देवर्षि नारद जयन्ती (ज्येष्ठ शुक्ल द्वितीया) के उपलक्ष्य में लखनऊ विश्वविद्यालय के एपी सेन सभागार में गुरुवार शाम को ‘देवर्षि नारद जी की वेद सम्मत नीतियां और वर्तमान भारतीय पत्रकारिता’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया.
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र प्रचार प्रमुख (पूर्वी उ.प्र. क्षेत्र) सुभाष जी ने कहा, ‘पत्रकारिता में सुंदरता और दिव्यता होनी चाहिये. सुंदरता तो लाई जा सकती है, लेकिन दिव्यता के लिये सत्यता का अन्वेषण करते हुये उसे पूर्णता देनी होगी. देवर्षि नारद ने यही सीख दी है. पौराणिक कथाओं का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि उन्होंने ऋषि वाल्मीकि से चर्चा की तो रामायण की रचना हो गयी. उन्होंने अपनी वीणा की धुन से संतुलन और समन्वयता का संदेश दिया है जो वर्तमान परिदृश्य में हो रही पत्रकारिता में स्वीकार करने के लिये अति आवश्यक है. नारद जी का जीवन लोकमंगल के लिये है.
लखनऊ विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग व विश्व संवाद केन्द्र लखनऊ के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में सुभाष जी ने कहा, ‘नारद जी के मन में जिज्ञासा थी. वे समाज में हो रहे हर परिवर्तन के बारे में जानने को आतुर रहते थे. यही आतुरता, जिज्ञासा ही उन्हें पत्रकार बनाती है. एक पत्रकार के मन में भी जिज्ञासा का होना बहुत जरूरी है. उसे निरंतर प्रश्न करना आना चाहिये. जो जानना चाहता है, वह सब कुछ जान लेता है.’ उन्होंने कहा कि नारद जी समाज के कल्याण के लिये प्रश्न पूछा करते थे. वे आदर्श, धर्म, सत्य की खोज करने वाले जिज्ञासु हैं. इस विधा में देवर्षि नारद सबसे अनुकूल हैं. नारद जी जन-जन को सत्यता का आचरण स्वीकारने, निष्ठा के साथ संदेश देने और सत्यता की खोज करने वाले महर्षि हैं.
वर्तमान में असत्यता को दूर करते हुए सत्यता की स्थापना करना ही पत्रकारिता है. आपातकाल के समय में जब हर किसी का मुँह बंद करने की कोशिश की गयी तो कुछ पत्रकारों ने अपना धर्म निभाते हुये सत्यता को सबके सामने प्रस्तुत किया. उन्होंने निष्पक्षता के साथ संदेश का संचार किया. जो सत्य था वही लिखा, यही कारण है कि उस काल की कुछ ही खबरें जो सत्यता को उजागर करती हैं, उनकी आज भी चर्चा की जाती है. शेष खबरों का कोई संज्ञान नहीं लेता.
सुभाष जी ने कहा कि पत्रकारिता में वर्तमान समय में पूर्णता की आवश्यकता है. इस पूर्णता के लिये सत्यता के साथ खोजबीन करते हुये समाचार को प्रस्तुत करने की आवश्यकता है. इसी से संतुलन आ सकता है.
राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार उमेश उपाध्याय ने कहा कि आज की पत्रकारिता में द्वंद है. पहले की पत्रकारिता मिशन थी, जबकि आज की पत्रकारिता अधर में ही लटकी हुई है. देवर्षि नारद की संचार शैली आज की संचार शैली से अलग है. आज की पत्रकारिता में समन्वय और संतुलन बनाए रखना है. आज लगभग नकारात्मक खबरें ही लीड खबर बनती है. दुनिया में भी लीड खबर की मूल अवधारणा में नकारात्मकता है. भारत के मीडिया को इस नैरेटिव से बाहर आने की आवश्यकता है. मानव सभ्यता का विकास विविधता में होता है.
उपाध्याय ने कहा कि आज अखबारों में नकारात्मकता दिखती है. नारद जी का लोकहित वाला चिंतन नहीं दिखता. भारतीय मीडिया अभी पाश्चात्य देशों पर आधारित है. वर्तमान मीडिया नकारवादी है. कोरोना काल में भारत के विरुद्ध कई तरह की खबरें लिखी गयीं ताकि यह साबित किया जा सके कि भारत में मरने वालों के आंकड़े गलत बताये जा रहे हैं. बाद में विदेशी मीडिया ने स्वीकार किया कि उसने गलत समाचार प्रस्तुत किया था. देश की संस्कृति पर कुठाराघात करने वाले ऐसे मीडिया को नकारने की जरूरत है. भारतीय मीडिया को विदेशी मीडिया की ओर चलाए जाने वाले नैरेटिव से बाहर आना होगा. नकारात्मकता को छोड़ना होगा. भारतीयों की हर उपलब्धि पर सवाल पूछे जाते हैं. इस मानसिकता को स्वीकार करने का बहिष्कार करना होगा.
संगोष्ठी की प्रस्तावना अवध प्रांत प्रचार प्रमुख डॉ. अशोक दुबे ने रखी. उन्होंने कहा कि देवर्षि नारद जी के संचार के विविध सोपानों को हम जानते हैं. देवर्षि नारद ने हमेशा लोकमंगल की पत्रकारिता की. भारत में भौतिक समृद्धि के साथ-साथ आध्यात्मिकता अधिष्ठान पर भी बल दिया गया है. पत्रकारिता के क्षेत्र में देवर्षि नारद हमारी संस्कृति में पूजनीय हैं.
संगोष्ठी के अंतिम सत्र में लेखक, वरिष्ठ पत्रकार और विश्व संवाद केंद्र के अध्यक्ष नरेंद्र भदौरिया ने कहा कि भारत के दर्शन और संस्कृति को पाश्चात्य देशों द्वारा हमेशा नकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया जाता है. हमें अपनी संस्कृति पर संशय नहीं करना है. आज की पत्रकारिता ने सोशल मीडिया के सामने घुटने टेक दिए हैं. भारत का विज्ञान सबसे उत्तम है. हमें साहस से दिशा मोड़नी है.