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सनातन का तात्पर्य समावेशिता, सार्वभौमिक अच्छाई, आत्मा की सर्वोच्चता से है – उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

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सनातन का तात्पर्य समावेशिता, सार्वभौमिक अच्छाई, आत्मा की सर्वोच्चता से है –उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

  • - उन्होंने कहा कि कुछ लोग, अज्ञानतावश या अंधाधुंध अर्थ प्राप्ति में लगे होने के कारण, गलत तरीके से आध्यात्मिकता जैसे हमारे सात्विक तत्वों को अंधविश्वास का नाम दे देते हैं
  • - यदि आप सनातन के प्रति समर्पण करते हैं, तो आप बंदी नहीं हैं, आप एक स्वतंत्र व्यक्ति, एक स्वतंत्र आत्मा बन जाते हैं

कोलकाता। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को साइंस सिटी में आयोजित गौड़ीय मिशन के संस्थापक आचार्य श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद की 150वीं जयंती समारोह के समापन कार्यक्रम की अध्यक्षता की। उन्होंने कहा कि कुछ लोग, अज्ञानतावश या अंधाधुंध अर्थ प्राप्ति में लगे होने के कारण, गलत तरीके से आध्यात्मिकता जैसे हमारे सात्विक तत्वों को अंधविश्वास का नाम दे देते हैं। हर बात का जवाब आज के दिन सनातन में मिल सकता है। सनातन जो सिखाता है, वह आज की व्यवस्था के लिए आवश्यक है, चाहे वह दुनिया में कहीं भी हो। सनातन का तात्पर्य समावेशिता से है, सनातन का तात्पर्य सार्वभौमिक अच्छाई से है, सनातन का तात्पर्य आत्मा की सर्वोच्चता से है। सनातन अधीनता में विश्वास नहीं करता। यदि आप सनातन के प्रति समर्पण करते हैं, तो आप बंदी नहीं हैं, आप एक स्वतंत्र व्यक्ति, एक स्वतंत्र आत्मा बन जाते हैं।

उन्होंने कहा कि धर्म को संकीर्ण व रूढ़िवादी तरीके से नहीं देखा जा सकता। धर्म का आकलन संकीर्ण दायरे में नहीं किया जा सकता। हमें धर्म के सही अर्थ को समझना होगा और तभी हमें अंदाजा होगा कि हम सभी को कृतसंकल्प होकर भारत को फिर से ‘विश्व गुरु’ बनाना है। और भारत का विश्व गुरु बनना दुनिया के लिए सबसे बड़ा शुभ संदेश है।

हमने क्रूरता, आक्रमण और बर्बरता को सहन किया है… हमारे धार्मिक स्थानों, हमारे सांस्कृतिक प्रतीकों का किस तरह की बर्बरता, उग्रता और लापरवाही से विनाश हुआ! जब नालन्दा में आग लगाई गई तो अंदाजा लगाइए कि क्या-क्या नष्ट हुआ! नालन्दा में कितनी मंजिलें थीं, कितनी लाख किताबें थीं और वह सिर्फ भारत के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए थीं। आज तकनीक की प्रगति का हमारे ज्ञान के भंडार में संग्रहीत ज्ञान से कोई न कोई संबंध है।

उन्होंने कहा कि आज, हमें अपने बच्चों को हमारी संस्कृति का बोध कराने की आवश्यकता है। यह एक सकारात्मक संकेत है कि इस दिशा में कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, लेकिन किसी भी देश के लिए अगर कोई सबसे बड़ा अलंकरण है, तो वह उसकी संपत्ति नहीं, बल्कि उसकी संस्कृति है। एक बार संस्कृति छिन्न-भिन्न हो गई तो गिरावट को रोका नहीं जा सकता। सांस्कृतिक पहलुओं और संस्कृति से संबंधित सभी तत्वों का संरक्षण, पोषण और सुरक्षा महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे भारत को परिभाषित करते हैं।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि गौड़ीय मिशन ने सनातन धर्म को विश्व में प्रेम, शांति और सौहार्द का मार्ग बनाने का कार्य किया है। उन्होंने प्रभुपाद को भारतीय आध्यात्मिक चिंतन को पश्चिमी देशों में लोकप्रिय बनाने में अहम भूमिका निभाने वाला व्यक्तित्व बताया।

समारोह में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल डॉ. सीवी आनंद बोस और पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस व पर्यटन राज्य मंत्री सुरेश गोपी सहित गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।