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आजादी का अमृत महोत्सव

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं स्वदेशी

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·         जैसे बालक के लिये जन्मदात्री माँ से बढकर अन्य कोई नहीं हो सकता हमारे लिये देश में उत्पन्न पदार्थों से श्रेष्ठ अन्य कुछ नहीं हो सकता।

·         हम स्वयं को विस्मृत कर मानसिक रूप से औरों के गुलाम न बनें, यही स्वदेशी का भाव है।

भारत को परम वैभवशाली, सुसमृद्ध, ज्ञान विज्ञान विभूषित, अध्यात्म संपदा से अंलकृत, शक्तिशाली अखण्ड़, विश्वगुरू बनाने की संकल्पना के साथ परमपूज्य डॉ. केशव बलिराम हेड़गेवार ने छत्रपति शिवाजी महाराज एवं संत ज्ञानेश्वर, समर्थ रामदास की परम पूण्य भूमि महाराष्ट्र के नागपुर में सन् 1924 की विजयादशमी के दिन संघ की स्थापना की थी। पांच वर्ष पश्चात् विश्व का यह महानतम संगठन अपना शताब्दी वर्ष मनायेगा। पूज्य डॉ. हेड़गेवार जी, पूज्य गुरूजी एवं संघ के कोटि-कोटि स्वयंसेवकों के सपनों को साकार करते हुए दुनिया का सबसे शक्तिशाली एवं समृद्ध देश बनकर विश्व गगन में जगमगायेगा।

अपने जन्म काल से ही राष्ट्र-जीवन के विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित और आलोकित करने वाले संघ ने विभिन्न प्रकार की परिकल्पनाओं, योजनाओं के माध्यम से राष्ट्र को शक्तिशाली बनाने का कार्य किया है। स्वयंसेवकों की शाखा की आधारशिला पर खड़े संघरूपी भवन का अनेक दिशाओं में विस्तार हुआ। विद्या भारती, संस्कृत भारती, सेवा भारती, विश्व हिन्दू परिषद, भारतीय मजदूर संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्, जनसंघ (वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी) आदि रूपों में संघरूपी वृक्ष की शाखाओं का विस्तार हुआ। इस समग्र अभियान को आगे बढाने के लिए यह बहुत आवश्यक था कि पराधीन देश में सोया हुआ अथवा खोया हुआ आत्म गौरव का भाव देशवासियों के हृदयों में जागृत एवं स्थापित हो। आत्महीनता की ग्रन्थि को शिथिल करने के लिए कभी अरविन्द घोष, रविन्द्र नाथ ठाकुर, वीर सावरकर, लोकमान्य बालगंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय जैसे महापुरुषों ने स्वदेशी आन्दोलन चलाया था।

अंग्रेज व्यापारी बनकर इस देश में आये थे और धीरे-धीरे छल कपट से राजा बन गये। विदेशों में बना हुआ सामान भारत के बाजारों में बिकने लगा और हमारा धन इंग्लैण्ड जाने लगा। हमारी शिक्षा व्यवस्था, संस्कृति, सभ्यता, वेशभूषा, भाषा पर भी आक्रमण होने लगा। हम अपनी वैदिक, गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति को भूलकर पाश्चात्य शिक्षा के दास बनते गये, देशभक्ति की प्रचण्ड ज्वाला निस्तेज होने लगी। इन सारी समस्याओं का एक ही समाधान था-स्वदेशी भाव का जागरण। अपने देश में बने हुए पदार्थ, वस्त्र, आभूषण, अपनी भाषाएं, अपनी शिक्षा, अपने देश के हजारों, लाखों वर्षों से चली आ रही चिकित्सा पद्धति आदि को सम्मानित, प्रचारित, प्रसारित कर निर्धनता पर प्रहार करना इस आन्दोलन का उद्देश्य था। यह सर्वविदित तथ्य है कि जिस भू-भाग में, जिस मौसम में जो वनस्पतियां, अन्न, फल आदि उत्पन्न होते हैं वे वहां के निवासियों के लिये सर्वथा अनुकूल, स्वास्थ्यप्रद एवं हितकर होते हैं। जैसे बालक के लिये जन्मदात्री माँ से बढकर अन्य कोई नहीं हो सकता हमारे लिये देश में उत्पन्न पदार्थों से श्रेष्ठ अन्य कुछ नहीं हो सकता।

