पीलीभीत, उत्तर प्रदेश
पीलीभीत की येह महिलाएं सिर्फ धागा नहीं कात रहीं, बल्कि अपने सपनों को बुन रही हैं। ट्रांस शारदा क्षेत्र की 113 महिलाएं हर दिन 4 से 5 घंटे इस चरखे के साथ बैठती हैं और इसी से शुरू होती है आत्मनिर्भरता की नई कहानी। हजारा स्थित जानकी देवी खादी ग्रामोद्योग सेवा संस्थान, जो खादी ग्रामोद्योग बोर्ड से संचालित है। यहां महिलाएं मेहनत और कौशल के दम पर महीने में 5 से 7 हजार रुपये तक कमा रही हैं। यह महिलाएं सुबह नौ बजे से शाम चार बजे तक चरखे, ट्विस्टिंग मशीन, डबलिंग मशीन और तागा मशीन पर काम कर धागा तैयार करती हैं और कपड़े बुनती हैं। खादी की हर एक डोर इनके आत्मविश्वास को और मजबूत करती है। घर की जिम्मेदारियों के साथ–साथ ये महिलाएं आज अपनी पहचान भी खुद बना रही हैं। इनका कहना है चरखा चलाना सिर्फ काम नहीं बल्कि सम्मान और सशक्तिकरण का रास्ता है। सरकार के सहयोग और ग्रामोद्योग के प्रशिक्षण ने इनके हुनर को रोजगार से जोड़ा और अब यह एक छोटा समूह नहीं, बल्कि 113 आत्मनिर्भर महिलाओं की बड़ी शक्ति बन चुका है। इन महिलाओं द्वारा तैयार कपड़े सिर्फ पीलीभीत ही नहीं बल्कि आजमगढ़, मुरादाबाद, लखनऊ की यूनिटों तक भेजे जा रहे हैं। साथ ही साड़ी, कोट, कुर्ता, शर्ट और सूट जैसे तैयार कपड़ों की हजारा यूनिट बिक्री भी बढ़ी है। खादी की डोर अब इनके सपनों की डोर बन चुकी है। पीलीभीत की ये कहानी बताती है, अगर हौसला हो, तो चरखे की घुमक भी बदल सकती है जिंदगी।



