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विश्व कल्याण हेतु भारत को बनना होगा अग्रेसर – दत्तात्रेय होसबाले जी

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देश की स्वतन्त्रता के अमृत महोत्सव पर आयोजित गणतन्त्र दिवस समारोह पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने देश की स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करने वाले स्वतन्त्रता सेनानियों, क्रान्तिकारियों व शहीदों को नमन किया. नई दाना (अनाज) मण्डी में आयोजित समारोह में मुख्यवक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय हौसबाले जी ने कहा कि विश्वकल्याण हेतु भारत को अग्रेसर बनना होगा. परन्तु उसके लिए स्वयं भारत को भी तैयार होना होगा, क्योंकि भारत के पास ही विश्वकल्याण का वह विचार है, जिससे दुनिया की समस्त समस्याओं का निवारण किया जा सकता है. सरकार्यवाह ने स्वयंसेवकों सहित समस्त देशवासियों को राष्ट्र निर्माण कार्य में जुटने का आह्वान किया. बसन्त पञ्चमी की शुभकामनाएं देते हुए वीर हकीकत राय के बलिदान का भी पुण्य स्मरण किया और उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए.

उन्होंने देश की एकता पर जोर देते हुए कहा कि संघ का मानना है कि हमारे देश में समस्त पन्थ, मत, सम्प्रदाय, विभिन्न भाषा-भाषी प्रान्त, लोग हम सब मिलकर एक परिवार और देश हैं. हमारे बीच किसी भी प्रकार की अस्पृश्यता का कोई स्थान नहीं है. ऐसी भावना को समाज में स्थापित कर समाज में सौहार्द और समरसता की भावना हमें जागृत करनी है. अगर किसी की भाषा किसी से अलग है, किसी का मत-पन्थ किसी से अलग है तो इस कारण झगड़ने का कोई अर्थ नहीं है. सांस्कृतिक रूप से हम सब एक ही हैं. स्वयंसेवकों को समाज में सौहार्द और समरसता लाने का प्रयत्न समाज के लोगों को ही जोड़कर करना है. परन्तु यह अपने से प्रारम्भ करना है ताकि वह अपने आचरण से अन्य लोगों को भी प्रेरित कर सकें.

उन्होंने देश में स्थापित गणतन्त्र को गुणों पर आधारित तन्त्र बनाने पर जोर देते हुए युवा पीढ़ी को इस चुनौती को स्वीकार करने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि स्वतन्त्रता प्राप्त करने जितना ही महत्त्वपूर्ण है स्वतन्त्रता को बनाए रखना और देश के प्राचीन गौरव को पुनर्स्थापित करना.

उन्होंने कहा कि भारत एक लोकतान्त्रिक-प्रजातान्त्रिक गणराज्य है, इसका अर्थ केवल चुनाव नहीं है. चुनाव लोकतन्त्र का एक अंग है. परन्तु संविधान में लोकतन्त्र की कल्पना केवल चुनाव में हिस्सा लेकर अपना नेता चुनना नहीं है, बल्कि जीवन में लोकतन्त्र उतारने की बात है. हमारे संविधान में स्वतन्त्रता, समानता, बन्धुत्व और न्याय की जो कल्पना है, उसकी अनुभूति होनी चाहिए.