सामाजिक दायित्वों और नागरिक कर्तव्यों के प्रति सजग दिखे गाजियाबाद के हाईराइज सोसाइटीज के लोग
लेखक- डॉ. दीपा रानी, पोस्ट डॉक्टरल शोधार्थी
कहते हैं बदलाव सृष्टि का नियम है। समाज निरंतर अपनी आवश्कताओं को परिस्थितिनुसार अवलोकन एवं उन्मूलन कर स्वयं एवं अपने समाज को उस दिशा में ढालने का प्रयास करता है। माना जाता है कि दुनिया में सनातन धर्म ही एक ऐसा धर्म है जिसमे मनुष्य सिर्फ समाज के निजी कर्तव्यों तक ही सीमित नहीं है बल्कि अपने आस पास रह रहे प्रत्येक जीव जंतुओं के प्रति भी संवेदनशील है। अपने निजी दिनचर्या से समय निकालकर वह अपने आसपास के जीव जंतुओं, पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों को संरक्षित कर रहा है। पिछले कई दशकों से यह अनुभव किया गया कि आधुनिकीकरण के दौड़ में सनातन धर्म के मूल कर्तव्य लुप्त होते जा रहे हैं जिसके फलस्वरूप भारतीय समाज अपने नैतिक कर्तव्यों से दूर होता जा रहा है। पश्चिमी विकास के मॉडल को अपनाने की होड़ में नई पीढ़ियां ना केवल सामाजिक कर्त्तव्यों और पर्यावरण के प्रति गैर जिम्मेदार हो रही हैं बल्कि अपनी पारिवारिक परंपराओं का भी छय कर रही हैं। लगातार बदलते परिवेश और नष्ट होते वातावरण का असर अब मानव समाज, जीवजंतुओं एवं प्राणियों पर दिखने लगा है। पिछले कई दशकों से उनके मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य में भी बड़ी गिरावट देखने को मिली है। बढ़ते प्राकृतिक प्रदूषण, छिन्न होते वातावरण, घटते पक्षियों की संख्या, बढ़ते मानवीय रोग तथा अन्य प्रकार की परेशानियों ने उसे प्रकृति के प्रति सचेत कराया जिसके फलस्वरूप अब लोग अपनी सनातन परंपराओं के आदर्शों को अपनाते हुए स्वयं के नैतिक कर्तव्यों के प्रति जागरूक होते दिख रहे हैं। इसके कई सुंदर उदाहरण गाजियाबाद के राजनगर एक्सटेंशन के कुछ हाई राइज सोसाइटीज में देखने को मिल रहे हैं। जब हमने यहाँ पर रह रहे कुछ निवासियों से बात की तो उन्होंने इसे स्वीकारा और कहा कि ये सच है कि वातावरण की स्थिति बहुत ख़राब हुई है, हवा में मानो जहर सा घुल गया है, लोगो को साँस लेने में दिक्कत हो रही है, नई उम्र के बच्चों में अस्थमा, सांस लेने की समस्या, फेफड़ों के ख़राब होने की रिपोर्ट आम हो गई है। जल प्रदूषण की भी समस्या बढ़ गई है। शुद्ध जल ना मिलने की वजह से लोगों में तरह तरह की बीमारियाँ हो रहीं हैं।
पर्यावरण की समस्या की वजह से बहुत से पक्षी लुप्त होते जा रहे हैं। गर्मी में पानी ना मिल पाने के कारण बहुत से पशुओं और पक्षियों का जीवन संकट की स्थिति में है। यहाँ के निवासियों का कहना है एक जिम्मेदार नागरिक होने के हमारे कुछ मानवीय कर्तव्य हैं, कि हम उनके लिए अपनी सुविधा अनुसार यथा संभव प्रयास करें तथा लोगों को इसके प्रति जागरूक करें। इन्ही बातों को ध्यान में रख कर हम सभी सोसाइटी के कुछ निवासियों ने आपसी सहयोग लेकर निर्णय लिया कि हम सोसायटी के अंदर एवं बाहर चिड़ियों एवं जानवरों के खाने और पीने के कुछ स्थान बनायेंगे। और उन्होंने ऐसा किया भी। सोसाइटीज के बाहर जानवरो के लिए मिट्टी और सीमेंट से बने बर्तन रखें गए है ताकि रोड पर घूमते आवारा जानवरों को भी भोजन पानी मिल सके। सैफायर सोसाइटी में रहने वाली ‘एनिमल वेलफेयर वालंटियर’ निधि इन असहाय जानवरों की स्थिति बताते हुए भावुक हो जाती हैं और कहती हैं कि उन्हीं की सोसाइटी के कुछ गैर जिम्मेदार लोगों ने उन्हें रोकने का भी प्रयास किया और साथ ही न रुकने पर मारपीट की चेतावनी भी दी, परंतु वह अपने निर्णय पर अडिग रहीं एवं आज भी वह हर रोज कई गायों और कुत्तों को खाना खिलाती हैं और साथ ही अपनी वित्तीय सुविधानुसार जानवरों को टीके और बीमार होने पर उनके इलाज के लिए डॉक्टरों की फीस का भी प्रबंध करती हैं। उनका कहना है समाज में जागरूकता पहले से बढ़ी है। कई सोसाइटी के लोग अब अपने कर्तव्यों को निभाते अपने ख़ुद के पैसे से गायों, कुत्तों, पक्षियों के लिए भोजन पानी और उनकी बीमारी एवं टीके में लगने वाले खर्च का प्रबंध कर रहे हैं। कई सोसाइटीज में अब आपको पशु पक्षियों के लिए विशेष व्यवस्थाएं देखने को मिल जायेगी। कुछ सोसाइटीज तो साल के बारह महीने पशु-पक्षियों के लिए विशेष जल एवं भोजन हेतु समुचित स्थान बनाकर उनके स्वास्थ्य की रक्षा करने का प्रयास कर रही हैं। अमूमन हर सोसाइटीज में हरे-भरे पार्काे की व्यवस्था की गई है जहाँ सुबह शाम योगाभ्यास करते सोसाइटीज के निवासियों के अलावा तरह-तरह के पक्षियों-गिलहरियों के भी कलरव सुनने को मिल जायेंगे।
ऐसे छोटे-छोटे प्रयासों की मदद से अप्रैल-मई के भीषण गर्मियों में भी पशु पक्षियों का विशेष ध्यान रखा जाना संभव हो पा रहा है। सामाजिक चेतना के इन प्रयासों की मदद से नागरिक कर्तव्यों को बढ़ावा मिल रहा है। हर सोसाइटीज में एओए (AOA) की समिति बनाई गई है जो अपनी सोसाइटी की निजी परेशानियों के अलावा इन विषयों पर भी ध्यान दे रही है। नागरिक कर्तव्यों का बोध कराते गाजियाबाद सोसाइटीज के ये छोटे-छोटे प्रयास सराहनीय हैं जिसकी मदद से समाज के पशु पक्षियों को भी संरक्षण मिल पा रहा है। ऐसे प्रयासों को हर क्षेत्र में बढ़ावा मिलना चाहिए ताकि भारतीय सनातन परंपराओं के मूल्यों को पुनः स्थापित किया जा सके।