जिसे भगवान शिव का घर भी कहते हैं...
हजारों लाखों सनातनी इसके दर्शन करने के लिए कई दिनों की लम्बी यात्रा तय करते हैं।
और पहुँचते हैं कैलाश मानसरोवर....जहाँ से दर्शन होते हैं भव्य कैलाश पर्वत के...
लेकिन इसमें एक बड़ा बाधक है चीन का रवैया। अब तक कैलाश पर्वत के दर्शन के लिए तिब्बत से होते हुए जाना होता था जिस पर चीन ने अवैध रूप से अतिक्रमण किया हुआ है। लेकिन अब सनातनियों को उस दुर्गम मार्ग से नहीं जाना पड़ेगा क्योंकि अब भारताय उत्तराखण्ड से ही कैलाश दर्शन का लाभ उठा पाएंगे। दरअसल, उत्तराखंड में एक जगह है लिपुलेख दर्रा, जहाँ से भगवान शिव का घर कैलाश पर्वत दिखाई देता है। जिसे पिथौरागढ़ के स्थानीय लोगों ने खोज निकाला है और अब सरकार इसके लिए मार्ग को सुगम बनाने का काम कर रही है।
क्या है कैलाश यात्रा का महत्व
कैलाश पर्वत सनातनियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र है, क्योंकि यहीं पर भगवान शिव का घर है। भगवान शिव माता पार्वती के साथ यहीं पर निवास करते हैं। कैलाश पर्वत की ऊंचाई लगभग 6,714 मीटर है। इसे धरती का केन्द्र बिंदु भी माना जाता है। प्राचीन काल से लेकर आज तक कई लोगों ने कैलाश पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की है लेकिन आज तक कोई सफल नहीं हो पाया है। माना जाता है कि 11वीं सदी में एक तिब्बती बौद्ध योगी मिलारेपा ही कैलाश पर्वत की चढ़ाई करने में सफल हुए थे। मान्यता यह भी है कि कैलाश पर्वत पर समय बहुत तीव्रता से व्यतीत होता है।
सनातनियों का मानना है कि इस पर्वत की तीन या 13 परिक्रमा करना चाहिए इसकी परिक्रमा पापों से मुक्ति पाने का एक मार्ग है। कई तीर्थ यात्री दंडवत प्रणाम करते हुए भी इसकी परिक्रमा करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति कैलाश पर्वत की 108 परिक्रमा पूरी कर लेता है उसे जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है।
मान सरोवर झील
कैलाश पर्वत से कई बड़ी नदियाँ जैसे सिंधु, ब्रह्मपुत्र, और सतुलज आदि नदी निकलती हैं इसके साथ ही कैलाश पर्वत के नीचे दो प्रमुख झीलें भी हैं, जिनके नाम हैं – मानसरोवल झील और राक्षस झील। मानसरोवर झील विश्व की सबसे ऊंचाई पर स्थित झीलों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि इस झील में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं। सर्दियों में ये झील पूरी तरह से जम जाती है और गर्मियों में जब ये पिघलती है तो इसमें से मंत्रमुग्ध कर देने वाली मृदंग की आवाज निकलती है।
कैलाश दर्शन का पुराना मार्ग
पहले कैलाश पर्वत के दर्शन के लिए कैलाश मानसरोवर तक पहुँचना होता है, जिसके लिए भारत के लिपुलेख बॉर्डर से नेपाल होते हुए तिब्बत जाना पड़ता था। इसके लिए चीन से परमिशन लेनी पड़ती थी, और वीजा और पासपोर्ट भी जरूरी होता था। कैलाश मानसरोवर की यात्रा में कम से कम 21 दिन का समय लगता है। कोविड महामारी आने के बाद से तो कैलाश मानसरोवर की यात्रा को बंद ही कर दिया गया था।
कैलाश दर्शन का नया मार्ग
कैलाश पर्वत के दिव्य दर्शन के लिए सबसे पहले आपको उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ आना होगा। इसके बाद बस के माध्यम से पिथौरागढ़ से 90 किमी. दूर नेपाल बॉर्डर पर स्थित धारचूला पहुँचना होगा। धारचूला से आगे जाने के लिए आपको परमिट लेना पड़ेगा, साथ ही हेल्थ चेकअप भी कराना होगा। ये सब होने के बाद धारचूला से गुंजी के लिए निकल जाइए, धारचूला से गुंजी के लिए शेयर टैक्सी भी चलती हैं, इसके अलावा आप बुकिंग करके भी जा सकते हैं।
गुंजी पहुँचकर आप आसानी से लिपुलेख दर्रा पहुँच जाएंगे जहाँ कैलाश व्यू प्वाइंट से आप कैलाश पर्वत के दिव्य दर्शन के साथ - साथ यहाँ के सुहावने दृश्य और अलौकिक शांति का आनंद उठा सकते हैं।
इन चीजों का रखें विशेष ध्यान
कैलाश दर्शन की यात्रा के समय कुछ मुख्य चीजों का ध्यान रखना भी आवश्यक है, जिससे आपकी यात्रा सरल और सुगम हो जाएगी –
यात्रा के लिए पैकिंग करते समय अपने साथ गर्म कपड़े अवश्य रखें क्योंकि यात्रा का रास्ता और लिपुलेख दर्रा का क्षेत्र अत्यंत सर्दीला है। दूसरा रेन कोट, टॉर्च और एक्सट्रा कपड़े भी रखें, इसके साथ ही मेडिसिन का एक बॉक्स भी अवश्य रखें, जिसमें सामान्य बीमारी की सभी दवाई होनी चाहिए। इसके अलावा अपने साथ अधिक से अधिक कैश लेकर चलें क्योंकि ऐसी जगहों पर एटीएम नहीं होता है और इंटरनेट भी कम चलता है। साथ ही दस्तावेजों को भी साथ रखें और सुरक्षित रखें। क्योंकि यात्रा का रास्ता पहाड़ी और जंगली है इसलिए पहाड़ों और जंगलों मंे अकेले न जाएं और रात के समय बाहर न निकलें।