जो गोवंश के संरक्षण, समृद्धि, और उनकी उपयोगिता को दर्शाता है।


गोपाष्टमी का धार्मिक महत्व-

गोपाष्टमी का पर्व भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की महत्वपूर्ण घटना से जुड़ा है। मान्यता है कि इसी दिन श्रीकृष्ण ने अपनी बाल्यावस्था में पहली बार गोचारण (गाय चराने) का कार्य प्रारंभ किया था। पहले वे बछड़ों को चराते थे, लेकिन गोपाष्टमी के दिन उन्हें पहली बार गायों को चराने का दायित्व सौंपा गया। इस अवसर पर गोकुल और वृंदावन में विशेष आयोजन होते हैं, और भगवान कृष्ण तथा गायों की पूजा कर भगवान से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्रार्थना की जाती है।

गोमाता के महत्व का प्रतीक-

गोपाष्टमी का पर्व गाय के महत्व को रेखांकित करता है। हिंदू धर्म में गाय को माता का दर्जा दिया गया है, और इसे ‘गोमाता’ कहा जाता है। गाय को पृथ्वी का प्रतीक माना गया है, क्योंकि वह भोजन, दूध और अन्य आवश्यकताएँ प्रदान करती है। गायों से प्राप्त दूध, घी, गोबर और मूत्र आदि का धार्मिक, स्वास्थ्य, और कृषि कार्यों में विशेष स्थान है। गोपाष्टमी के दिन लोग गोशालाओं में जाकर गायों की सेवा करते हैं और गोसंरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाते हैं।

पर्यावरण और कृषि में योगदान-

गायें भारतीय ग्रामीण जीवन, कृषि, और पर्यावरण के संतुलन में अहम भूमिका निभाती हैं। गोबर से जैविक खाद बनती है, जो खेती के लिए लाभकारी होती है और मृदा की उर्वरता को बनाए रखने में सहायक होती है। इसके अलावा, गायों से प्राप्त सामग्री का उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों, औषधियों, और जैविक खेती में किया जाता है। इस प्रकार, गोपाष्टमी का पर्व पर्यावरण संरक्षण और टिकाऊ खेती को भी प्रोत्साहित करता है।

गोपाष्टमी का सांस्कृतिक महत्व-

गोपाष्टमी का पर्व ग्रामीण और शहरी भारत में भी समाज में गोवंश के प्रति आदर का प्रतीक है। यह पर्व भारतीय संस्कृति में गोमाता के प्रति प्रेम, सेवा और आदर की भावना को उजागर करता है। इस दिन मंदिरों और गोशालाओं में पूजा, हवन, और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, जो समाज में गोवंश के प्रति सम्मान की भावना बढ़ाते हैं।

इस प्रकार, गोपाष्टमी का पर्व न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बल्कि समाजिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह दिन गोमाता के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर है और गोसंरक्षण के महत्व को बढ़ावा देने का एक सशक्त माध्यम है।