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रत्नदीप थे सरदार चिरंजीव सिंह जी, जहां भी होंगे जग को प्रकाशित करेंगे: RSS के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत

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राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक सरदार चिरंजीव सिंह के निधन पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से दिल्ली स्थित एनडीएमसी में शोक सभा आयोजित की गई। इस दौरान राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत जी ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने सरदार जी की तुलना रत्नदीप से की। भागवत जी ने कहा कि सरदार जी ऐसे महापुरुष थे जो कि रत्नदीप के समान थे, जिन्हें क्या स्टेटस है क्या पोजीशन है, कितना शरीर में बल है उन्हें कोई चिंता नहीं होती। उनका स्वभाव होता है, वो जहां भी होंगे वहां जग को प्रकाशित करेंगे।

सरसंघचालक जी ने कहा कि सरदार जी संघ के शिक्षक रहे। शिक्षक के तौर पर वो काफी कठोर रहे, लेकिन उसके बाद वो सभी से काफी स्नेह करते थे। उनका स्वभाव बहुत ही विनम्र कोमल औऱ प्रभावशील था। वो जहां भी जाते थे, वहीं के हो जाते थे। सरदार जी के बारे में सर संघचालक ने कहा, “सूर्य का उदय पूर्व में हो या पश्चिम में रंग हमेशा लाल ही होता है।” जो साधु स्वभाव के लोग होते हैं उनका रंग किसी भी परिस्थिति में बदलता नहीं है। चिरंजीव सिंह जी ऐसे ही प्रचारक थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन संघ के प्रचार को समर्पित कर दिया।

वहीं इस मौके पर विश्व हिन्दू परिषद के कार्याध्यक्ष आलोक कुमार जी ने भी सरदार जी श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा कि सरदार जी का व्यवहार बहुत ही मधुर था और वो सभी को प्रेम के बंधन में बांधकर रखते थे। संतों के परिवार के थे। उन्हें गाने का बहुत ही अच्छा अभ्यास था। उनके स्वर बहुत ही मधुर थे। आलोक कुमार जी ने सरदार जी के सानिध्य के बारे में कहा कि जब वो संघ के द्वितीय शिक्षण वर्ग में गए तो सरदार जी वहां मुख्य शिक्षक थे। जिस समय पंजाब में आतंकवाद का दौर था। हर दिन भाजपा और संघ के लोगों की हत्याएं होती थीं। संघ ने ही हमें सिखाया कि ये सिखों की गलती नहीं है, बल्कि ये तो कुछ आतंकवादियों की गलती है और इसलिए पूरे समाज को दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए। इसमें सरदार जी ने सांझीवालता में बहुत ही बड़ा योगदान दिया था। बाद में राष्ट्रीय सिख संगत का नेतृत्व सरदार चिरंजीव सिंह जी ने संभाला।

20 नवंबर को ली थी आखिरी सांस गौरतलब है कि वरिष्ठ प्रचारक सरदार चिरंजीव सिंह जी ने 93 वर्ष की आयु में सोमवार (20, नवंबर, 2023) को आखिरी सांस ली थी। पंजाब में आतंकवाद के दिनों में उन्होंने गुरू नानक देवजी के संदेशों के माध्यम से हिन्दू-सिख समाज के बीच में बढ़ रहे तनाव को दूर करने का अविस्मरणीय कार्य किया था। वे राष्ट्रीय सिख संगत के पहले महासचिव और बाद में अध्यक्ष भी रहे थे। वे सिख इतिहास और संस्कृति के बड़े जानकार होने के साथ ही बेहद विनम्र और मिलनसार थे।

चिरंजीव जी का जन्म एक अक्तूबर, 1930 (आश्विन शु. 9) को पटियाला में एक किसान श्री हरकरण दास (तरलोचन सिंह) तथा श्रीमती द्वारकी देवी (जोगेन्दर कौर) के घर में हुआ था। मां सरकारी विद्यालय में पढ़ाती थीं। उनसे पहले दो भाई और भी थे; पर वे बचे नहीं। मंदिर और गुरुद्वारों में पूजा के बाद जन्में इस बालक का नाम मां ने चिरंजीव रखा। 1952 में उन्होंने राजकीय विद्यालय पटियाला से बी.ए. किया। वे बचपन से ही सब धर्म और पंथों के संतों के पास बैठते थे।

1944 में कक्षा सात में पढ़ते समय वे अपने मित्र रवि के साथ पहली बार शाखा गए थे। वहां के खेल, अनुशासन, प्रार्थना और नाम के साथ ‘जी’ लगाने से वे बहुत प्रभावित हुए। शाखा में वे अकेले सिख थे। 1946 में वे प्राथमिक वर्ग और फिर 1947, 50 और 52 में तीनों वर्ष के संघ शिक्षा वर्गों में गए। 1946 में गीता विद्यालय, कुरुक्षेत्र की स्थापना पर सर संघचालक श्री गुरुजी के भाषण ने उनके मन पर अमिट छाप छोड़ी। गला अच्छा होने के कारण वे गीत कविता आदि खूब बोलते थे। श्री गुरुजी को ये सब बहुत अच्छा लगता था। अतः उनका प्रेम चिरंजीव जी को खूब मिला।

1948 के प्रतिबंध काल में वे सत्याग्रह कर दो मास जेल में रहे। बी ए के बाद वे अध्यापक बनना चाहते थे, लेकिन विभाग प्रचारक बाबू श्रीचंद जी के आग्रह पर 1953 में वे प्रचारक बन गए। वे मलेर कोटला, संगरूर, पटियाला, रोपड़, लुधियाना में तहसील, जिला, विभाग व सह संभाग प्रचारक रहे। लुधियाना 21 वर्ष तक उनका केन्द्र रहा। संघ शिक्षा वर्ग में वे 20 वर्ष शिक्षक और चार बार मुख्य शिक्षक रहे। 1984 में उन्हें विश्व हिन्दू परिषद, पंजाब का संगठन मंत्री बनाया गया। इस दायित्व पर वे 1990 तक रहे।