हिन्दुत्व की रक्षा का संकल्प है संघ
(संघ यात्रा 1 - 1925-1935)
संघ अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर चुका है। ऐसे में इस लंबी यात्रा के संकल्प, ध्येय और कर्तव्य पर विहंगम दृष्टि अपरिहार्य है। संघ की स्थापना स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रांतिकारी विचारक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार द्वारा वर्ष 1925 में विजयादशमी के पावन पर्व, तदनुसार 27 सितम्बर 1925 को हुई। किन्तु संघ के स्वप्नदर्शी डॉ. हेडगेवार के बौद्धिक चिंतन एवं विमर्श में हिन्दू समाज को संगठित करने का संकल्प बहुत पहले ही रूप ले चुका था जिसकी परिणति संघ के रूप में हुई। एक विचार के रूप में इस संगठन का बीजारोपण हुआ था और वह विचार था हिन्दू समाज का उद्धार, उत्थान।
संघ स्थापना की पृष्ठभूमि: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अर्थात् संघ आज 99 वर्ष का वटवृक्ष बन चुका है। विश्व के बौद्धिक वर्ग में संघ का अनुपम स्वरूप शोध एवं अध्ययन का विषय है। संघ की स्थापना स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रांतिकारी विचारक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार द्वारा वर्ष 1925 में विजयादशमी के पावन पर्व तदनुसार 27 सितम्बर 1925 को हुई। किन्तु संघ के स्वप्नदर्शी डॉ. हेडगेवार के बौद्धिक चिंतन एवं मनन में हिन्दू समाज को संगठित करने का संकल्प बहुत पहले ही रूप ले चुका था जिसकी परिणति संघ के रूप में हुई। एक विचार के रूप में इस संगठन का बीजारोपण हुआ था और वह विचार था हिन्दू समाज का उद्धार, उत्थान। कलकत्ता में डॉक्टरी की पढ़ाई करते हुए डॉ. हेडगेवार ने क्रांतिकारी दल अनुशीलन समिति की दीक्षा ली थी। मातृभूमि के लिए स्वतंत्रता-प्राप्ति की तड़प ने उन्हें बेचैन किया हुआ था। उन्होंने अपनी मातृभूमि को बार-बार विदेशी आक्रांताओं के द्वारा रौंदे जाने के कारण हिन्दू समाज की मनो स्थिति पर मंथन किया। उत्तर मिला समाज का संगठित नहीं होना और एक लम्बी पराधीनता के चलते आत्म गौरव का हास और पूर्वजों द्वारा प्रदत्त महान संस्कृति का विस्मरण ही इस दुर्दशा का कारण है। गांधीजी के नेतृत्व में चल रहे स्वाधीनता आन्दोलन में पूर्ण मनोयोग से सक्रिय रहते हुए डॉ. हेडगेवार ने यह पाया कि कांग्रेस धीरे-धीरे मुस्लिम तुष्टीकरण का शिकार भी हो रही थी। जिसका प्रभाव 1921 के मोपला दंगों एवं खिलाफत आन्दोलन के समय होने वाले सांप्रदायिक दंगों में दिखाई देने लगा था। हिन्दू समाज की इस दुर्दशा को भांपते हुए जेल में बंद लाला लाजपतराय ने मुस्लिम राजनीति का गहरा अध्ययन करके अंग्रेजी ‘दैनिक ट्रिब्यून’ में एक लेखमाला लिखी थी, जिसके अंत में उन्होंने मजहबी आधार पर देश-विभाजन के खतरे की चेतावनी दी थी।
तत्कालीन राजनैतिक और सामाजिक परिस्थितियों का विश्लेषण करते हुए दूरदर्शी डॉ. हेडगेवार जेल में मित्रों को कहा करते थे कि प्रथम विश्वयुद्ध में पराजित जर्मनी अपनी पराजय का बदला लेने की कोशिश अवश्य करेगा। उनका अनुमान था कि बीस वर्ष में द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ सकता है। वही अवसर होगा भारत की स्वतंत्रता के निर्णायक प्रयास का। अतः बीस वर्ष की अवधि में देशभक्त युवकों का देशव्यापी अनुशासनबद्ध संगठन निर्माण होना आवश्यक है, जो द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ते ही ब्रिटिश सत्ता पर निर्णायक प्रहार कर मातृभूमि को स्वतंत्र करा सके। इस कल्पना को मन में संजोकर उन्होंने समाज के तरुणों और युवाओं को तैयार करने के उद्देश्य से एक संगठन की स्थापना का ध्येय रखा था। संघ स्थापना को साकार रूप देने से पूर्व डॉ. हेडगेवार ने अनुशीलन समिति, हिन्दू महासभा और आर्य समाज जैसे संगठनों का भी वैचारिक दृष्टि से चिंतन किया था। डॉक्टर जी के व्यक्तित्व-गठन में महाराष्ट्र की इस अखाड़ा पद्धति एवं बंगाल की अनुशीलन समिति की कार्य-प्रणाली का मुख्य योगदान रहा। ढाका अनुशीलन समिति के अंतर्गत ही 1907 में ऐसे पांच सौ क्लब पूर्वी बंगाल के नगरों और गांवों में चल रहे थे, जिनमें भाग लेने वाले सदस्यों की संख्या पंद्रह हजार तक पहुंच गई थी। बीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक में विदर्भ और मराठवाड़ा के प्रत्येक नगर में युवकों के लिए अखाड़ों व व्यायामशालाओं का व्यापक प्रचार था। सन् 1921 में केवल नागपुर विभाग में ही दो सौ तीस अखाड़ों का अस्तित्व था। सन् 1931 में यह संख्या बढ़कर पांच सौ सत्तर हो गई। डॉक्टरजी का स्वयं भी कई अखाड़ों से घनिष्ठ व सक्रिय संबंध था। इसलिए असहयोग आंदोलन की विफलता के पश्चात् निराशाजनक वातावरण के दिनों में डॉ. हेडगेवार के मन में एक भीषण विचार-मंथन छिड़ा तथा स्वातंत्र्य-प्राप्ति के लिए एक ऐसी अभिनव कार्य-पद्धति की खोज का संकल्प उदित हुआ जो क्रांतिकारी आंदोलन तथा कांग्रेस की प्रचारात्मक पद्धति के दोषों से मुक्त हो। तब स्वाभाविक ही उन्होंने अखाड़ा पद्धति एवं अनुशीलन समिति से प्रेरणा लेकर उसे अपनी मौलिक सृजनात्मक प्रतिभा से एक अत्यंत संस्कारक्षम एवं विकासशील तंत्र के रूप में गूंथ दिया। अनुशीलन समिति के धर्मराज्य संस्थापन का आदर्श एवं आध्यात्मिक दृष्टि तथा संस्कृति-निष्ठा ही संघ स्थापना की आधारभूमि है।
श्री अरविंद ने भी सन् 1905 में गुप्त रूप से प्रकाशित एवं प्रसारित ‘भवानी मंदिर’ नामक एक पैम्फलेट में एक संगठनात्मक प्रारूप सामने रखा था। स्वामी विवेकानंद ने भी यही कहा था कि ‘आगामी बीस वर्षों के लिए अन्य सब देवताओं को किनारे रखकर केवल भारत माता की ही उपासना की जानी चाहिए।’ भवानी मंदिर में उपासना करने वालों को ब्रह्मचर्य व्रत को अपनाकर कम-से-कम चार वर्ष पूरा समय माता की ही उपासना करने में लगाने की प्रतिज्ञा लेनी होगी। तत्पश्चात् वे गृहस्थ जीवन को अपनाने के लिए स्वतंत्र होंगे। उन्हें मनसा, वाचा, कर्मणा आचार के नियमों का दृढ़ता से पालन करना होता था। आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक आधार देने में ‘भवानी मंदिर’ का विचार भी संघ की स्थापना में ऊर्जा का स्रोत रहा। डॉ. हेडगेवार की मृत्यु के बाद 1941 में प्रकाशित उनकी जीवनी में वी.एन.शेंडे ने लिखा है कि, ‘1915 से 1924 तक उनके जीवन के दस वर्ष देश में चल रहे विभिन्न राजनीतिक आंदोलनों और संस्थाओं के सूक्ष्म अवलोकन और विश्लेषण में तथा राष्ट्र को ग्रसित करने वाली बुराइयों का निदान करने और उनका समाधान खोजने में व्यतीत हुए। हमारी मातृभूमि न केवल क्षेत्रफल, जनसंख्या, प्राकृतिक सौंदर्य, खनिज संपदा, उर्वरता और समृद्धि में, बल्कि ज्ञान, दर्शन, धर्म, संस्कृति, इतिहास, वीरता, कला और शिल्प में भी विश्व में सर्वश्रेष्ठ है। इतना सब होने पर भी यह प्राचीन हिंदू राष्ट्र क्यों पतन के गर्त में डूबता चला गया। यह प्रश्न डॉ. हेडगेवार के मन में निरंतर उठता रहता था। इस ज्वलंत प्रश्न का वास्तविक उत्तर पाने के लिए वे लंबे समय तक गहन चिंतन करते रहे।’ इसी चिंतन ने 1925 की विजयादशमी को संघ का बीजारोपण किया।
संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने 27 सितंबर 1925 को विजयादशमी के दिन घोषणा की कि ‘हम आज संघ का उद्घाटन कर रहे हैं।’ ‘हम सभी को अपने आप को शारीरिक, बौद्धिक और हर तरह से प्रशिक्षित करना चाहिए ताकि हम अपने पोषित लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम हो सकें।’ संघ की औपचारिक शुरुआत नागपुर में ‘शुक्रवारी’ में डॉक्टर हेडगेवार के घर में हुई। रविवार को ड्रिल, मार्च आदि का प्रशिक्षण दिया जाता था। गुरुवार और रविवार को राष्ट्रीय मामलों पर प्रवचन होते थे। संघ स्थापना के लगभग 6 माह पश्चात 17 अप्रैल 1926 को डॉ. हेडगेवार के घर पर बुलाई गई बैठक में चार नामों जरीपटका मंडल, भारत उद्धारक मंडल, हिंदू स्वयंसेवक संघ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सूची में से संघ के लिए ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ नाम का चयन किया गया।
- इस शृ्रंखला में यहीं तक अगली कड़ी में बात करेंगे संघ यात्रा के अगले दशक की...