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इतिहास

विश्व को भारत की अनूठी देन है "एकं सत् विप्राः बहुधा वदन्ति" श्री गुरुजी

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विश्व को भारत की अनूठी देन है "एकं सत् विप्राः बहुधा वदन्ति" श्री गुरुजी

हमारी संस्कृति की हिमालय के समान उन्नत दृष्टि का एक और शिखर है जिस पर पहुंचने की महत्वाकांक्षा अभी तक संसार में अन्य किसी ने नहीं की है तथा जिस भाव की अभिव्यक्ति "एकं सत् विप्राः बहुधा वदन्ति" (ऋग्वेद : 1-164-46) वाक्य द्वारा की गई है। (अर्थात् सत्य एक है, ऋषि उसे विविध प्रकार से बखानते हैं) इस सुन्दर भाव को व्यक्त करने के लिए इसके समान अंग्रेजी में कोई शब्द रचना नहीं। 'सहिष्णुता' शब्द जो इस भाव को व्यक्त करने के लिए प्रायः प्रयोग में आता है, बहुत नीचा है। यह तो सहन करने मात्र का भाव व्यक्त करने के लिए एक अन्य शब्द है। इसमें एक अहं का भाव है जो केवल दूसरों के दृष्टिकोण को मात्र सहन करता है किन्तु उनके लिए कोई प्रेम अथवा सम्मान नहीं रखता। परन्तु हमारी शिक्षा अन्य विश्वासों और दृष्टिकोणों को इस रूप में स्वीकार करने की भी रही है कि वे सब एक ही सत्य तक पहुंचने के लिए अनेक मार्ग हैं। आत्मा की यह सार्वलौकिकता विश्व के चिन्तन-क्षेत्र में हमारी संस्कृति की एक नितान्त अनोखी देन है।

।। श्री गुरूजी व्यक्तित्व एवं कृतित्व, डॉ. कृष्ण कुमार बवेजा, पृष्ठ 145 ।।