नई दिल्ली. दिल्ली दंगे 2020 की चौथी बरसी पर, GIA (ग्रुप ऑफ इंटेलेक्चुअल्स एंड एकेडमिशियन) ने नालंदा हॉल, अम्बेडकर अंतरराष्ट्रीय केंद्र में सम्मेलन आयोजित किया. प्रारंभ में 2019 के नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरुद्ध (CAA) और उत्तर पूर्व दिल्ली में हिंसा के दौरान पृष्ठभूमि, कथन और घटनाओं पर चर्चा की गई. कार्यक्रम में, किरोड़ीमल महाविद्यालय के अध्यक्ष, चंद्र वाधवा जी ने बताया कि वर्ष 2019 भारतीय राजनीति के इतिहास में एक परिवर्तन का क्षण रहा क्योंकि इस समय के ऐतिहासिक निर्णयों जैसे धारा 370 का उन्मूलन, तीन तलाक का प्रतिषेध और श्रीराम जन्मभूमि पर फैसला आया. लेकिन इसने सांप्रदायिक टकराव का रूप लिया, जो वास्तव में योजनाबद्ध था. उन्होंने तथ्यों और रिपोर्ट के अनुसार बताया कि दंगा प्रभावित क्षेत्रों में किसी भी मुस्लिम समुदाय पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. इसके बाद, न्यायमूर्ति एस.एन. श्रीवास्तव इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ने बताया कि हिंसा कैसे हुई और क्यों हुई. उन्होंने समाधान देते हुए कहा कि सरकार सेना के रिटायर्ड कर्मियों की मदद और समर्थन से हिन्दू समुदाय पर होने वाली हिंसा को रोक सकती है.
नूपुर जे शर्मा ने न्यायपालिका के तहत फोरम शॉपिंग और बेंच फिक्सिंग के उदाहरणों पर सवाल उठाया. इसके बाद, दिल्ली दंगों के पीड़ितों की आपबीती सुनाई कि कैसे उन्हें गलत तरीके से आरोपित किया गया और उन्हें बाद में किसी प्रकार का मुआवजा भी नहीं मिला.
पश्चिम बंगाल के संदेशखाली में हुई घटनाओं पर भी चर्चा हुई. साथ ही इन सब मुद्दों पर जागरूकता को बढ़ाने कहा. पूर्व डीजीपी, झारखंड निर्मल कौर ने भी सुझाव दिया कि हमें इन उदाहरणों को भूलना नहीं चाहिए. दीपक मिश्रा ने दंगों में पुलिस की भूमिका और कैसे कानूनों का सही तरह से पालन करना है, यह बताया.
न्यायमूर्ति एस.एन. ढींगरा ने सम्मलेन में सरकारी जवाबदेही और नागरिक समुदाय के सामूहिक प्रयासों के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि “यथा प्रजा, तथा राजा”. उन्होंने बताया कि लोगों को कैसे कानून और व्यवस्था के अंतर्गत पुलिस के साथ सहयोग करना चाहिए और नागरिकों से स्वरक्षा की सीख लेने व अपनी शिकायतों को उनके साथ साझा करने के लिए आग्रह किया.
वकील, GIA की संयोजक मोनिका अरोड़ा ने “न्यू जेनरेशन वॉर : सूचना युद्ध” पर जोर देते हुए बताया कि कैसे कट्टरपंथी और धर्मान्तरित शक्तियां समाज के शांतिपूर्ण वातावरण को सांप्रदायिक दंगों में बदल देती हैं. उन्होंने किसानों के प्रदर्शन, चुनावों से पहले हुए दंगों का मुद्दा भी उठाया. उन्होंने सत्यापित सूत्रों का पालन करने की सिफारिश की.
2020 दिल्ली दंगों के लगभग 50 पीड़ितों ने भी इस बातचीत में भाग लिया गया.