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जानें क्यों काशी में मनाया जाता है देव दीपावली का पर्व

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वनारस। देव दीपावली, अर्थात् देवताओं की दीपावली, कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन भगवान विश्वनाथ की नगरी वाराणसी में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पौराणिक त्यौहार है, जिसे प्रतिवर्ष दिव्य और भव्य रूप में मनाया जाता है। यूँ तो काशी में प्रतिदिन माँ गंगा की भव्य संध्या आरती का आयोजन किया जाता है, परंतु देव दीपावली के दिन की गंगा आरती अपने आप में एक विशेष महत्व रखती है। तो आइए जानते हैं कि देव दीपावली का क्या महत्व है और कैसे इसका नाम देव दीपावली पड़ा?


क्या है देव दीपावली की कथा

सनातन संस्कृति में देव दीपावली की कथा अत्यंत पौराणिक है। कथा के अनुसार एक बार त्रिपुरासुर नाम के एक राक्षस ने स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल तीनों लोकों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था, और वह देवताओं पर अत्यंत अत्याचार करने लगा। देवताओं को उसके अत्याचारों से मुक्त होना था परंतु उन्हें मुक्ति का कोई मार्ग दिखाई नहीं दे रहा था। अंत में सभी देवतागण भगवान शिव के पास गए और उनसे त्रिपुरासुर का वध करने की प्रार्थना की। भगवान शिव ने समस्त देवगणों की प्रार्थना को स्वीकार करते हुए कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन त्रिपुरासुर का वध किया और देवताओं को उसके आधिपत्य से मुक्त कराया। त्रिपुरासुर के वध के बाद देवताओं ने स्वर्गलोक में दीप जलाकर भगवान शिव का स्वागत किया और खुशी के इस अवसर को देव दीपावली का नाम दिया।


काशी में क्यों मनाते हैं देव दीपावली

जब भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध कर दिया तो देवताओं ने मिलकर उन्हें काशी में त्रिपुरारी के रूप में स्थापित किया और यहाँ भी दीप जलाए, तभी से लेकर आज तक प्रतिवर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन काशी में देव दीपावली हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। माँ गंगा के किनारे लाखों की संख्या में दीप प्रज्ज्वलित किये जाते हैं, और दीपदान के साथ माँ गंगा की भव्य आरती की जाती है। यह दृश्य न केवल देखने में अत्यंत सुंदर होता है, बल्कि एक धार्मिक और आध्यात्मिक माहौल का भी निर्माण करता है।

देव दीपावली का महत्व

देव दीपावली केवल काशी में ही नहीं बल्कि कई अन्य धार्मिक नगरों में भी मनाई जाती है। इस दिन के अवसर पर भगवान गणेश, माता लक्ष्मी समेत विभिन्न देवी देवताओं की पूजा की जाती है परंतु भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन घरों और मंदिरों में दीप जलाने के साथ-साथ मंत्रोच्चारण भी किया जाता है। यह त्यौहार विशेष रूप से बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है।