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संघ दर्शन

संघ के भविष्य पर गुरु गोलवलकर जी की दृष्टि

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संघ संस्मरण  

वर्ष 1942 में संघ के द्वितीय सरसंघचालक गुरु गोलवलकर जी ने एक ऐतिहासिक भाषण दिया,  जिसने उनके राष्ट्रीय मुद्दों के प्रति विचारों और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भविष्य के बारे में उनके दृष्टिकोण का खुलासा किया। उन्होंने हिंदू नव वर्ष अर्थात वर्ष प्रतिपदा के अवसर पर कहा- “यह हमारा अति महान सौभाग्य है कि हम इस खतरनाक समय में पैदा हुए हैं,  जिन्हें हमें अति शुभ मानना चाहिए। राष्ट्र के इतिहास में वह स्वर्णिम क्षण,  जो सदियों के बाद आता है,  अभी आने ही वाला है। अगर ऐसे महत्वपूर्ण समय पर भी हम सोए रहते हैं तो हमारे जैसा बद्किस्मत कोई न होगा। केवल वह व्यक्ति ही अमर लोकप्रियता को पाता है,  जो मुश्किलों का सामना डटकर करता है। आओ,  इसलिए हम इस वर्तमान मुसीबत का सामना शांति तथा निश्चय के साथ करें। आप इसे एक अवसर समझे,  जब आपके अंदर से आप का सर्वाधिक अच्छा निकल कर बाहर आ सकेगा।‘’

“एक मृतप्राय राष्ट्र के पुनरुत्थान में अधिक से अधिक एक पीढ़ी का समय लगना चाहिए, लेकिन हमारी आज की दशा क्या है?  हमारे 17 वर्षों के कठोर परिश्रम के बाद भी हमारा कार्य एक परिसीमा के भीतर ही हुआ है। संघ सच के साथ खड़ा है,  इसलिए इसकी विजय होना निश्चित है और यह अपनी शपथ को अवश्य पूरा करेगा। एक बार जब हम वचन देते हैं,  तो हमें इसके महत्व को साबित करना होगा,  फिर प्रक्रिया में हमें अपनी जान भी क्यों न देनी पड़े।‘’

“इसलिए एक वर्ष के लिए आप अपने परिवार तथा अपने व्यक्तिगत हितों को ताक पर रख दें। तलवार की धार पर चलने वाले इस जीवन को अपनाएं। अपने प्रति कठोरता का भाव लाने के लिए तैयार रहें। अपनी सारी विचारधारा, समय और अपनी सम्पूर्ण शक्ति को सिर्फ इस काम पर केंद्रित करें। हमेशा के प्रति जागरूक रहना है और स्वयं को इस शुभ कार्य की सफलता के लिए कठोर बनाना है।”  


सरसंघचालक, अरुण आनंद,  प्रभात प्रकाशन,  प्रथम संस्करण-2020, पृष्ठ- 77-78