हमारे वैज्ञानिक, इंजीनियर्स, सैनिक, शिक्षक, लेखक, कवि, कृषक, उद्यमी, शिल्पी संसार में श्रेष्ठ माने जाते हैं। हमारी संस्कृत भाषा, संसार की सर्वश्रेष्ठ भाषा है। वेदों जैसा ज्ञान संसार के किसी अन्य ग्रन्थ में हो ही नहीं सकता। फिर हम स्वयं को विस्मृत कर मानसिक रूप से औरों के गुलाम न बनें, यही स्वदेशी का भाव है। इसके लिये संघ ने ‘स्वदेशी जागरण मंच’ की स्थापना सन् 1991 में माननीय श्री दत्तोपन्त ठेंगड़ी जैसे असाधारण प्रतिभा संपन्न देशभक्तों ने की। स्वदेशी का अभिप्राय है दूर के स्थान पर समीप को प्राथमिकता देना। स्वदेशी का मूल केन्द्र परिवार, परिवार से आगे समाज, राष्ट्र और फिर विश्व - ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ ‘यत्र विश्व भवत्येकनीडम्’ का यही अभिप्राय है। बहुत से चिन्तक व्यक्ति को स्वदेशी की प्रथम इकाई मानते हैं किन्तु व्यक्ति के स्थान पर परिवार को प्रथम इकाई मानकर आगे बढ़े ंतो अच्छा परिणाम होगा। स्वदेशी केवल आर्थिक समृद्धि तक सीमित अवधारणा नहीं है, अपितु इसमें राष्ट्र के आत्म सम्मान, समाज के उत्थान, पर्यावरण सन्तुलन, आवश्यकतानुसार उपभोग, पारिवारिक संरचना का भाव भी समाहित है।

भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी ने आत्म-निर्भर भारत, लोकल, वोकल और ग्लोबल का जो ऐतिहासिक सन्देश दिया है, उसके मूल में स्वदेशी का पावन भाव ही निहित है। स्वदेशी जागरण मंच का कहना है कि प्रधानमंत्री की अपील से स्वदेशी आन्दोलन और तेज होगा। 28 अक्टूबर 2018 को चीनी सामान के विरोध में अभियान चला। इसको व्यापक जनसमर्थन प्राप्त हुआ। किसी भी देश का आत्म निर्भर होना, स्वदेशीपन को ही प्रदर्शित करता है।

वैश्विक महामारी कोरोना ने भी करोड़ो देशवासियों के हृदयों में स्वदेशी, आत्मनिर्भरता और आत्मगौरव का दिव्य भाव जगाया है। स्वदेशी एवं आत्मनिर्भरता से देशवासियों की शिल्पकला, लघु कुटीर-उद्योग, छोटे-छोटे कृशकों की कृशि, पशुपालन, खादी आदि का गौरव वृद्धि को प्राप्त होगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जिनक कार्यों के लिये जाना, पहचाना जाता है उसमें स्वदेशी जागरण एक अत्यन्त आवश्यक एवं प्रमुख अभियान है। इससे देशभक्ति की भावना और अपने देश की भूमि, पर्वत, नदियां, सरोवर, प्राकृति सम्पदा के प्रति श्रद्धा जागृत होती है। अपना सर्वस्व भारत माता की सेवा में समर्पित कर देने वाले असंख्य संघ के स्वयंसेवकों ने जो सपने देखे थे उनको अपनी आंखों के समक्ष साकार होते हुए देखने का सुखद अवसर हमारे समक्ष उपस्थित हो रहा है। आओ! इसका स्वागत करें।

 

(नोट : ये लेखक के निजी विचार हैं)