राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मेरठ महानगर ने महर्षि दयानंद सरस्वती जी की 200वीं जयंती वर्ष के अवसर पर आई.आई.एम.टी. विश्वविद्यालय के सभागार में विचार गोष्ठी का आयोजन किया. क्षेत्र बौद्धिक शिक्षण प्रमुख रूप नारायण जी ने कहा कि वैदिक काल श्रेष्ठ और आदर्श से भरा था. चारों ओर वेद के आधार पर जीवन पद्धति चल रही थी.
उन्होंने कहा कि बाहर से आक्रमणकारी आए और उन्होंने हमारी संस्कृति-सभ्यता को बहुत नुकसान पहुंचाया. लेकिन स्वामी दयानंद जी जैसे महापुरुषों ने ही राष्ट्र संरक्षण और राष्ट्र स्वतंत्रता के विचार को जन-जन तक पहुंचाया.
डॉ. नीरू जोशी ने स्वामी दयानंद जी को सामाजिक सुधारक, धार्मिक सुधारक के साथ-साथ ज्योति पुंज, योग-पुरुष व राष्ट्र-जागरण का अग्रदूत बताया. स्वामी दयानन्द जी ने इन बातों को समझा और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ अभियान चलाया. भारत वर्ष की उन्नति का मूल वैदिक काल के ज्ञान में निहित है. उस काल में भी महिलाएं पुरुषों के समान ही सम्मान पाती थीं. ऋग्वेद में 200 से अधिक ऋचाएं महिला ऋषियों ने ही लिखी थीं. सन्तान तभी कर्तव्य-परायण हो सकती है, जब मां सुयोग्य हो.
प्रांत प्रचारक अनिल कुमार ने कहा कि हमारे समाज को जागृत होना चाहिए. समाज को शिक्षित होना चाहिए. समाज में समस्याओं को समझने के लिए अच्छी और बुरी बातों को समझने की क्षमता होनी चाहिए और उसके समाधान के लिए प्रयास करना चाहिए. यदि हमारा समाज इसे करने में सक्षम होता है तो समाज में सुधार होंगे.
उन्होंने कहा कि स्वामी दयानन्द जी ने समझा था कि स्वराज हिंदुस्तान के लिए आवश्यक है, क्योंकि हिंदुस्तान को अपने आधार पर खड़ा होना चाहिए, विदेशी आधार पर नहीं. यदि हम विदेशियों के साथ जुड़े हुए हैं, तो भी हमें यह समझना चाहिए कि हम भारत के नागरिक हैं और हमें स्वतंत्रता और स्वायत्तता की प्राप्ति के लिए अपने ही आधार पर कदम उठाने चाहिए.
कार्यक्रम के अध्यक्ष अशोक सुधाकर ने कहा कि स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के जीवन का मूल मंत्र था – “कर्मवाद और स्वदेशी”. वे एक धर्म गुरु, दार्शनिक और समाज सुधारक थे. उन्होंने भारत के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
कार्यक्रम के आरम्भ में विश्वविद्यालय के प्रबंध निदेशक मयंक अग्रवाल ने सभी अतिथियों को तुलसी के पौधे भेंट कर स्वागत किया.