मथुरा। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के जजों की लाइब्रेरी में स्थापित की गई न्याय की देवी की प्रतिमा इन दिनों खूब चर्चाओं में है। इसे लेकर भारत वर्ष के कोने-कोने से प्रशंसा की बातें सुनने को मिल रही हैं। इस मूर्ति को उत्तर प्रदेश के मथुरा के नंदगाँव नामक गाँव के रहने वाले मूर्तिकार और चित्रकार प्रो. विनोद गोस्वामी ने तैयार किया है, उनके इस कार्य की खूब सराहना हो रही है।
प्रो. विनोद ने मास्टर डिग्री करने के बाद 1997 में जयपुर से अपने करियर की शुरुआत की थी। जब प्रोफेसर नंदगाँव पहुँचे तो गाँव के लोगों ने उनका भव्य स्वागत किया, साथ ही उन्होंने नंदबाबा मंदिर में माथा टेककर आशीर्वाद भी लिया। बता दें कि नई न्याय की देवी की मूर्ति बनाने में लगभग 5 महीने का समय लगा है, और इसे CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने ऑर्डर देकर बनवाया है।
कैसी थी पुरानी प्रतिमा
अगर पुरानी प्रतिमा की बात की जाए तो 19वीं सदी में,
जब भारत के अंदर ब्रिटिश
न्यायिक प्रणाली स्थापित हो रही थी तब न्याय की देवी पश्चिमी न्याय
प्रणाली का हिस्सा थी जिसे भारत की न्याय प्रणाली में भी शामिल किया गया। इस प्रतिमा को 1870 के आसपास ब्रिटिश
मूर्तिकार फ्रेडरिक गुट्रिज और उनकी टीम ने मिलकर बनाया था जिसे विशेष रूप से मुम्बई
उच्च न्यायालय के लिए बनाया गया था। बाद में इसे भारतीय न्याय प्रणाली में शामिल
करते हुए सभी उच्च न्यायालयों के साथ-साथ स्रवोच्च न्यायालय में भई स्थापित किया
गया।
अगर इस प्रतिमा की विशेषताओं की बात करें तो यह प्रतिमा रोमन माइथोलॉजी की न्याय की देवी 'जस्टीशिया' की थी। जिसके दाएं हाथ में तराजू थी जो इस बात का प्रतीक है कि कानून के लिए सभी बराबर हैं, बाएं हाथ की तलवार गलत कार्य के लिए दंडित करने की शक्ति का प्रतीक थी। इस प्रतिमा की आँखों पर पट्टी बंधी थी जो इस बात का प्रतीक थी कि न्याय निष्पक्ष होना चाहिए।
परंतु इसकी एक नकारात्मक व्याख्या बनने लगी थी कि कानून अंधा है। इसी को देखते हुए CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने मूर्तिकार प्रो. विनोद गोस्वामी को नई प्रतिमा बनाने का ऑर्डर दिया।
कैसी है नई प्रतिमा
अगर न्याय की देवी की नई प्रतिमा की बात करें तो इसे संफेद रंग में
बनाया गया है। देवी की प्रतिमा को भारतीय वेशभूषा में दर्शाया गया है जिसके सिर पर
मुकुट और माथे पर बिंदी तथा गर्दन और कानों को पारंपरिक आभूषणों से सजाया गया है।
पुरानी प्रतिमा की भाँति इस प्रतिमा के दाएं हाथ में भी कराजू को बरकरार रखा गया
है परंतु बाएं हाथ में तलवार के स्थान पर संविधान की किताब दी है जो यह दर्शाता है
कि भारतीय न्याय व्वस्था में संवैधानिक मूल्यों और निष्पक्षता के साथ न्याय होता है।
इस प्रतिमा की मुख्य विशेषता है इसकी आँखों की पट्टी, जो नई प्रतिमा की आँखों से हटा दी गई है जो इस बात का प्रतीक है कि कानून अंधा नहीं है बल्कि चौकस और जागरूक है, साथ ही पारदर्शिता और समानता के साथ संविधान के आधार पर काम करता है।