प्रयागराज।
-मुगल शासक अकबर ने दिखाई थी बर्बरता, किले में कर दिया था बंद
प्रयागराज के पवित्र अक्षयवट का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है, और इसे मोक्ष का प्रतीक माना जाता है। अक्षयवट को हिंदू धर्म में अनन्तता और अक्षय (कभी न नष्ट होने वाला) वृक्ष माना गया है। मान्यता है कि इसके दर्शन मात्र से ही व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह वटवृक्ष प्रयागराज किले के अंदर स्थित है और इसे विशेष धार्मिक स्थान प्राप्त है।
अक्षयवट का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व-
अक्षयवट को धार्मिक ग्रंथों में अद्वितीय स्थान प्राप्त है। कहा जाता है कि देवी सीता ने वनवास के दौरान इसी अक्षयवट के नीचे तप किया था। साथ ही, मान्यता है कि भगवान राम ने भी यहां दर्शन किए थे। अक्षयवट का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है, और यह कहा जाता है कि इसके दर्शन मात्र से पापों का नाश होता है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
मुगल शासक अकबर द्वारा बंद किया जाना-
अक्षयवट का यह पवित्र स्थल मुगल शासक अकबर के काल में प्रयागराज किले के अंदर आ गया था। अकबर ने 16वीं शताब्दी में इस वृक्ष को किले में शामिल कर इसे आम जनता के लिए बंद कर दिया था। इसके कारण श्रद्धालुओं को लंबे समय तक इस पवित्र स्थल के दर्शन करने में कठिनाई का सामना करना पड़ा। हालाँकि, बाद में इसे कुछ समय के लिए खोला गया, लेकिन यह पूरी तरह से जनता के लिए सुलभ नहीं हो सका।
अक्षयवट कॉरिडोर और पुनर्स्थापना-
हाल के वर्षों में प्रयागराज में अक्षयवट कॉरिडोर का निर्माण किया गया है, ताकि श्रद्धालु आसानी से अक्षयवट के दर्शन कर सकें। इस कॉरिडोर के बनने से अब श्रद्धालुओं को अक्षयवट के दर्शन का सुलभ मार्ग प्राप्त हुआ है, और वे यहाँ आकर अपने पापों का नाश करने और मोक्ष प्राप्ति की कामना के साथ पूजा-अर्चना कर सकते हैं।
अक्षय मंत्र और मोक्ष का प्रतीक-
अक्षयवट को मोक्ष और अनन्तता का प्रतीक माना जाता है। यहाँ आकर श्रद्धालु "अक्षय मंत्र" का जाप करते हैं, जो अक्षय पुण्य और अनन्त जीवन का प्रतीक है। यह माना जाता है कि अक्षयवट के दर्शन और इस पवित्र स्थल पर पूजा करने से जीवन के समस्त बंधनों से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।
अक्षयवट कॉरिडोर के निर्माण के बाद, अब यह स्थल धार्मिक पर्यटन के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन गया है, और हर साल लाखों श्रद्धालु यहाँ आकर मोक्ष की कामना करते हैं।